प्रयोजनमूलक भाषा किसे कहते हैं? इसकी समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए उनका समाधान प्रस्तुत कीजिए।
प्रयोजनमूलक भाषा किसे कहते हैं? – किसी भी राष्ट्र के जनसामान्य की विचार- विनिमय, सरकारी संवाद, पत्राचार आदि में जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है वह वहाँ की प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है। भारतीय संविधान में राजभाषा विषयक हिन्दी प्रावधानों के अन्तर्गत अनुच्छेद 343 (1) में यह स्पष्ट किया गया है कि “भारत संघ की राजभाषा हिन्दी लिपि और लिपि देवनागरी होगी और शासकीय प्रयोजनों के प्रयोग हेतु अंकों का प्रयोग-रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
भाषा के प्रयोजन से आशय- विश्व की प्रत्येक भाषा के दो रूप होते हैं प्रथम बोलचाल की सामान्य भाषा और द्वितीय भाषा का लिखित रूप। सम्पूर्ण विश्व की भाषाओं में यही दो रूप पाए जाते हैं। एक व्यक्ति तब तक अपने भावों विचारों को व्यक्त करने में जितनी सामर्थ्यवान लिखित भाषा है उतनी बोलचाल की भाषा नहीं। लिखित भाषा राष्ट्र वर्ग के मूलत: दो भेद होते हैं प्रथम – साहित्यिक भाषा द्वितीय -व्यावहारिक भाषा। यही व्ययावहारिक भाषा राष्ट्र वर्ग शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, प्रशासन तथा न्याय आदि क्षेत्रों में दैनिक प्रयोग में लायी जाती है अत: यही प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है।
व्यावहारिक रूप से सामान्यता किसी भाषा का स्वरूप उस भाषा-भाषी सभी पर लागू होता है अत: व्यावहारिक या प्रयोजनमूलक भाषा का प्रयोग क्षेत्र भाषा के प्रयोग के आधार पर होता है जबकि साहित्यिक भाषा की परिधिकाल और क्षेत्र से परे होती है। जब किसी भाषा का विकास स्वतः होता है तब भाषागत संस्कार की आवाश्यकता नहीं होती परन्तु जब भाषा का प्रयोग जन सामान्य हेतु समान रूप से किया जाता है तो आवश्यक है कि उस भाषा का ऐसा प्रमाणिक रूप बनाया जाए जो सर्वग्राह्य या सर्वसुलभ हो।
भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है अत: यहाँ की हिन्दी ही प्रयोजनमूलक भाषा है क्योकि हिन्दी ही भारत की व्यावहारिक और सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा है। इन सब तथ्यों के आधर पर कहा जा सकता है कि प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ है-“शिक्षा, विधि एवं प्रशासन में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी का स्वरूप।”
इस प्रकार हिन्दी के प्रयोजनमूलक होने से आशय यह है कि राजभाषा हिन्दी का क्रियान्वयन कैसा है। प्रशासनिक एवं अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग किस रूप में हो और उसकी व्यवस्था कैसे की जाए। यह कार्य सरकार का है इसी कारण संविधान में हिन्दी को प्रयोजनमूलक बनाने सम्बन्धी अनेक दिशाएं निर्धारित की गई थीं किन्तु प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्रियान्वयन की भारतीय संविधान की अवधारणा का रूप विकृत कर दिया गया।
प्रयोजनमूलक हिन्दी की समस्याएँ
साहित्यिक दृष्टि से देखा जाए तो हिन्दी संस्कृत से निकली एक उत्कृष्ट भाषा है। कहा जाता है कि यदि हिन्दी को व्यवहार में अर्थात सरकारी कामकाज में लाया जाएगा तो अनेक कठिनाइयाँ सामने आयेंगी क्योंकि सरकारी प्रयोजनकों के लिए प्रयुक्त प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त शब्दावली की एकरूपता नहीं है। इस कारण हिन्दी के प्रयोजनमूलक रूप के प्रयोग में समस्या आती है। हिन्दी के व्यावहारिक रूप में आने वाली कठिनाइयों या समस्याओं को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।
