टिप्पणी लेखन की समस्या पर एक विस्तृत निबन्ध लिखते हुए उससे सम्बन्धित बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
टिप्पणी लेखन की समस्याएँ
प्रशासन के समक्ष समय-समय पर अनेक ऐसी समस्याएँ आ जाती हैं, जिनका शीघ्र निस्तारण करना पड़ता है। ऐसी समस्याएं लिखित पत्र पर होती हैं। सम्बद्ध अनुभागाकरी को प्रारम्भ से लेकर अन्त तक पत्र को पढ़ने में पर्याप्त समय लग जाता है, जिसके कारण वह समय से निर्णय नहीं दे पाता। अत: विलम्ब से बचने के लिए टिप्पणी अतिआवश्यक होती है।
टिप्पणी लिखने का मूल उद्देश्य विचाराधीन विषय या प्रकरण से सम्बद्ध सभी तथ्यों को संक्षिप्त कर निपुणता के साथ तर्कसंगत ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत कर देना है कि उसकी सारी बातें सुस्पष्ट हो जायें और अधिकारी को निर्णय लेने अथवा आदेश पारित करने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। विशेष बात यह है कि टिप्पणीक अर्थात टिप्पणी लिखने से पूर्व पत्र में लिखे विषय या प्रकरण की पूरी जाँच-पड़ताल करता है, फिर तथ्यों को संक्षिप्त करता है, गलत तथ्यों को शुद्ध करके क्रमबद्ध रूप में रखता है अथवा उसके सम्बन्ध में अपनी अभ्युक्ति अंकित करता है और भ्रामक एवं संदेहास्पद तथ्यों का निराकरण करके मुख्य बिन्दु या विषय की ओर अधिकारी उत्तर का ध्यान आकृष्ट करता है। यदि कोई तथ्य संक्षिप्त है, तो उसे भी स्पष्ट कर देता है।
यदि निर्माणाधीन प्रकरण या विषय का सम्बन्ध किसी नियम, अधिनियम, उपनियमों या पूर्व सन्दर्भो से होता है, तो टिप्पणी लेखक उनको भी संक्षेप में लिख देता है। आवश्यक हुआ तो वह कार्यवाही सम्बन्धी सुझाव भी लिख देता है। टिप्पणी में किसी विषय, प्रकरण या समस्या का इतिहास, पूर्व सन्दर्भ एवं नियम अथवा अधिनियम आदि इस प्रकार से रखे जाते हैं कि अधिकारी उसे पढ़ते ही बड़ी सरलता से निर्णय ले सकता है। इस प्रकार टिप्पणी अधिकारी के कार्य को सुगम और सरल बना देती है और वह शीघ्र निर्णय ले लेता है।
अस्तु, टिप्पणी कार्यालय के कठिन कार्य को सरलता में परिणत कर देती है। इतना ही नहीं, अपितु टिप्पणी के आधार पर दुरूह तथा जटिल समस्या का समाधान हो जाता है। इस प्रकार टिप्पणी सरकारी कार्यालय का महत्वपूर्ण अंग है। जिस समस्या के निराकरण में महीनों, वर्षों लग जाते हैं, टिप्पणी के द्वारा उसका निराकरण कुछ दिनों में ही हो जाता है और समय की बचत भी हो जाती है। निष्कर्षत: टिप्पणी का उद्देश्य कार्यवाही की दिशा उजागर करते हुए प्रस्तुत प्रश्न, प्रकरण या समस्या पर निर्णय की क्रिया को सरल बनाना होता है।
टिप्पणी से सम्बन्धित ध्यान देने योग्य बिन्दु
टिप्पणी के सम्बन्ध में विशेष बिन्दु निम्नलिखित हैं-
i.प्राय: अधीनस्थ कार्यालयों से टिप्पणी लिखने का कार्य सहायक कर्मचारी ही करते हैं। उनके द्वारा तैयार टिप्पणी पर अधिकारी अपने आदेश देते हैं। बड़े-बड़े कार्यालयों में टिप्पणी का कार्य सहायक कर्मचारी नहीं, वरन् उच्चाधिकारी भी करते हैं, विशेषत: उस समय जब किसी विषय, प्रकरण, प्रश्न समस्या अथवा मामले में उच्चधिकारियों से आदेश लेने होते हैं।
ii. साधारण विषयों में विस्तृत टिप्पणी की अपेक्षा नहीं होती। ऐसे विषय में टिप्पणी के स्थान पर पत्रोत्तर का प्रालेखन’ कर दिया जाता है। उसमें उल्लिखित तथ्यों के आधार पर विषय तथ्य या प्रकरण अथवा मामले का निस्तारण कर दिया जाता है।
iii. विस्तृत टिप्पणी की आवश्यकता उस समय होती है, जब कोई ऐसा मामला या प्रकरण उपस्थित हो, जो नीति-निर्धारण, नवीन योजना, नियुक्ति या अन्य किन्हीं गूढ़ और जटिल समस्याओं से सम्बन्ध रखता हो। ऐसे ही प्रकरणों में टिप्पणीक अर्थात टिप्पणी लेखक की योग्यता, क्षमता, सूझ बूझ और विश्लेषण-शक्ति का परिचय मिलता है।
iv सामान्यतया टिप्पणियाँ संक्षिप्त, सुस्पष्ट, सारगर्भित और विषयानुरूप होनी चाहिए।
v. टिप्पणी में टिप्पणीक को कोई ऐसा प्रश्न नहीं उठाना चाहिए और न ही ऐसा कोई आक्षेप आशंका व्यक्त करनी चाहिए, जिससे कार्यालय की नीति अथवा अधिकारियों की ईमानदारी, और सक्षमता पर अनास्था व्यक्त होती हो।
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