आलेखन या प्रारूपण के अंग-
प्रशासनिक पत्र प्रायः तीन प्रकार से लिखे जाते हैं-
(1) यदि पत्र करने वाला समान अथवा उच्च पद का है,
(2) यदि पत्र प्राप्त करने वाला गैर-सरकारी व्यक्ति अथवा कोई संस्था हो, तथा
(3) महत्वपूर्ण विषयों पर प्रशासनिक पत्रों के निम्नलिखित मुख्य अंग हैं-
कार्यालय अथवा विभाग का नाम- पत्र के ऊपर आरम्भ में बायीं ओर अथवा मध य में भेजने वाले कार्यालय का नाम और पता लिखा जाता है।
यथा-
भारत सरकार
खाद्य विभाग
पत्र संख्या- सभी प्रकार के प्रशासनिक पत्रों पर कार्यालय की फाइलों का नम्बर अंकित रहता है, जो या तो कार्यालय के नाम के ऊपर लिखा रहता है अथवा कार्यालय के नाम के नीचे मध्य में बायीं ओर।
प्रेषक- इन पत्रों में प्रेषित का नाम व पद शीर्षक से नीचे बायीं ओर लिखने की पद्धति है।
प्राप्यक- उक्त पते के नीचे कार्यालय विशेष्य के पदाधिकारियों, जिसकी और से पत्र रेषित किया जाता है का पद तथा कार्यालय का नाम लिखा जाता है। यह भी स्मरणीय है कि यदि पागोपनीय है तो प्रेषित व्यक्ति का नाम भी पद के साथ-साथ लिखा देना आवश्यक है।
यथा-
श्री जगदीश शर्मा
निदेशक, सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
स्थान तथा दिनांक- प्रशासनिक पत्रों में प्रेषित के नाम के पश्चात् दायीं ओर प्रेषक का स्थान तथा दिनांक लिखा जाता है।
विषय और संदर्भ- प्रशासनिक पत्रों में प्रेषित के नाम के पश्चात् दायीं और प्रेषक का स्थान तथा दिनांक लिखा जाता है।
विषय और संदर्भ- सुविधा की दृष्टि से पत्र के आरम्भ में सम्बोधन के पूर्व विषय का निर्देश कर दिया जाता है। जिससे विषय को समझने में कठिनाई नहीं होती है। पत्र का उत्तर भेजने वाला भी इसी का संकेत करते हुए पत्र लिखेगा।
यथा-
विषय- कर्मचारियों के लिए अग्रिम धन तथा विविध भुगतान के सम्बोधन में।
सम्बोधन- प्रशासनिक पत्रों के सम्बोधन में महोदय, प्रिय महोदय, महानुभाव इत्यादि शब्द लिखे जाते हैं।
मुख्य भाग- व्यावसायिक पत्रों के समान इन पत्रों के विषय में तीन भाग किए जा सकते हैं, एक यदि प्रेषक किसी का ध्यान आकर्षित करना चाहता है। दूसरे, यदि उसे कुछ सूचना देने का आदेश मिला है। तीसरे, यदि पत्र किसी पत्र के उत्तर में लिखा जा रहा है।
यथा-
- मैं आपका ध्यान इस बात की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि….
- मुझे आदेश हुआ है कि….
- आपके पत्र संदर्भ संख्या…. दिनांक….. के उत्तर में ..इत्यादि।
स्वनिर्देश- इन पत्रों का परिसमापन-पत्र के अन्त में दायीं ओर लिखा जाता है। इसमें भवदीय, भवदीया लिखने की परम्परा है। प्रशासनिक पत्र यदि एक ही कार्यालय के विभिन्न विभागों को भेजा जाता है तो उनमें भवदीय आदि लिखने की आवश्यकता नहीं होती है।
हस्ताक्षर- स्वनिर्देश के पश्चात् अन्य पत्रों के समान प्रशासनिक पत्रों में भी हस्ताक्षर किए जाते हैं।
संलग्नक- व्यावसायिक पत्रों के समान इन पत्रों में भी आवश्यक प्रपत्रों का संलग्नक संख्या निर्देश करके दिया जाता है।
पृष्ठांकन- एक पत्र की प्रति या अधिक प्रतियाँ अन्य विभागीय अधिकारियों के पास भिजवाई जाती हैं तो पत्र के अन्त में इसका उल्लेख पत्र संख्या तथा दिनांक आदि एवं अधिकारियों के हस्ताक्षर सहित किया जाता है। उदाहरण-
पत्र संख्या 611/स/623/2009
अगस्त,24/2012
पत्र की प्रति सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु निम्नांकित को प्रेषित-
वित्त मंत्री,
केन्द्र सरकार,
नई दिल्ली।
Important Links
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग | Forms of Business Letter and its Parts
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- सन्त काव्य की प्रमुख सामान्य प्रवृत्तियां/विशेषताएं
- आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ/आदिकाल की विशेषताएं
- राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- सूफ़ी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- संतकाव्य धारा की विशेषताएँ | संत काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियां
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | स्वर्ण युग की विशेषताएँ
- आदिकाल की रचनाएँ एवं रचनाकार | आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
- आदिकालीन साहित्य प्रवृत्तियाँ और उपलब्धियाँ
- हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर
- हिन्दी के भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का वर्णन कीजिये।
- हिन्दी की मूल आकर भाषा का अर्थ
- Hindi Bhasha Aur Uska Vikas | हिन्दी भाषा के विकास पर संक्षिप्त लेख लिखिये।
- हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग, उद्भव, उत्पत्ति, विकास, अर्थ,
- डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- मलयज का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
Disclaimer