दैव-दैव आलसी पुकारा पर निबंध
प्रस्तावना- मानव या तो भाग्यवादी होता है या फिर पुरुषार्थी । भाग्यवादी मनुष्य भाग्य के सहारे जीता है, असफल होने पर भाग्य को कोसता है तथा सफलता मिल जाने पर स्वयं को भाग्यशाली मान बैठता है जबकि पुरुषार्थी पुरुषार्थ पर भरोसा करता है। वह भाग्य की सत्ता को नकार कर परिश्रम को महत्त्व देता है तथा भाग्य को भी अपना दास बना लेता है। भाग्यवादी मनुष्य सभी कार्य भाग्य के भरोसे छोड़कर आलसी जीवन जीता है इसीलिए आलसी मनुष्य के विषय में कहा गया है- “कायर मन का एक अधारा, दैव दैव आलसी पुकारा।”
पुरुषार्थ की उपयोगिता– धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष जैसे तत्त्वों को मिलाकर पुरुषार्थ बनता है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने भी इन्हें ही जीवन का लक्ष्य बताया है। इन चारों तत्त्वों को जिसने प्राप्त कर लिया, वह जीवन में सभी सुख प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्चात् भी मोक्ष पाता है। ये तत्त्व आसानी से प्राप्त नहीं होते, वरन् कठोर परिश्रम तथा तप द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। जो व्यक्ति सच्चा उद्योगी, वीर, परिश्रमी, आस्थावान, निडर होता है, वही संसार के सभी सुखों का उपभोग कर सकता है। ऐसे परिश्रमी व्यक्ति के लक्ष्मी भी कदम चूमती है क्योंकि कहा भी गया है, “उद्योगिन पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी।” जो व्यक्ति मेहनत करके अपनी रोजी-रोटी कमाता है, परिश्रम करके भोजन करता है, उसका स्वाद ही कुछ और होता है। ऐसे भोजन में स्वाद के साथ सन्तुष्टि भी होती है। पुरुषार्थी व्यक्ति घर, ऑफिस, मित्रों सभी स्थानों पर सम्मान पाता है क्योंकि वह किसी पर आश्रित नहीं होता, वरन् वह तो दूसरों का भी काम करना अपना कर्त्तव्य मानता है अर्थात् पुरुषार्थी को उसके लक्ष्य में सफलता अवश्य मिलती है, लक्ष्मी उसका वरण करती है, तथा सफलता उसे गले लगा लेती है। पुरुषार्थ से ही मनुष्य का जीवन बाधारहित होता है क्योंकि वह अपने रास्ते में आई बाधा को अपने उच्च मनोबल तथा पुरुषार्थ के बल पर पार कर जाता है। संसार का प्रत्येक सुख, समृद्धि, वैभव कर्मठ व्यक्ति के चरणों तले न्यौछावर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति अपना भाग्य अपने आप लिखता है। हमारा इतिहास ऐसे महापुरुषों के उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिन्होंने अपने पुरुषार्थ के बल पर सफलता की ऊँचाईयों को छुआ है। इसलिए पुरुषार्थ के महत्त्व को कोई भी नहीं नकार सकता।
भाग्यवादी दृष्टिकोण- आलसी व्यक्ति ‘दैव’ अर्थात् भाग्य को अपने रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करते हैं। ऐसे लोगों का मत होता है कि होता वही है, जो किस्मत में लिखा होता है, इसलिए अधिक भाग-दौड़ करने से कोई लाभ नहीं है। भाग्य होता अवश्य है, लेकिन पुरुषार्थ के साथ। पुरुषार्थ के साथ यदि भाग्य भी मिल जाता है तो आदमी सफलता की पराकाष्ठा छूता है लेकिन केवल भाग्य के सहारे कुछ भी सम्भव नहीं है। भाग्यवादी दृष्टिकोण वाले व्यक्ति सोचते हैं-
“रहिमन चुप है बैठिए, देख दिनन को फेर।
जबनी के दिन आइ हैं, बनत न लगि है बेर ॥”
ऐसे आलसी लोग कवि रहीम द्वारा किसी विशेष परिस्थितिवश कही बात को ही अपने जीवन का मूल मन्त्र बना लेते हैं। ऐसे लोग मानते हैं कि भाग्य पर किसी का अधिकार नहीं होता। एक मजदूर भी सुबह आठ से लेकर देर रात तक काम करता है, फिर भी रुखी-सूखी खाकर गुजारा करता है, जबकि बड़े-बड़े सेठ खाली बैठकर सोने की थाली में स्वादिष्ट पकवान खाते हैं अब यह भाग्य नहीं तो और क्या है? ऐसी परिस्थितियाँ देखकर ही किसी ने ठीक ही कहा है-
“भाग्य फलति सर्वत्र न तु विद्या न तु बाहुबलम्।”
भाग्यवादी मनुष्यों के पास अपने पक्ष में अनेक तर्क रहते हैं। कभी वे भगवान श्रीराम के वनवास में रहने को उनका भाग्य मानते हैं, तो कभी भगवान श्री कृष्ण का अपनी माता से दूर रहना। कभी वे राजा हरिश्चन्द्र की निर्धनता को भाग्रा मानते हैं तो कभी भीम जैसे पराक्रमी का रसोइया बनने को उसके विपरीत भाग्य का नाम देते हैं। परन्तु यह भी सच है कि एक दो उदाहरणों को यदि छोड़ दिया जाए तो परिश्रमी व्यक्ति ही संसार में यश तथा सम्मान पाता है आलसी व्यक्तियों के लिए तो गुमनामी भरा जीवन ही होता है।
