‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ (मनोबल)
प्रस्तावना- मनुष्य का जीवन आशाओं-निराशाओं, उतार-चढ़ावों, सुखों-दुखों से भरा हुआ है, लेकिन जो व्यक्ति इन सभी परिस्थितियों का सामना खुशी-खुशी करता है, वही सच्चा मनोबली होता है। यह प्रत्येक मनुष्य के भाग्य पर निर्भर करता है कि उसे सफलता मिलती है या असफलता। कुछ मनुष्यों के जीवन में सफलता आसानी से आ जाती है, तो किसी-किसी को बार-बार असफलता तथा पराजय का मुँह देखना पड़ता हैं, कुछ व्यक्ति अनुकूल सहायता, अनुकूल प्रेरणा व वातावरण मिलने पर भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। बाह्मा रूप से ये हृष्ट-पुष्ट, अच्छे खाते-पीते लगते हैं, परन्तु ये जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं, तथा असफलताओं और संघर्षों से दूर भागते हैं। इसके विपरीत कुछ व्यक्ति बाह्या रूप से एकदम दुबले पतले, दीन-हीन लगते हैं, परन्तु उनकी इच्छा शक्ति के सामने असफलताएँ भी घुटने टेक देती है। अपनी इच्छाशक्ति के बल पर वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं। यह एक ‘दैवीय’ गुण है जिसे ‘मनोबल’ कहा जाता है।
मानसिक शक्ति एवं इच्छाशक्ति- मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करती है। जिस व्यक्ति की इच्छाशक्ति जितनी बलवती होगी, वह उतना ही दृढ़ संकल्प वाला होगा। ऐसे व्यक्तियों के सामने पहाड़ झुक जाते हैं, नदियाँ भी अपना रुख मोड़ लेती है। दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर ही सावित्री अपने पति सव्यवान को यमराज के हाथों से छीन लाई थी। अपनी प्रबल इच्छाशक्ति के बल पर ही भीष्म पितामह ने इच्छा मृत्यु प्राप्त की थी। भीष्म पितामह जब मृत्युशैया पर लेटे थे तो उस समय सूर्य दक्षिणायन थे और भीष्म पितामह सूर्य उत्तरायण पर प्राण त्यागना चाहते थे और ऐसा ही हुआ। यदि कोई दृढ़ संकल्प कर कुछ भी हासिल करने की ठान लें तो कोई भी रुकावट या बाधा उसे नहीं रोक सकती। ऐसा नहीं है कि महान व्यक्तियों को सफलता आसानी से मिल जाती है, वे भी संघर्ष करके ही सफलता की ऊँचाईयों को छू पाते हैं अन्तर केवल इतना सा होता है कि महान व्यक्तियों के हौसले बुलन्द होते हैं, जबकि एक साधारण मनुष्य जल्दी ही असफलताओं के सामने घुटने टेक देता है। विषम परिस्थितियों का सामना सभी को करना पड़ता है, परन्तु जो हँस कर इनसे बाहर आ जाता है, वही सच्चा महापुरुष होता है।
मन की हार : सबसे बड़ी हार- मन के हारने से जीती हुई बाजी भी हार में बदलते देर नहीं लगती। यदि हम अपने प्रतिद्वंद्वी का सामना डटकर करेंगे, तो वह हमें दबा नहीं पाएगा, हमारे ऊपर अत्याचार नहीं कर पाएगा, लेकिन जैसे ही हम डरकर हार मान लेते हैं, सामने वाला व्यक्ति इस बात को समझ जाता है। राणा-सांगा एवं बाबर के युद्ध के दौरान भारतीय सेना का मनोबल टूट गया था, और बाबर की सेना विजयी हो गई थी, जिसका परिणाम भारत में विदेशी शासन के रूप में निकला।
