कठोर सामग्री तकनीकी का अर्थ अथवा कठोर तकनीकी किसे कहते है?
कठोर सामग्री तकनीकी का मुख्य आधार भौतिक विज्ञान तथा अभियान्त्रिकी का विस्तृत ज्ञान भण्डार है। विज्ञान का हमारे दैनिक जीवन में आज क्या प्रभाव है, यह किसी से छिपा नहीं है? यदि यह कहा जाय कि अल्प समय की पूजा-अर्चना को छोड़ दें तो हमारी पूरी जीवन शैली आज विज्ञानमय हो गयी है तो गलत न होगा। इस परिस्थिति में शिक्षा भला विज्ञान से कैसे अछूती रह सकती है?
हम जो भी ज्ञान अर्जित करते है। वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से करते हैं। वैसे तो हमारी समस्त ज्ञानेन्द्रियां विज्ञान के आविष्कारों से लाभ उठाती हैं, किन्तु आंख, कान, त्वचा, हाथ व पैर आदि का प्रयोग अध्ययन के दौर अधिकता से किया जाता है। अतः विज्ञान के शैक्षिक उपकरण भी प्रायः श्रव्य-दृश्य सामग्री के रूप में अधिक देखने को मिलते हैं। कठोर शिल्प तकनीकी में हम अधिकांशत: इन्हीं श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि कठोर शिल्प तकनीकी में विज्ञान के उन तमाम उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो स्पर्श करने पर कठोर व स्थूल होते हैं तथा जिनमें ध्वनि, प्रकाश, चुम्बकत्व, विद्युत, ऊष्मा तथा यान्त्रिक ऊर्जा आदि के माध्यम से विषय सामग्री के शिक्षण को सहज-बोधगम्य तथा रोचक बनाया जाता है। इस तकनीकी की यह विशेषता होती है कि इसमें केवल विज्ञान या उससे जुड़े हुए विषय ही नहीं बल्कि किसी भी विषय का शिक्षण किया जा सकता है। उदाहरण के लिए जब हम ओवर हैड प्रोजेक्टर से ट्रान्सपेरेन्सी का प्रदर्शन करते हैं तो हम किसी भी विषय की सामग्री को पर्दे पर प्रदर्शित कर सकते हैं। यहाँ तक कि साहित्य जैसे विषय में भी ट्रांसपेरेन्सी का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है। कठोर सामग्री तकनीकी में दृश्य-श्रव्य सामग्री की प्रधानता होने के कारण ही इसे दृश्य-श्रव्य सामग्री तकनीकी भी कहा जाता है।
उक्त विवेचन के आधार पर यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि शिक्षा, शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया के अन्तर्गत जितनी भी स्थूल, कठोर तथा दृश्य-श्रव्य वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। वे सभी कठोर शिल्प तकनीकी के अन्दर आ जाती हैं। इस प्रकार विद्यालय भवन, कुर्सी-मेज, चाक बोर्ड, डस्टर, रेडियो, टीवी, केल्कुलेटर, प्रोजेक्टर और वी०सी०डी० प्लेयर आदि सभी वस्तुयें कठोर सामग्री तकनीकी का हिस्सा बन जाती हैं। कम्प्यूटर के प्रवेश ने इन तकनीकी के विकास को अभूतपूर्व गति प्रदान कर दी है। वर्तमान में तीव्रता से फैल रही दूरस्थ शिक्षा की संकल्पना इसी तकनीकी की देन है। आज पत्राचार पाठ्यक्रम, मुक्त विश्वविद्यालय और शोध प्रक्रियाओं के आधुनिकीकरण का प्रसार जिस तीव्र गति से हो रहा है, उसका बहुत कुछ श्रेय इसी तकनीकी को दिया जा सकता है।
कठोर शिल्प तकनीकी की विशेषताएं
1. यह मुख्यतः भौतिक विज्ञान और अभियान्त्रिकी की सुदृढ़ मशीनों तथा उपकरणों पर आधारित होती है।
2. इसमें प्रायः दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है।
3. इसको शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न भागों में से शिक्षा में तकनीकी के साथ सम्बद्ध किया जाता है।
4. यह आँख, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों तथा हाथ, पैर आदि कमेन्द्रियों द्वारा सीखने के सिद्धान्त पर कार्य करती है।
5. इसके द्वारा कम समय, धन व श्रम व्यय करके अधिक से अधिक छात्रों का शिक्षण और प्रशिक्षण किया जा सकता है।
6. सिलवरमैन, 1968 ने इसे “सापेक्षित तकनीकी” नाम से सम्बोधित किया है।
7. इसके द्वारा दूरस्थ शिक्षा के पत्राचार पाठ्यक्रमों और मुक्त विश्वविद्यालयों की गतिविधियों की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है।
8. यह ज्ञान के संरक्षण, आधुनिकीकरण और प्रसार के लिए बहुत उपयोगी है।
9. इसके द्वारा सूचना एवं जनसंचार का कार्य कुशलतापूर्वक किया जा सकता है।
10. इसमें अधिगम की जटिल स्थितियों में छात्रों में विषम के प्रति रोचकता उत्पन्न करने की अद्भुत क्षमता है।
11. विज्ञान पर आधारित होने के कारण यह सूक्ष्म और अमूर्त विचारों को मूर्त रूप से स्पष्ट करने में सक्षम है।
12. यह अधिगम के करके सीखने तथा अनुभव द्वारा सीखने के सिद्धान्त पर आधारित है।
13. यह छात्रों के संवेगों पर नियन्त्रण करने का अवसर प्रदान करती है और उनमें भाई-चारें की भावना पर संचार करती है।
14. यह छात्रों की उत्सुकता को जागृत कर उन्हें उद्दीपन और प्रतिक्रिया के सिद्धान्त पर सीखने के लिए अवसर प्रदान करती है।
15. इसके द्वारा संचित किया गया ज्ञान छात्रों के मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव छोड़ता हैं, जिससे धारण करने की प्रक्रिया आसान हो जाती है।
16. यह छात्रों की बोध क्षमता को बढ़ाती है।
17. यह एक ही स्थान पर बैठकर सम्पूर्ण विश्व के ज्ञान भण्डार से परिचित कराती है।
18. यह छात्रों में सामाजिकता, विश्व बन्धुत्व और सहयोग की भावना जागृत करती है।
19. यह शिक्षकों के कार्य को बहुत आसान बना देती है और अनुशासन स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।
20. यह लगभग शिक्षा के प्रत्येक अंग को प्रभावित करती हैं।
21. यह विद्यालयों में दिये जाने वाले ज्ञान की वस्तुनिष्ठता, वैधता, विश्वसनीयता और विभेदीकरण स्थापित करने में पर्याप्त सहायक होती है।
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