संक्षेपण की विधि का वर्णन कीजिए।
संक्षेपण की विधि- किसी अवतरण की संक्षिप्त करने से पूर्व निम्नांकित पद्धति या विधि का अनुसरण करना चाहिए-
(1) पाठन- सर्वप्रथम मूल अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। यदि एक बार पढ़ने से भावार्थ स्पष्ट न हो तो उसे कई बार पढ़ना चाहिए।
(2) रेखांकन- मूल अवतरण को भली-भाँति समझ लेने के पश्चात् उन आवश्यक शब्दों, वाक्यों अथवा वाक्य-खण्डों को रेखांकित कर देना चाहिए जो विशेष महत्वपूर्ण हैं और जिनको संक्षेपण में शामिल करना अत्यन्त आवश्यक है।
यह आपकी सूक्ष्म-दृष्टि और निर्णय-शक्ति पर निर्भर है कि आप अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण विचार-बिन्दुओं को ही रेखांकित करें और अनावश्यक व गौण बातों को छोड़ दें। यदि आप ऐसा करने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो संक्षेपण की कुञ्जी आपके हाथ में हैं।
(3) प्रथम आलेख्य या प्रारूप- इसके पश्चात् रेखांकित वाक्यों और पदों के आधार पर मूल अवतरण की रूपरेखा (आलेख्य या प्रारूप- Sketch of Draft) तैयार कर लेना चाहिए उसमें उन समस्त भावों या विचारों को शामिल करना चाहिए फिर उसमें आवश्यक संशोधन करना चाहिए।
(4) सुसम्बद्धता- प्रारूप और सामग्री में तुलना करके देखना चाहिए कि कोई महत्वपूर्ण बात छूट तो नहीं गई है। यदि कोई तथ्य छूट गया है तो उसे आलेख्य में सम्मिलित कर लेना चाहिए। एक बात ध्यान रखने की यह है कि मूल अवतरण में आये विचारों की क्रम-व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है, परन्तु विचारों का क्रम इस प्रकार हो कि प्रत्येक वाक्य सुसम्बद्ध हो।
(5) शब्द-गणना- प्रायः परीक्षा में मूल अवतरण की शब्द-संख्या लिखी होती है। यदि ऐसा न हो तो मूल अवतरण के शब्दों को गिन लेना आवश्यक है। हिन्दी अवतरण की शब्द गणना भी एक समस्या है। इसका कारण विभक्तियाँ व परसर्गों के प्रयोग और सामासिक पद हैं। हिन्दी में विभक्तियाँ संज्ञाओं से अलग लिखी जाती हैं और सर्वनामों के साथ, जैसे-राम ने, कृष्ण को उसने, मैंने, तुमको आदि।
इसी प्रकार समास पदावली को लिखने में कहीं ‘योग रेखा’ (-) का प्रयोग किया जाता है, जैसे-माता पिता, गुरु-शिष्य। कहीं इस ‘योग-रेखा’ का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैसे-
शब्द-गणना करते समय संक्षेपक को मूल अवतरण की लेखन-पद्धति को ध्यान से देखना चाहिए। यदि मूल में विभक्ति शब्द में मिलाकर लिखी गई है तो उसे एक ही शब्द समझने चाहिए। यदि शब्द और विभक्ति अलग-अलग हैं तो उन्हें दो शब्द समझना चाहिए। इसी यदि सामासिक पदों के बीच में योग रेखा है, तो उसे एक ही शब्द मानें। यदि सामासिक पर मिलाकर लिखा हो; जैसे मातृप्रेम, तो उसे एक शब्द मानें। यदि सामासिक पद अलग-अला लिखे हैं तो दो शब्द मानें जैसे-मातृ-प्रेम।
मूल अवतरण के शब्दों की लगभग संख्या ज्ञात करने की एक अन्य सरल विधि है। यदि किसी अवतरण में बीस पंक्तियाँ हैं तो प्रथम पाँच पंक्तियों के शब्दों की गणना कर लीजिए। मान लीजिए उनमें 50 शब्द है। 50 में 5 का भाग देकर 10 शब्दों का औसत निकल आया। इस प्रकार 20 पंक्तियों में लगभग 200 शब्द होंगे।