1. अंग्रेजी के पारिभाषित शब्दों का रूढ़ पर्याप्त होना- हिन्दी के व्यावहारिक रूप में आने का मूल कारण यह है कि हिन्दी साहित्यिक व श्रेष्ठ भाषा है। यहाँ एक शब्द के विविध प्रयोग है यथा- Director को हिन्दी में निदेशक अनुदेशक तथा संचालक कहा जाता है। जहाँ हिन्दी में उसके प्रयोग स्थान से अर्थ परिवर्तन होता है किन्तु अंग्रेजी में इस अर्थ हेतु केवल एक शब्द है Director जो व्यावहारिक है अत: हिन्दी अपने शब्द विस्तार में भव्य तो हैं किन्तु अंग्रेजी की तरह सामान्य नहीं अपितु विशिष्ट है उसके बाद भी हिन्दी का प्रयोजनमूलक रूप सम्भव है।
2. अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की समस्या- कुछ लोग हिन्दी को क्लिष्ट मानते हैं और उसका अंग्रजी अनुवाद सरल समझकर हिन्दी को प्रयोजनमूलक भाषा बनाने में रुकावट डालते हैं। उनका कहना है इंजीनियर शब्द के लिए हिन्दी में अभियन्ता गारंटी के लिए प्रत्याभूति, टेक्नॉलोजी हेतु प्रौद्योगिकी आदि क्लिष्ट शब्द प्रयोग किए जाते हैं जो व्यावहारिक शब्द प्रयोग में सम्भव नहीं हैं।
3. हिन्दी टंकण में जटिलता- हिन्दी के प्रयोजनमूलक रूप की स्थापना में यह भी आरोप लगाया जाता है कि हिन्दी का टंकण कार्य उसके स्वर और व्यंजन अलग-अलग होने के कारण जटिल है जिससे कार्यालयों में हिन्दी प्रयोग करना कठिन प्रतीत होता है जबकि अंग्रेजी में टंकण कार्य अत्यन्त सरल व सुगम है।
4. हिन्दी में तार भेजने की असुविधा- हिन्दी में तार लिखने में असुविधा का मूल कारण तार का अंग्रेजी शब्दानुवाद जो हिन्दी करते समय वाक्य दोष करता है।
5. हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों के अनेक अर्थ के कारण कठिनाई- हिन्दी के प्रयोग में यह समस्या भी प्रधान है कि अंग्रेजी के अनेक अर्थ हिन्दी के एक शब्द में सीमित हो जाते हैं जिससे विचार अभिव्यक्ति में कठिनाई आती है।
6. अंग्रेजी के आम प्रचलित शब्दों के स्थान पर हिन्दी शब्दों की कठिनाई- अंग्रेजी शब्द रेलवे स्टेशन, साइकिल, रेल आदि को हिन्दी क्रमशः लौह पथ-गामिनी विश्राम स्थल, द्विपदिचक्रिका, लौह पथ गामिनी है जो व्यावहारिक रूप से हिन्दी में प्रयोग करना थोड़ा कठिन है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी की समस्याओं का समाधान व निराकरण
भारत के गौरव को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यदि प्रयास किया जाए तो निश्चिय रूप से हम हिन्दी को प्रयोजनमूलक जनसामान्य के आम काम काज की संवैधानिक भाषा में प्रतिस्थापित कर सकते हैं। ऊपर जो समस्याएँ इंगित की गई हैं उनको क्रमश: इस प्रकार निराकरण करके इस महत्वपूर्ण कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है-
1. अंग्रेजी के पारिभाषिक शब्दों के स्थान पर भाषा के भाव के आधार पर हिन्दी का शब्द पर्याय प्रयुक्त करने से हिन्दी का शब्द चमत्कार बढ़ेगा तथा भाषा पुष्ट होगी।
2. अनुवाद करते समय भाव महत्वपूर्ण होता है। यदि शब्दों से परे विचार करें तो अंग्रेजी और हिन्दी के अनुवाद की समस्या का समाधान स्वतः हो जाएगा।
3. हिन्दी टंकण में यद्यपि जटिलता है किन्तु अभ्यास से इस जटिलता को दूर किया जा सकता है।
4. हिन्दी अपनी भाषा है इसमें शब्दों की प्रामाणिकता निर्धारित कर लेने से तार आदि भेजने में कोई कठिनाई नहीं आ सकती है।
5. हिन्दी और अंग्रेजी दोनों शब्दों का भण्डार अथाह है जहाँ जैसा शब्द उपयुक्त हो विवेक के अनुसार प्रयोग करने से इस समस्या का निदान होगा।
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