प्रयोजनमूलक हिन्दी की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। अथवा प्रयोजनमूलक हिन्दी की उपयोगिता पर अपने विचार प्रकट किजिए।
प्रयोजनमूलक हिन्दी की उपयोगिता-
संसार की हर भाषा अपने विभिन्न सन्दर्भो के दायरे में अर्थपूर्ण होती है। बदलते समय के साथ वह जीवन का मुहावरा बनती है एवं उसमें जीवन के अनुभवों का समावेश होता है-
वह एक साथ ही टूटते मानवीय रिश्तों, नष्ट होते मानवीय जीवन मूल्यों की साक्षी तो होती ही है। समय के राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जन-आन्दोलनों के इतिहास, को भी अपने भीतर फेटकर रखती है। वह इस धरती पर नैतिक अतिक्रमाणों और शोरगुल, आतंक और अशान्ति तथा विद्वेष और उन्माद के विरुद्ध पुख्ता हथियार बनती है। वह मनुष्य के अन्त:करण की अन्तर्कथा है, अभिव्यक्ति की संघर्षकथा है, समय, सच्चाई, संवेदना, मर्म और अंधेरों के पार जाते मनुष्य के मुकम्मल दस्त: गेज हैं तथा अपनी व्याप्ति में निरन्तरता का विन्यास है, तो मनुष्य की क्रूरता का नाटकीय तुमूल और अग्र हस्तक्षेप की प्रामाणिक ‘फ्लापी’ भी है।
अतः ऐसी स्थिति में हिन्दी और उसकी वेश बरखा ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ के महत्व के विषय में सवाल क्या दागना जो रस वेश में एक ही साथ राष्ट्रभाषा, राजभाषा, मातृभाषा तथा सम्पर्क भाषा आदि ढेरों संकल्पनाओं को साकार करती रही है जो शासन की प्रकृति के अनुकूल राजभाषा, कार्यालयीय या कामकाजी भाषा के नितान्त योग्य है, जो इस देश के बहुसंख्यकों की भाषा है, जो जन-जन की भाषा है, जो अनेक प्रान्तों की मुख्य भाषा है, जो पढ़ने-लिखने तथा समझने की दृष्टि से बेहद सरल है, जो देश की सभ्यता, संस्कृति की वाहिका है, जिसमें इस देश के कोने-अंतरे तक के विविध भाषा-भाषियों, विभिन्न वर्गावलम्बियों ने अपने उत्कृष्ट साहित्य सृजन का आधार बनाया तथा जिसमें वैज्ञानिक, तकनीकी तथा मीडिया आदि से सम्बन्धित सभी विषयों को अभिव्यक्त करने की अपूर्व क्षमता है।
स्पष्ट है, प्रयोजनमूलक हिन्दी का महत्व तथा उसकी उपयोगिता असंदिग्ध है। दरअसल, राजभाषा स्वीकार किये जाने के बाद हिन्दी के पठन-पाठन में लगे लोगों के सामने यह समस्या आयी, कि वे हिन्दी को व्यावहारिक सर्वग्राही बनाने की दिशा में यदि यत्न नहीं करेंगे तो कार्यलयीय उपयोगिता की दृष्टि से हिन्दी भाषा को समृद्ध नहीं कर पायेंगे। फलतः प्रयोजनमूलक हिन्दी के विकास के लिए अलग से प्रयत्न शुरू हुए।
यद्यपि पहले भी इस दिशा में यदा-कदा प्रयास शुरू हुए, परन्तु 1960 ई.से इस प्रयास में विशेष रूप से गति आई। हिन्दी की प्रयोजनमूलकता की स्वीकृति आज के युग की महती आवश्यकता है, जिसने हिन्दी के अध्ययन के लिए एक नई दिशा प्रदान की है। फैक्टरियों, मिलों, बैकों, उद्योग, प्रतिष्ठानों, न्यायालयों तथा सरकारी, अर्द्ध-सरकारी एवं निजी कार्यालयों आदि में काम करने वाली स्त्री-पुरुषों को हिन्दी में कार्य करने के लिए प्रोत्साहन और अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। हिन्दी