(6) आकार निर्धारण- प्रायः परीक्षा में संक्षेपण की शब्द-संख्या निर्धारित कर दी जाती है। यदि आपके प्रारूप की शब्द-संख्या अधिक या कम हो तो उसे ठीक करना चाहिए। यदि संख्या का निर्देशन न हो तो प्रारूप की सामग्री मूल की 1/3 से अधिक न हो।
(7) व्याकरणसम्मत भाषा- अपने प्रारूप को कई बार पढ़िये। यदि शब्द, वाक्य-विन्यास, समास, सन्धि आदि व्याकरण-सम्बन्धी अशुद्धियां रह गई हों तो उन्हें ठीक करना चाहिए।
(8) उपयुक्त शीर्षक- संक्षेपण के भावों और विचारों के अनुकूल एक संक्षिप्त शीर्षक देना चाहिए। यह प्राय: अवतरण के प्रारम्भ या अन्त में छिपा रहता है।
शीर्षक-चयन में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
- मूल अवतरण में व्यक्त विचारों के साथ उसका सामंजस्य हो। उसके पढ़ते ही पाठक के मानस-पटल पर यह अंकित हो जाय कि अवतरण में किन भावों या विचारों को व्यक्त किया गया है।
- वह आकर्षक हो। उपयुक्त चुभता हुआ शीर्षक चुम्बक के समान है, जो प्रमुख विचारों के कणों को अपने आप खींच लेता है। अत: शीर्षक के चुनाव में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। शीर्षक रचना की कुञ्जी के समान है।
शीर्षक का आकार छोटा और कम से कम शब्दों का होना चाहिए। कभी-कभी लम्बे शीर्षक भी दिये जाते हैं। वास्तव में शीर्षक का आकार अनुच्छेद के कथ्य (Matter) पर निर्भर करता है। यदि कथ्य सामान्य है तो शीर्षक भी सरल और एक या दो शब्दों का होगा, यदि कथ्य गम्भीर है तो शीर्षक का आकार चार-पाँच शब्दों का हो सकता है।
(9) संक्षेपण की शैली- ‘संक्षेपण’ का तात्पर्य मूल का अनुलेखन मात्र नहीं, वह एक स्वतन्त्र रचना है जिसकी अपनी शैली और अपना आकर्षण होता है। यह सरल, सुबोध और व्याकरण से शुद्ध होती है। इसमें शब्दाधिक्य के लिए कोई स्थान नहीं है। इसमें अभिव्यक्ति की कला का प्रदर्शन नहीं किया जाता फिर भी सरल और कम से कम शब्दों में भावों की पूर्ण अभिव्यक्ति होती है। इसमें प्रसाद गुण और अभिधा की प्रधानता रहती है। अतः संक्षेपक को अपनी भाषा शैली का भी ध्यान रखना चाहिए। इस सम्बन्ध में अग्रलिखित नियमों को समझना आवश्यक है-
(10) संक्षेपण तार की शैली नहीं है- संक्षेपण में उचित शब्दों का चुनाव में विशेष ध्यान रखा जाता है। एक भी शब्द निरर्थक नहीं होता। उसके दो प्रधान गुण है- (1) पूर्णता और (2) अर्थ की अभिव्यक्ति।
अत: यह ‘तार की शैली’ (Telegraphic style) से सर्वथा भिन्न बदलता रहता है। ‘रुको, बेचो मत’- इस तार का अर्थ अपरिचित व्यक्ति के लिए निरर्थक है. होती है। ‘तार की शैली’ में वाक्य अपूर्ण होते हैं। प्रसंग और व्यक्ति के अनुसार उसका अर्थ परन्तु जो तार भेजने वाले की परिस्थिति से परिचित है, वह इसका अर्थ तुरन्त और ठीक-ठाक समझ लेगा। इस प्रकार तार ‘निजी’ होता है, परन्तु संक्षेपण ‘सार्वजनिक’।
(11) अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग- ‘संक्षेपक’ की मुख्य समस्या होती है कि वह किस प्रकार अनावश्यक शब्दों के स्थान से सार्थक शब्दों का प्रयोग करे। उसका उचित उपाय है-‘अनेक शब्दों के लिए एक शब्द का प्रयोग। ‘ऐसे शब्दों के प्रयोग से भाषा सरल, संक्षिप्त एवं भावपूर्ण हो जाती है।
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