संक्षेपण लेखक की विशेषताएँ बताइये।
संक्षेपण लेखक की विशेषताएँ- मूर्ति-निर्माण की कला और शिल्प में अनजान और कच्चे व्यक्ति को खूब Dथ-गाँथ कर मिट्टी ही क्या सोना भी दे दिया जाये, तो जाहिर है, जो चित्र और मूर्ति वह गढ़ेगा, वह बेडौल, टेढ़ी-मेढ़ी बेतरतीब और बदशक्ल ही होगी। अत: ऐसी स्थिति में मूर्ति के सुन्दर उत्तर निर्माण और रचाव के लिए उस कला में दक्ष और पारंगत होना होगा। ठीक इसी तरह संक्षेपण की कला और हुनर तथा तकनीक से बेखबर, अनभयस्त व्यक्ति यदि संक्षेपण का काम करेगा तो वह भी प्रौढ़ता-परिपक्वता की जगह भद्देपन की गंध उड़ेगी। इस तरह का संक्षेपण बनावटीपन शिकार हो जायेगा। इसलिए हर संक्षेपक को संक्षेपण का कार्य शुरू करने से पहले कुछ जमीनी और बुनियादी तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए, यथा-
1. शिल्प और कथ्य का बोध-
सजग, सतर्क संक्षेपक जिस सामग्री का संक्षेपण कर रहा हो, उसे उसकी मूल आत्मा की पकड़ होनी चाहिए। कथ्य को चबा-चबा कर पढ़ना चाहिए। उसे कथ्य को इतना मथ देना चाहिए कि संक्षेपण के रूप में केवल ‘लैनू’ ही बंच जाये अब रही शिल्प की बात । दरअसल, कथ्य और शिल्प की संगति और तालमेल बहुत आवश्यक होती है, क्योंकि विद्वान अध्यापक छात्रों के बीच सुन्दर शिल्प में यदि अपनी बात नहीं कह पायेगा तो विद्यार्थी उससे असंतुष्ट ही रहेंगे। ठीक इसी तरह यदि किसी कथ्य का संक्षेपण सुन्दर शिल्प में नहीं तराशा गया तो उसकी मूर्ति भकसावन ही होगी।
2. परिपक्व मस्तिष्क और पूर्वाग्रह रहित हो-
कुशल संक्षेपक प्रौढ़ दिमाग और सुलझी दृष्टि का होना चाहिए। सभी जानते हैं, इस आपाधापी के समय में किसी के पास लम्बे व्याख्यान सुनने और विस्तृत विवरण पढ़ने का समय नहीं है। समाज का हर बौद्धिक कुनबा-पत्रकार, वकील, न्यायाधीश, बैंक अधिकारी या किसी अन्य विभाग का अधिकारी समयाभाव में संक्षेपण ही पसन्द करता है, अत: संक्षेपक के पास अनुच्छेदों, बड़े-बड़े समाचारों और संवादों को स्वतंत्र, सुगठित, निर्विवाद और प्रवाहपूर्ण रूप में ढालने की क्षमता होनी चाहिए। यह क्षमता शीघ्र निर्णय लेने का होना चाहिए।
अगली बात यह कि संक्षेपक को तटस्थ, निर्लिप्त और शिविरवादिता से दूर रहना चाहिए। संक्षेपण में जबरिया व्यक्तिगत विचार की छौंक नहीं होनी चाहिए। उस पर कोई निजी सम्मति, वाद-प्रतिवाद, तर्जन-मर्जन करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। उसे अपने नैतिक अनुशासन में रहते निर्विवाकर भाव से, स्वतंत्र रूप से, बिना पक्षपात किये किसी स्थल का संक्षेपण करना चाहिए।
3. संक्षेपक अच्छे भाषिक संस्कार और सुरुचि का हो-
