विखण्डन का सिद्धान्त पर एक लेख लिखिए।
विखण्डन का सिद्धान्त (deconstructive theory) फ्रांसिसी दार्शनिक जाक डेरिडा द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त है। जिनका जन्म अल्जीरिया में हुआ था। डेरिका (1930-2004) के विशाल कृतियों का सबसे ज्यादा प्रभाव साहित्यिक सिद्धान्त और महाद्वीपी दर्शनशास्त्र पर हुआ है। एडमंड हुस्सेरल के लखेन से प्रेरित होकर डेरिडा ने घटनात्मक और संरचनात्मक दृष्टिकोण का मिश्रण किया। फ्रीडरिच नीटशि, एक अस्तित्ववादी, के दार्शनिक दृष्टिकोण, डीकंस्ट्रक्शन के अग्रदूत बने। डीकंस्ट्रक्शन के सूत्रीकरण और डीफरैंस के विचार योजना में आंद्रे लेहुआ गुहँ का महत्वपूर्ण योगदान है। फरदिनंद दी सौसयौर के संरचनावादिक सिद्धान्तों का डीकंस्ट्रक्शन और पोस्ट-स्ट्रकचरलिसम (संरचनवाद के अनुसरण) के विकास में बड़ा योगदान है।
डेरिडा ने लिखना तब शुरु किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक परिदृश्यों में प्रतिभास और संरचनावद दृष्टिकोण मे बढ़ता दरार साफ नजर आने लगा था। घटनात्मक दृष्टिकोण उसे कहते हैं जब एक अनुभव को उसके जन्मोत्पत्ति द्वारा समझा जाता है। संरचनावादिक दृष्टिकोण कहता है कि किसी भी वास्तु की जन्मोत्पत्ति के अध्ययन से सिर्फ तथ्य का पता लग सकताहै, मगर उसके संरचना के अध्ययन से उसके अनुभव की गहराईयों का आभास होता है। सन् 1959 में डेरिडा इस विचारधारा पर प्रश्न उठाते हुए पूछते हैं कि क्या हर एक संरचना की एक उत्पत्ति स्थल नहीं होती और क्या एक उत्पत्ति स्थल की मौजूदगी ही एक संरचना की होने की सूचना नहीं देती? इस कथन द्वारा डेरिडा कहना चाहते हैं कि प्रतिभासिक और संरचनात्मक दृष्टिकोण दोनों ही सिी भी वास्तु या सिद्धान्त को पूरी तरह समझने के लिए आवश्यक है। वह कहते हैं कि एक संरचना को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक हम उसकी उत्पत्ति के बारे न में न जान लें और यह ना समझ लें कि वह उत्पत्ति स्थल अपने आप में ही एक बहुत जटिल और संरचनात्मक है। डेरिडा कहते हैं कि यही डायक्रोनिस्म (वक्त के साथ बदलता हुआ) हमें टेक्शुअलिटी (लेखन में इस्तेमान किये जाने वाली भाषा जो की बोली से अलग होती है) के करीब ले जाती है।
डीकंस्ट्रक्शन के सिद्धान्तों को आज पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म का एक उपखण्ड माना जाता है। इस सिद्धान्त का डेरिडा ने सौसयोर के संरचनावादी सिद्धान्त से व्युत्पन्न किया है। सौसयोर के मुताबिक शब्दों का उनके अनुरूपित वस्तुओं से कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं है। वह कहते हैं कि एक शब्द सिर्फ एक संकेत चिन्ह की तरह काम करता है जो हमें एक वास्तु के तरफ इशारा करता है। एक चिन्ह दो भागों का बना होता है- सिग्नीफाईड (वह संकल्पना जिसकी तरफ इशारा किया गया है) और सिग्नीफाईयर (वचक – बोलचाल ध्वनि या लिखित अक्षर)। सौसयोर के मुताकिब एक सिग्नीफाईड और एक सिग्नीफाईयर के बीच का रिश्ता प्राकृतिक नहीं मात्र मनमाना है। हर शब्द को पहले से एक मतलब दिया गया है और इस मतलब का उस वास्तु के वास्तविक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हालांकि क्योंकि हर शब्द से एक अर्थ जोड़ा गया हैं उन दोनों का रिश्ता स्थिर माना जाता है।
पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म और विरचना- डेरिडा इस स्थिर रिश्ते को चुनौती देते हुए कहते हैं कि चूंकि एक शब्द का अर्थ कभी उस शब्द के अन्दर कैद नहीं किया जा सकता और उसका मतलब तभी समझा जा सकता है जब उसे बाकी शब्दों में अन्तर देखा जाए, इसीलिए एक शब्द का अर्थ सन्र्दभित रूप से ही समझा जा सकता हैं वह कहते हैं कि हम लाल रंग को सही ढंग से पहचान पाते हैं क्योंकि वह नीले या हरे रंग से अलग है। हम इस अन्तर को पहचानते हैं और इसीलिए उन्हें अलग-अलग रंगों के रूप में जानते हैं। डेरिडा के मुताबिक हर वास्तु का एक द्वार विपरीत होता है जैसे उजाला और अंधेरा, सफेद और काला, अच्छाई और बुराई इत्यादि। इसे और विस्तार से समझाते हुए वह कहते हैं कि एक शब्द का पूरा अर्थ कभी उस शब्द में समाया नहीं होता है और चूंकि पूरा अर्थ नहीं समाया है हम यह कहते हैं कि अर्थ की अनुपस्थित है। अतः एक द्विचर विपरीत को डीकंस्ट्रक्ट करने के लिए आवश्यक है कि हाशिए अवधि (मारजिनलाईजड् टर्म) के महत्व को पहचाना जाये, क्योंकि इसी शब्द के आधार पर विशेषाधिकृत अवधि को अर्थ मिलता है। एक द्विार अर्थ उस बात कि भी निशानी है जो अनुपस्थित है। हम एक कुर्सी को कुर्सी मानते हैं क्योंकि वह मेज से अलग है। इस अनुपस्थिति को डेरिडा डिफ्फेरांस का नाम देते हैं। उनके मुताबिक डिफ्फेरांस बनता है डिफरंस (अन्तर) ओर डेफेरैल (अर्थ को टालना) के संघटन से। एक चिन्ह का अर्थ हमेशा उससे परे होता है। अतः एक चिन्ह पूरी तरह अपने में समाया नहीं होता, वह हमेशा एक दूसरे चिन्ह या वास्तु पे निर्भर रहता है, अपने से परे की तरफ इशारा करता है। इसी वजह से डेरिडा कहते हैं कि एक चिन्ह का पूरा मतलब उसके द्विचर विपरीत (डिफरेंस) और उसके अर्थ को टालने (डेफेरैल) के आधार पर ही समझा जा सकता है और अर्थ मात्र एक हल्के निशान (ट्रेस) की तरह रह जाता है। फलतः डेरिडा कहते हैं कि एक ट्रांससेंडेंटल (उत्तोतम) सिग्नीफाईड (हर शब्द के लिए एक ऐसी वास्तु या चिन्ह जो और किसी भी वास्तु या चिन्ह जो और किसी भी वास्तु या चिन्ह की तरफ इशारा न करे) ढूँढने की आवश्यकता है, अर्थात् एक ऐसा चिन्ह या सिग्नीफाईयर जिसको अपने अर्थ के लिए दूसरे सिग्नीफाईयर पर निर्भर न होना पड़े। हालांकि यह साफ जाहिर है कि यह मुमकिन नहीं हो सकता।
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