हिन्दी / Hindi

व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की विशेषताएँ| Features of Hindi

व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की विशेषतायें बताइए।
व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की विशेषतायें बताइए।

व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की विशेषतायें बताइए।

व्यावहारिक हिन्दी की महत्त्वपूर्ण विशेषतायें इस प्रकार हैं-

(1) प्रयोजनमूलक:- व्यावहारिक हिन्दी का सबसे बड़ा गुण या विशेषता है प्रयोजनीयता। जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हिन्दी का विशिष्टरूप व्यावहारिक के अनुसार अनुप्रयुक्त होता है। अनुप्रयुक्तता की दृष्टि से हिन्दी के व्यावहारिक हिन्दी रूपों में राजभाषा, कार्यालयी, वाणिज्यिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में प्रयुक्त हिन्दी का समावेश होता है।

(2) वैज्ञानिक स्वरूप:- व्यावहारिक हिन्दी की अन्य दूसरी विशेषता है उसकी वैज्ञानिकता। व्यावहारिक हिन्दी प्रायोगिक या अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान (Applied Linguistics) के अन्तर्गत एक विशिष्ट अध्ययन क्षेत्र हैं। किसी भी विषय के तर्क-संगत, कार्य-कारण भाव से युक्त विशिष्ट ज्ञान पर आश्रित प्रवृत्ति को वैज्ञानिक कहा जा सकता है। इस दृष्टि से व्यावहारिक हिन्दी सम्बन्धित विषय-वस्तु को विशिष्ट तर्क एवं कार्य कारण सम्बन्धों पर आश्रित नियमों के आधार पर विश्लेषित पर रूपायित करता है। व्यावहारिक हिन्दी की अध्ययन तथा विश्लेषण की प्रक्रिया विज्ञान की विश्लेषण एवं अध्ययन प्रकिया से भी अत्यधिक निकटता रखती है। व्यावहारिक हिन्दी का मुख्य आधार पारिभाषिक शब्दावली और तकनाकी का प्रयोग है जिन्हें विज्ञान के नियमों के अनुसार सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक कहा जा सकता है।

(3) सामाजिकता- हिन्दी की व्यावहारिक हिन्दी मूलतः सामाजिक गुण विशेषता है। सामाजिकता तथा सम्बन्ध मानविकी से हैं। व्यावहारिक हिन्दी के निर्माण एवं परिचालन का सम्बन्ध तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न ज्ञान शाखाओं से हैं। सामाजिक परिस्थिति, सामाजिक भूमिका तथा सामाजिक स्तर के अनुरूप व्यावहारिक हिन्दी के प्रयुक्ति स्तर तथा भाषा रूप प्रयोग में आते हैं। सामाजिक विज्ञान के समान व्यावहारिक हिन्दी में अन्तर्निहित सिद्धान्त और प्रयुक्त ज्ञान मनुष्य के सामाजिक प्रयुक्तिपरक क्रियाकलापों का कार्य कारण सम्बन्ध से तर्क-निष्ठ अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। अत: व्यावहारिक हिन्दी में सामाजिकता के तत्व एवं विशिष्टता विद्यमान देखे जा सकते हैं।

(4) भाषिक विशिष्टता- व्यावहारिक हिन्दी की स्वतन्त्र सत्ता और महत्ता को रूपायित कर भाषिक विशिष्टता उसे सामान्य या साहित्यिक हिन्दी से अलग करती है। अपनी शब्द ग्रहण करने की अद्भुत शक्ति के कारण व्यावहारिक हिन्दी में अनेक भारतीय तथा पश्चिमी भाषाओं के शब्द भण्डार को आवश्यकतानुसार ग्रहण कर अपनी शब्द सम्पदा को बढ़ाया है। व्यावहारिक हिन्दी में तकनीकी एवं पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग अनिवार्य रूप से विद्यमान रहता है जो उसकी भाषिक विशिष्टता को रेखांकित करता है। व्यावहारिक हिन्दी की भाषा सटीक, सुस्पष्ट, गम्भीर, वाच्यार्थ प्रधान, सरल तथा एकार्थक होती है। इसमें कहावतें, मुहावरे, अलंकार तथा उक्तियाँ आदि का जरा भी प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी भाषा संरचना में तटस्थता, स्पष्टता एवं निर्वेयक्तिकता स्पष्ट रूप से विद्यमान रहती है। कर्मवाच्य प्रयोग का बाहुल्य दिखाई देता है। इसी प्रकार व्यावहारिक हिन्दी में जो भाषिक विशिष्टता तथा विशिष्ट रचनाधर्मिता दृष्टिगत होती है, वह बोलचाल की हिन्दी तथा साहित्यिक हिन्दी में दिखाई नहीं देती है।

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