आलेखन के प्रमुख नियम निम्नलिक्षित हैं-
1. तत्सम्बन्धी नियम विषय ज्ञान- प्रालेखन के प्रमुख विषय का ज्ञान होना आवश्यक है। आलेखन प्रस्तुति से पूर्ण टिप्पणी और उस पर हुए आदेशों से पूर्व परिचत होना चाहिए।
2. आलेखन को तीन भागों में विभक्त कर देना चाहिए- (क) पूर्व पत्र-व्यवहार का निर्देश, (ख) प्रकरण वक्तव्य, (ग) निष्कर्ष ।
3. दीर्घ आलेखन को विशिष्ट वैभागिक शीर्षकों में वाट देना चाहिए।
4. प्रथम अनुच्छेद को छोड़कर शेष का संख्याबद्ध नहीं करना चाहिए।
5. भाषा स्पष्ट और सरल होनी चाहिए।
6. आलेखन में पुनरुवितयों वक्रोक्तियों आदि का प्रयोग न हो।
7. पत्र-व्यवहार के क्रम में अन्तिम सूचना की संख्या और दिनांक का निर्देश होना चाहिए।
8. आलेखन में स्वच्छता के साथा संलग्न पत्रों का स्पष्ट रूप से संकेत होना चाहिए।
9. आलेख पर वही संख्या होनी चाहिए जो मिसिल की संख्या हो।
10. केन्द्रीय रजिस्ट्री अनुभाग की जानकारी के लिए संसूचना पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी का नाम, पद, संज्ञा और टेलीफोन नम्बर लिख देना चाहिए।
11. अनुमोदनकर्ता को अपने हस्ताक्षर करने चाहिए।
आलेखन के तत्व- किसी भी आलेखन की भाषा सरल, स्पष्ट, विनीत, संयत एवं भद्र होनी चाहिए। आपत्तिजनक भाषा अधिकारियों के संतोष का कारण बन सके।
आलेखन का भाषा अतिशयोक्ति रहित हो- प्रालेखन की भाषा में अतिशयोक्ति का तर्कहीन दबाव न हो। अपनी बात पर जोर देने के लिए तर्क देना चाहिए।
दृढ़ता, उक्ति और विशेषणों का परित्याग- प्रालेखन में यथाशक्ति दृढ़ोक्ति और आरम्बर विशेषणों का परित्याग करना चाहिए।
पुनरुक्ति, अतिरेक, वेक्ति का वर्जन- प्रालेखन में पुनरुक्तियों वक्रोक्तियों और अत्युक्तियों का वर्जन आवश्यक है इन्हें किसी भी दृष्टि से आलेखन के अन्तर्गत प्रयुक्त नहीं करना चाहिए।
अपभ्रंश शब्दों का वर्णन- प्रालेखन में की भाषा में अपभ्रंश भाषा के शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसके शुद्ध और बोधगम्य भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
मिध्याबोध, अविवक्ष, अनित्यता- प्रालेखन में मिध्याबोध न हो। भाषा में अविवक्षा एवं अनित्यता की दोष नहीं होना चाहिए। इसके कारण आलेखन के वास्तविक भाव स्पष्ट नहीं हो पाते।
समास शैली का बहिष्कार- प्रालेखन की भाषा में विभक्तियों का लोप नहीं करना चाहिए और समास शैली का प्रयोग भी अधिकता से न हो। प्रालेख की भाषा में अलंकारों, असंगत शब्दों और लम्बे-लम्बे वाक्यों का प्रयोग न हो किया जाये। विचारों की स्पष्टता के लिए भाषा की स्वच्छता आवश्यक है। स्पष्टता के लिए भाषा की स्व्च्छता आवश्यक है।
आलेखन की विधि
सरकारी पत्र का प्रालेख प्रस्तुत करने की विधि निम्न प्रकार है-
1. पत्र संख्या का अंकन- सरकारी पत्रों में सर्वप्रथम सबसे ऊपर पत्र-संख्या अंकित करनी चाहिए। कुछ पत्रों में प्रेषक और प्रेषिती के पद- नाम आदि के बाद पत्र संख्या बाई ओर अंकित की जाती है।
2. प्रेषक के कार्यालय का नाम- पत्र संख्या अंकित करने के बाद उसके नीचे पत्र प्रेषक के कार्यालय का नाम आंकित करना चाहिए यदि पत्र-शीर्ष ( Letter head) के ऊपर छपा हुआ हो तो कोई बात नहीं अन्यथा लिख दें।
3. प्रेषक का नाम व पद- कार्यालय के नाम के नीचे प्रेषक (पत्र भेजने वाला) का नाम व पद अंकित कर देना चाहिए।
4. प्रेषित का पद और पता- प्रेषक के नाम व पद के बाद प्रेषिती (जिसको पत्र भेजा जाता है) का नाम पद व पता लिख दीजिए।
5. स्थान व दिनांक- प्रेषिती के नाम, पद व पते के बाद दिनांक और स्थान का उल्लेख होना चाहिए। कुछ पत्रों में दिनांक के साथ बाई ओर पत्र संख्या भी देते हैं।
6. सम्बोधन- विषयोल्लेख के बाद सम्बोधन लिखा जाता है अर्द्ध-सरकारी एवं सरकारी पत्रों को छोड़कर शेष समस्त प्रकार के पत्रों में ‘महोदय’ या ‘महोदया’ लिखा जाता है। अर्द्ध-सरकारी पत्रों में प्रिय’श्री शर्मा’ अथवा ‘प्रिय महोदय’ आदि सम्बोधन भी लिखे जाते हैं।
7. स्वनिर्देश तथा हस्ताक्षर- निष्कर्ष और सुझाव प्रस्तुत करने के बाद प्रेषक को स्वनिर्देश तथा उसके नीचे हस्ताखर उसी तरह करने चाहिए जैसे सामान्य पत्रों में किये जाते हैं स्वनिर्देश सरकारी पत्रों में ‘भवदीय’ अर्द्ध सरकारी पत्रों में ‘सद्भावनापूर्वक’ अथवा आपका ‘विश्वसनीय’ या विश्वासभाजन’ लिखकर हस्ताक्षर करने चाहिए। यदि प्रालेख विभागाधिकारी है।
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