आलस्य : सबसे बड़ा शत्रु- मनुष्य का सबसे कटु शत्रु आलस्य ही है, जो उसकी समस्त चेतनाएँ नष्ट कर देता है। आलस्य से बौद्धिक तथा आत्मिक शक्तियों का पतन होता है। आलस मनुष्य को यदि एक बार अपनी पकड़ में ले ले तो उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल है। आलसी व्यक्ति अपने जीवन से निराश होकर गुमनामी तथा अभाव में जीता है क्योंकि वह पुरुषार्थ तो कर नहीं सकता। आलासी विद्यार्थी कभी परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला पाता, आलसी व्यापारी अपना व्यापार आगे नहीं ले जा पाता, आलसी कर्मचारी अपने बोस को प्रसन्न नहीं कर सकता। मनुष्य के गुण विशेषकर पुरुषार्थ उसे सबकी नजरों से ऊँचा उठाते हैं, जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। आलस्य घर, परिवार, दफ्तर, स्कूल, देश, विश्व सभी के लिए हानिकारक है। आज जो हम विज्ञान के आविष्कारों का लाभ ले रहे हैं, ये वैज्ञानिकों की लगन तथा पुरुषार्थ का ही परिणाम है। खाली बैठकर भाग्य के सहारे जीने से कुछ भी सम्भव नहीं है।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है ‘दैव-दैव’ पुकारने से कोई लाभ नहीं है, सफलता तो ‘पुरुषार्थ’ करने से मिलती है। हमारे महापुरुषों ने डटकर अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अंग्रेजों का सामना किया था, यदि वे भी भाग्य के भरोसे बैठे रहते तो आज भी हम अंग्रेजो के गुलाम होते। महाराणा प्रताप यदि भाग्य भरोसे रहकर अधीनता स्वीकार कर लेते तो क्या वे पूजनीय होते? न्यूटन, एडिसन, शेक्सपीयर, कालिदास आदि महान विभूतियाँ साधारण परिवार में पैदा होकर भी पुरुषार्थ के बल पर जग प्रसिद्ध हुए हैं। ‘मैथिलीशरण गुप्त’ जी के ये पंक्तियाँ हमें पुरुषार्थ का महत्त्व समझाती है-
“न पुरुषार्थ बिना वह स्वर्ग है, न पुरुषार्थ बिना अपवर्ग है।
न पुरुषार्थ बिना क्रियता कहीं, न पुरुषार्थ बिना प्रियता कहीं।
सफलता वर-तुल्य वरो, उठो। पुरुष हो पुरुषार्थ करो, उठो।”
Important Links
- सूखे की समस्या पर निबंध | Essay on Drought Problem in Hindi
- सामाजिक समस्याएँ पर निबंध | Essay on Social Problems in Hindi
- ग्रामीण जीवन की समस्याएँ पर निबंध | Essay on Problems of Rural Life in Hindi
- महँगाई की समस्या पर निबंध | Essay on Inflation Problems in Hindi
- महानगरों की अनगिनत समस्याएँ पर निबंध | Essay on Countless Problems of Metros in Hindi
- राष्ट्रीय-एकता पर निबंध | Essay on National Unity in Hindi
- 21वीं सदी का भारतवर्ष पर निबंध | Essay on 21st century India year in Hindi
- दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थल पर निबंध | Essay on major tourist places of Delhi in Hindi
- भारत-पर्यटको के लिए स्वर्ग पर निबंध | Essay on India-Paradise for Tourists in Hindi
- रक्षाबन्धन पर निबंध: पवित्र धागों का त्योहार | Eassy on Rakshabandhan
- दीपावली पर निबंध : दीपों का त्योहार | Festival of Lamps : Eassy on Diwali
- बाल दिवस पर निबंध – Children’s Day Essay in Hindi
- शिक्षक-दिवस पर निबंध | Eassy on Teacher’s Day in Hindi
- गणतंत्र दिवस पर निबंध प्रस्तावना उपसंहार| Republic Day in Hindi
- जीवन में त्योहारों का महत्त्व | Essay on The Importance of Festivals in Our Life in Hindi
- स्वतंत्रता दिवस पर निबंध | Independence Day Essay In Hindi
- आधुनिक मीरा : श्रीमती महादेवी वर्मा पर निबंध – Essay On Mahadevi Verma In Hindi
- आधुनिक मीरा : श्रीमती महादेवी वर्मा पर निबंध
- मुंशी प्रेमचंद पर निबंध- Essay on Munshi Premchand in Hindi
- कविवर जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध – Kavivar Jaishankar Parsad par Nibandh
- गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध | Essay on Goswami Tulsidas in Hindi
- कविवर सूरदास पर निबंध | Essay on Surdas in Hindi
- महान कवि कबीरदास पर निबन्ध
- कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबन्ध
- कल्पना चावला पर निबंध | Essay on Kalpana Chawla in Hindi
- कंप्यूटर पर निबंध हिंदी में – Essay On Computer In Hindi
- Essay on CNG सी.एन.जी. के फायदे और नुकसान
- डॉ. मनमोहन सिंह पर निबन्ध | Essay on Dr. Manmohan Singh in Hindi
Disclaimer