संक्षेपक के पास भाषा को सलीके से बरतने और मनोरम ढंग से उसे पाठकों के समक्ष परोसने-प्रस्तुत करने का परिष्कृत संस्कार होना चाहिए। उसके पास खुद का पर्याप्त शब्द भण्डार होना चाहिए। उसे संक्षेपण में अनाप-शनाप और व्यर्थ के शब्दों के प्रयोग से परहेज करना चाहिए। शब्दों का सही सटीक प्रयोग हो ही, वाक्य छोटे-छोटे और भाषा सरल होनी चाहिए। उसे यह प्रयास करना चाहिए कि संक्षेपण में मूल अनुच्छेद के शब्द, मुहावरे और वाक्यों का दुहराव न हो। मूल में आए उदाहरण, अलंकार संदर्भ और दृष्टान्तों को उसे त्याग देना चाहिए। शब्दों को कम करने के लिए पदबंध के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग करना चाहिए। वाक्य संकोचन के कौशल का प्रयोग कर भाषा को संक्षिप्त करना चाहिए। अगली बात यह कि उसके पास वस्तु की समझ की सुरुचि स्फूर्ति हो। संक्षेपण को संक्षेपक पेशेवर अंदाज में न लें, तभी ठीक रहेगा। दबाव या किसी हड़बड़ी, हलबल-दलबल में किये गये संक्षेपण के चटक कर टूट जाने का खतरा निरन्तर बना रहता है।
4. धैर्यशील और विवेकी-
संक्षेपण का काम श्रीकान्त वर्मा की कविता “महुये के वन में आवाँ सुलगाने के लिए कंडा बीनने” की तरह है। इसमें बहुत धैर्य की जरूरत होती है। मूल कथ्य को चेहरा-दर-चेहरा सुन्दर लहजे में संक्षेपण में उतर जाये, संक्षेपण बहुत जीवन्त और प्राणवान हो, वह संक्षेपक के गहरे सुचिन्तित दृष्टिकोण का परिचायक हो इन सब बातों के लिए संक्षेपक को बहुत धैर्य रखना चाहिए। संक्षेपण में मूल कथ्य का बहुत बारीक निगाह से देखते हैं, यहाँ बिना चीखे-चिल्लाए सलीके से धैर्यपूर्वक अतिव्याप्ति और अत्याप्ति से बचते हुए, शीर्षक में मूल विचार का उतारते हुए, अनुच्छेद की बात की उपस्थिति अनुपस्थिति का ध्यान बड़े चाव एवं हिमालय पहाड़ की तरह धैर्य रखते हुए करते हैं। संक्षेपक यदि विवेकी और कुशाग्र बुद्धि-सन्पृक्त नहीं है, तो संक्षेपण अपेक्षित धारदार और कामयाब नहीं हो सकता।
5. स्थिति और नियति का सन्तुलन-
संक्षेपक यदि स्थिति और नियति का दुरुस्त है तो वह संक्षेपण में किसी विवादास्पद बयान को नहीं दर्ज करेगा। अच्छी और सन्तुलित स्थिति का संक्षेपक मूल पर गहरी दृष्टि का फोकस डालेगा। निपट सादी भाषा में मूल को संक्षेपण के सुन्दर ‘फ्रेम’ में मढ़ उस पर पाठकों के लिए चकित कर देने वाली बुनावट बुनेगा। महत्वपूर्ण बिन्दुओं, शब्दों और अंशों की बूटी काढ़ेगा। मूल को अनेक बार पढ़ अपनी विवेक शक्ति और भाषा की समाहार शक्ति के मेल से जो संक्षेपण निर्मित होगा, वह संक्षेपक की स्वस्थ नियति का द्योतन करेगा। वह मूल की एक-एक पंक्तियों और शब्दों को संक्षेपण करने से पूर्व माला के मनका की तरह जायेगा, स्वयं संक्षेपण करने की तपस्या की अग्नि में पिघलेगा, तभी उसका संक्षेपण कुन्दन बनकर पाठकों के मन रूपी खराद पर सुन्दर और अनाविल बनेगा।
उक्त गुणों और योग्यताओं से लैस जो संक्षेपक संक्षेपण करेगा उसका रंग टिकाऊ, ठोस और परिपक्व, टटका और सुन्दर शक्ल अख्तियार करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
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