मन की जीत : सच्ची जीत- कमजोर मानसिकता वाले लोग रस्सी को भी साँप समझकर भयभीत हो जाते हैं, तथा कार्य को प्रारम्भ करने से पहले ही हार कर बैठ जाते हैं, परन्तु दृढ़ इच्छाशक्ति वाले मनुष्य साँप को भी रस्सी जैसी मामूली वस्तु समझकर उसका सामना करते हैं तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही शान्त होते हैं। इच्छाशक्ति एक छोटे बच्चे में भी हो सकती है, वही एक बड़े व्यक्ति में भी इच्छाशक्ति का अभाव हो सकता है। कितने ही साहसी बच्चे इच्छाशक्ति के बल पर ही डूबते को बचा लेते हैं, आग में कूदकर किसी की रक्षा कर लेते हैं तो कभी बड़े-बड़े चोर-डकैतों के भी छक्के छुड़ा देते हैं। वीर मनुष्य हमेशा संघर्षरत जीवन जीते हैं। संघर्ष के बल पर ही महान नेपोलियन ने ‘असफलता’ शब्द को अपने शब्दकोश में कोई स्थान नहीं दिया था। संघर्ष ही कर्म है और सच्चा कर्म ही जीवन है। मन के योग से ही कार्यसिद्धि होती है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इतना मजबूत अवश्य होना चाहिए कि वह हर संकट का मुकाबला डटकर कर सके।
मनोबल का महत्त्व- जिस प्रकार हर मनुष्य में एक सी शारीरिक क्षमता नहीं होती, उसी प्रकार मानसिक शक्ति भी सभी में एक समान नहीं होती। यदि किसी में शारीरिक क्षमता की कमी हो तो उसे उचित खान-पान अथवा व्यायाम आदि द्वारा पुनः प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु जिस व्यक्ति में मानसिक शक्ति अथवा मनोबल की कमी होती है उसे वह स्वयं ही प्राप्त कर सकता है क्योंकि शारीरिक शक्ति से अधिक मानसिक शक्ति मूल्यवान होती है। जब हम महापुरुषों के जीवन-चरित्र पढ़ते हैं, तो उनके द्वारा किए गए कल्पनातीत कार्यों को देखकर बेहद आश्चर्य होता है। कैसे महात्मा गाँधी जैसे पतले-दुबले इंसान ने इतने बलशाली अंग्रेजों का सामना किया जो वे भारत छोड़ने पर मजबूर हो गए थे। उत्तर एकदम साफ है, गाँधी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मजबूत इरादों के सामने अंग्रेजों ने घुटने टेक दिए थे। हमारे सभी महापुरुषों जैसे सुभाष चन्द्र बोस, चाचा नेहरू, लाजपत राय, गोखले, भगत सिंह आदि के संघर्ष उनके दृढ़ मनोबल की ही पहचान है। किसी ने ठीक ही कहा है-
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
परमात्मा को पाइये, मन ही के परतीत।”
मनुष्य मन के विश्वास से ही ईश्वर को भी पा सकता है। मन के हारते ही हिम्मत टूट जाती है, शरीर निष्क्रिय हो जाता है, लेकिन जब तक मन नहीं हारता, तब तक शरीर में भी अदम्य साहस भरा रहता है। इसीलिए ठीक ही कहा भी गया है कि-
“हारिये न हिम्मत, विसारिये न हरि नाम,,
जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।”
उपसंहार- निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि जिस कार्य को पूरे मन से, लगन से तथा धैर्य के साथ किया जाए उसमें सफलता अवश्य मिलती है। हाँ कभी-कभी सफलता मिलने में देरी अवश्य हो सकती है, परन्तु सफलता मिलती अवश्य है। व्यक्ति का उच्च मनोबल ही समस्त सफलताओं की कुंजी है क्योंकि ‘मानसिक शक्ति के संचय में ही सच्ची सफलता का अंकुर फूटता है।’
अतएव मन के योग से विजय निश्चित है वही मन के हार जाने पर पराजय का मुँह अवश्य देखना पड़ता है।
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