के ललित एवं ज्ञानात्मक पक्ष के अध्ययन में भी प्रयोजन निहित हैं, वह पढ़े-लिखे विद्वानों की ज्ञान-पिपासा को शान्त करता है। प्रयोजनमूलकता हमें इस भाषा की शक्ति सम्पनता से परिचित कराती है, स्वभाषा के माध्यम से अपने देशवासियों से सीधे जुड़ने की प्रतिक्रिया तराशती है एवं कार्य सम्पन्नता के साथ-साथ निज भाषा के गौरव का महत्व प्रतिपादित करती है। इस लोकतांत्रिक युग में हमें किसान, मजदूर तथा कार्यालयों में काम करने वाले लिपिकों को ही नहीं अपितु अधिकारियों के लिए भी प्रयोजनमूलक हिन्दी परमावश्यक है अन्यथा वे अपने अधीन लिपिकों से तादात्म्य नहीं बिठा पायेंगे। उन्हें भी अंग्रेजी का मोह छोड़कर प्रयोजनमूलक हिन्दी की ओर आना पड़ेगा।
प्रयोजनमूलक हिन्दी की उपयोगिता एवं महत्व-
किसी भी भाषा का महत्व, उसकी उपयोगिता के आधार पर ही होता है। आवश्यकता पूर्ति का पत्येक माध्यम महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हमारी हिन्दी इतनी समर्थ हो गयी है कि वह हमारे हर प्रयोजन की पूर्ति में सक्षम एवं समर्थ है। हिन्दी की शब्द-सम्पदा काफी बढ़ चुकी है, पारिभाषिक शब्दावली का पर्याप्त विकास हो चुका है। सरकार के कामकाज, संसद की कार्यवाही, विधि विधान, सरकार की नीतियाँ तथा क्रिया-कलाप की जानकारी हमें हिन्दी के माध्यम से प्राप्त होती है। अत: प्रशासन और जनता के बीच यह एक सेतु का काम कर रही है। ज्ञान-विज्ञान के समझने का साधन भी हिन्दी ही है, समाचार, मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन भी हिन्दी ही है, अब तो कम्प्यूटर में भी इसका प्रयोग प्रारम्भ हो चुका है। अतः आज इसकी उपयोगिता अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
आज इसका भाषा क्षेत्र पर्याप्त व्यापक है। प्रशासन, परिचालन, प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग किये जाने वाले क्षेत्र तक इसकी पहुँच हो चुकी है। पयोजन मूलक हिन्दी की संकल्पना इसके अनुप्रयुक्त रूप की विशिष्ट भाषिक संरचना, भाषिक शब्दावली तथा सामाजिक सन्दर्भो के परिप्रेक्ष्य में जो वैज्ञानिकता प्रदान करती है प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा के सभी मानक रूपों को समेटे हुये होती है जिसमें अनिवार्यता, स्पष्टता, एकरूपता, सुनिश्चितता एवं औचित्य का निर्वाह किया जाता है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी की अपनी विशेष प्रयोजनपरक तकनीकी शब्दावली तथा पदावली होती है जो सरकारी कार्यालयों, मानविकी, तन्त्र ज्ञान, विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान तथा कम्प्यूटर आदि सभी ज्ञान एवं विभिन्न शास्त्रों की शाखाओं को सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान करती है। इस कारण व्यावहारिक हिन्दी की अपेक्षा प्रयोजनमूलक हिन्दी अधिक प्रयोजनार्थ तर्क संगत वैज्ञानिक तथा सार्थक मानी जा सकती है। इसमें व्याप्त अर्थवत्ता तथा मूल्यवत्ता ख्याति है।
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