सरकारी पत्र के प्रमुख तथ्य
सरकारी पत्र के प्रमुख तथ्यों पर प्रकाश डालिए। सरकारी पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
सरकारी या शासकीय पत्र- सही मायने में प्रत्येक कागज जो सरकार के किसी मंत्रालय अथवा कार्यालय से निकलता है वह सरकारी या शासकीय पत्र कहा जाता है, चाहे वह एक पुरजी भर हो या बैक नोट ही क्यों न हो। परन्तु प्रस्तुत प्रसंग में इसका एक संकुचित अर्थ है- वह पत्र जो सरकार किसी कार्यालय से किसी अन्य सरकारी कार्यालय को भेजा जाय और उसमें सरकार की ही नीति या समस्या, उसके किसी निर्णय या विषय का उल्लेख हो यह पत्र नितान्त औपनारिक होता है, छोटे और बड़े अधिकारी या पदधारी में कोई अन्तर नहीं, सब बड़े हैं, सब श्री……जी हैं, आदरणीय हैं। इसका शरीर निश्चित साँचे में ढला होता है। कुछ के तो मुद्रित फार्म तैयार हैं, भर दीजिए। रूप सब एक-सा होता है। अन्य प्रकार के शासकीय पत्रों से भेद करने के लिए हम इसे विशुद्ध शासकीय पत्र कहना चाहेंगे।
विशुद्ध शासकीय पत्र की सामग्री तथ्यपरक, संयत, स्पष्ट और शुद्ध होती है, उसमें अलंकार, कल्पना, मुहावरे हास्य-विनोद की कोई गुंजाइश नहीं होती। पत्रलेखन या प्रेषक अधिकारी के निजी विचारों के लिए कोई स्थान नहीं। उसमें किसी के प्रति न राग है न द्वेष, न संवेदना और न ही वैर-विरोधान। उसे केवल विषय से सम्बद्ध बात कहनी है-वह भी तर्कसंगत और विधि-विधान सम्मान । सब तथ्य यर्थाथपरक देने होते हैं नियमों उपनियमों और कार्यालय की पद्धति और मर्यादा का ध्यान रखना पड़ता है।
ऐसे पत्र की भाषा और शैली संयत, स्पष्ट, सरल, शुद्ध, सिक्के बन्द और टक्साली होनी चहिए। किसी भी शब्द का प्रसंगगत केवल एक अर्थ लिकलता हो, कोई दूसरा अर्थ नही।
सभी सरकारी पत्र अन्य पुरुष में लिखे जाते हैं।
संक्षिप्तता इन पत्रों की जान है। कोई पत्र लम्बा हो तो परिच्छदों में बँटा होता है, आपस में युक्ति-युक्त क्रम में होते हैं। पैरा एक की संख्या नहीं दी जाती। शेष 2 3…की दी जाती है।
‘प्रारूपो’ के प्रसंग में पिछले अध्याय में जो बातें विस्तारपूर्वक कही गई हैं और जो शुद्ध आदर्श पत्र अंकित किये गए है, उनको फिर से देख लें। ऐसे पत्रों का ढाँचा भी उसी प्रकरण में समझ लें। दो और माडल आगे दिये जा रहे हैं।
सरकारी पत्र नमूना-एक
स. 2875/2019
प्रेषक,
मुनीन्द्र प्रसाद
मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन।
लखनऊ
दिनांक……..
सेवा में,
सचिव,
राजस्व परिषद्
उत्तर प्रदेश
दिनांक, लखनऊ, 8 नवम्बर 2018
विषयः अनुशासनिक कार्यवाइयों में अभिलेखीय साक्ष्यों के लिए प्रस्तुत किये जाने वाले विधिक अधिकारी की उपस्थिति
महोदय,
उपर्युक्त विषय पर शासनादेश स०13क/2-1982 दि० 30 जनवरी 2013 के पैरा 1 की और आपका ध्यान आकर्षित करते हुए, मुझे आपके सूचनार्थ उत्तर प्रदेश…….अधिनियम सं. की एक प्रति भेजते हुए यह कहने का निर्देश हुआ कि उक्त अधिनियम विधान -मण्डल द्वारा पारित हो चुका है तथा उसकी एक अधिकृत प्रति उत्तर प्रदेश गजट दिनांक 28 सितम्बर, 1982 में शासन की ओर से प्रकाशित की गई है।
2. जैसा कि आपको विदित होगा उक्त अधिनियम के अनुसार अनुशासनिक कार्यवहियों में नियुक्त जाँच अधिकारियों एवं प्रशासनाधिकरण को यह अधिकार होगा कि वे अब समक्ष अपेक्षित गवाहों और अभिलेखीय साक्ष्यों की उपस्थिति अनिवार्य रूप से सुनिश्चित कर लें। यह अधिकार पब्लिक सर्वेन्ट्स (इन्क्वयारीज) ऐक्ट, 1950 के अनुरूप ठीक उसी प्रकार से प्रदत्त किया गया है जैसा कि जाँच आयुक्तों को पहले से प्राप्त है।
उक्त परिस्थितियों में अपने अधीनस्थ समस्त पदाधिकारियों को अवगत करा दें जिनका सम्बन्ध सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाहियों से हो।
अनुलग्नक…….1
भवदीय
(हस्ताक्षर)
मुख्य सचिव
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