विस्तारण की आवश्यकता क्यों हुई?
विस्तारण के लिए हिन्दी में ‘पल्लवन‘ शब्द का इस्तेमाल तो होता ही है, ‘अभिवर्द्धन ‘गवेषण’ तथा ‘विश्लेषण’ शब्द भी समय-समय पर व्यवहृत होते हैं। अंग्रेजी में ‘इक्सपेन्सन (Expansion) के साथ इसे ‘एम्प्लीफिकेशन’ (Amplification) भी कहा जाता है। पल्लव-सकर्मक क्रिया से अनुस्यूत है, जिसका आशय होता है, फैलाना या विस्तार। विस्तारण शब्द संशेषण का ठीक बरक्स अर्थात उल्टा अर्थ देता है। संक्षेपण में जहाँ किसी वक्तव्य, भाषण, वार्ता, बहस का निचोड़, तलछट या गाद रूप में प्रस्तुत करते है, विस्तारण में वही कथ्य अपना लघु आकार छोड़ विस्तृत-आकार प्राप्त करता है। साफ शब्दों में, संक्षेपण की तुलना में यहाँ वही तथ्य पसरता है, जबकि संक्षेपण में सिकुड़ता है।
अब यहाँ कुछ सवाल सिर उठा सकते हैं कि आखिर विस्तारण और संक्षेपण में श्रेष्ठ कौन हैं? व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण कौन हैं? अपनी बात की अभिव्यक्ति के लिए व्यक्ति उन दोनों में से वरण किसका करे? क्या दोनों उपयोगी और प्रासंगिक हैं? बहरहाल, इन सवालों का उत्तर पलक झपकते नहीं दिया जा सकता, क्योंकि व्यवहारिक धरातल पर व्यक्ति के जीवन में समय-समय पर इन दोनों का महत्व है। दरससल, कुछ लोग अपनी बात को ‘व्यास’ शैली में कहने के आदी अध्यासी होते हैं, जबकि उसी तथ्य को कुछ लोग ‘समास’ शैली यानी संक्षेप में,नपी-तुली शब्दावली में कहते हैं। बिहारी जिस बात को महज दो पंक्तियों में कहने के लिए ख्यातिलब्ध है।
सतसय्या के दोहरे, जौ नावक के तीर।
देखन में छोटन लगै, घाव करे गंभीर।।
उसी बात को उन्हीं के समकालीन कवि दो से भी अधिक पंक्तियों में मुकम्मल रूप में कह नहीं पाते। थोड़ा और ऊपर संस्कृत वाङ्मय में प्रवेश कीजिए जो भीमकाय वक्तव्य चुटकी रूप में कहे जा रहे है, जिनकी स्पष्ट समझ के लिए कालान्तर में टीकाओं और भाष्यों का जन्म होता है। कुल मिलाकर यह कि विस्तारण और संक्षेपण- गरज और जरूरत के अनुसार उपयोगी होते हैं। दोनों महत्वपूर्ण है। इनमें से कौन हीन और श्रेष्ठ हैं- इसका उत्तर देना अपने को चिढ़ाना
है। अब आइए, विस्तारण सम्बन्धी विद्वानों की कुछ परिभाषाओं को देख लिया जाय-
एस. टी. इमाम के अनुसार, अंग्रेजी विद्वान एस. टी. इमाम. विस्तारण को रेखांकित करते हुए कहते हैं- “Amplification is an act of expansion or a enlargement of thought process by manner of representation. It is a diffusive discussion. It is dilating upon all the particular of a subject by way of illustration and various examples and process.
अर्थात् विस्तारीकरण विचारों के विस्तार अथवा सेविकाशन की एक क्रिया है अथवा, अभिव्यक्ति की एक प्रक्रिया है। यह विचारों का विस्तारण है। यह दृष्टान्तों विभित्र उद्धरणों और प्रमाणों की सहायता से सम्बन्धित सभी विवरणों को पल्लवित करता है।
बेकन के विचार से, विस्तारण किसी एक विचार को एक अनुच्छेद में विस्तृत करना है। उसका उद्देश्य नियंत्रित होता है तथा इसमें मूल-विचार को विकृत करने तथा अवांछनीय सामग्री देने का निषेध होता है।
डॉ. मुंशीराम शर्मा कहते हैं कि वस्तुतः किसी सूत्रबद्ध अथवा संगुंफित विचार या भाव से संविकासन को विस्तारण कहते हैं।
डॉ. चन्द्रपाल के अनुसार, विस्तारण भाषा अभिव्यक्ति की ऐसी प्रविधि है, जिसमें मूल कथन अथवा सूक्ति का व्याख्यापरक अर्थ सम्भावी रचनाओं और उदाहरणों से व्यक्त किया जाता है। विस्तारण में सामान्यत विषय शीर्षक अथवा लघु-अनुच्छेद को व्याख्यात्मक ढंग से विस्तारपूर्वक लिखने की अपेक्षा होती है।
डॉ. विजयपाल सिंह लिखते हैं कि, विस्तारण में लेखक अपने भावों को व्यक्त करने के लिए अलंकृत भाषा का प्रयोग करता है तथा समास शैली के स्थान पर व्यास शैली को अपनाता है। पल्लवन शब्द में विस्तार का भाव निहित है, किन्तु यह विचार सीमातीत नहीं है।
डॉ. मधुबाला नेपाल के विचार से, पल्लवन से तात्पर्य है किसी संक्षिप्त एवं संश्लिष्ट सूक्ति कथन का ऐसा विस्तार करना, जिससे वक्ता/लेखक की अभिव्यक्ति सामान्य व्यक्ति के लि बोधगम्य हो सके। सामान्य शब्दों में पल्लवन वह विधा है, जिसमें किसी कथन या अभिवर्द्धन तथा विकास नये-नये शब्दों, रचनाओं, उदाहरणों से उस सूक्ति को युक्त करके किय जाता है।
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