विज्ञान : वरदान या अभिशाप पर निबंध
प्रस्तावना- विज्ञान का शाब्दिक अर्थ होता है ‘विशेष ज्ञान’ । आज का युग विज्ञान के चमत्कारों का युग है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र चाहे वह धर्म हो, राजनीति हो अथवा शिक्षा, सभी विज्ञान के आविष्कारों के महत्त्व से परिपूर्ण हैं। आज कोई भी मनुष्य बिना विज्ञान के अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। विज्ञान भी सूर्य, चाँद, अग्नि, जल, वायु आदि की तरह सुखकारी भी है तथा दुखकारी भी। यदि विज्ञान के आविष्कारों का प्रयोग मानव कल्याण के लिए किया जाए तो यह ईश्वर प्रदत्त वरदान है लेकिन जब वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग विनाश के लिए किया जाए, तो सारी सभ्यता तथा मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में आ जाता है। विज्ञान के सकारात्मक पहलूओं के एक कदम आगे साक्षात् स्वर्ग है तथा विज्ञान के नकारात्मक पहलूओं के आगे कुछ भी नहीं है, केवल विनाश-ही-विनाश है।
विज्ञान : एक महान वरदान- विज्ञान इस पृथ्वी पर एक कल्पवृक्ष की भाँति अवतरित हुआ है। इसने मानव की चिरसंचित इच्छाओं की पूर्ति की है। विज्ञान की प्रगति के बल पर ही आज मानव सभ्यता के ऊँचे से ऊँचे गिरि शिखरों पर बढ़ रहा है। यदि विज्ञान की इस नयनाभिराम देन को प्राचीन काल का मानव अपनी आँखों से देख ले तो वह तो दाँतों तले अंगुली ही दबा लेगा। विज्ञान ने हमें वह सब दिया है जिस चीज की पहले हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे अर्थात् एक वन-मानुष को सुसभ्य एवं सुसंस्कृत मानव बनाने में विज्ञान का योगदान सराहनीय है। विज्ञान के कदम प्रत्येक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तथा विज्ञान का एकमात्र लक्ष्य मानव हित ही है।
चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान- चिकित्सा के क्षेत्र में आज विज्ञान ने इतनी उन्नति की है कि वह अन्धों को आँखें, बहरों को कान एवं लंगडे को पैर देने की क्षमता रखता है। पहले जो बीमारियाँ असाध्य मानी जाती थी आज उनका इलाज सम्भव है। चेचक, पोलियो, टी.बी. जैसी खतरनाक बीमारियों पर काबू पा लिया गया है। एक्स-रे एवं अल्ट्रासाउंड मशीने दैवीय वरदान साबित हो रही हैं जिनसे शरीर के अन्दरुनी रोगों का आसानी से पता चल जाता है तथा सफल इलाज भी हो जाता है। पेंसिलीन, एस्प्रो, क्रोसीन आदि औषधियाँ तुरन्त प्रभावकारी है इसीलिए ये रामबाण साबित हो रही है। सर्पगन्धा नामक बूटी से तैयार दवा रक्तचाप के सन्तुलन के लिए बहुत उपयोगी है। आज प्लास्टिक सर्जरी द्वारा हमारे नैन-नक्श बदले जा सकते हैं, कृत्रिम अंग लगाए जा सकते हैं यहाँ तक कि एक स्वस्थ व्यक्ति के अंग जैसे किडनी आदि दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित की जा सकती है।
यातायात के क्षेत्र में विज्ञान-एक वरदान- यातायात एवं संचार के क्षेत्र में विज्ञान ने बहुत उन्नति की है। मोटरकर, रेल, वायुयान, रॉकेट, समुद्री जहाज, भू-उपग्रह आदि आविष्कारों ने जैसे पूरे विश्व को एक परिवार में समेट रखा है। संचार-साधन जैसे रेडियो, दूरभाष, ग्रामोफोन, तार-रेडियोग्राम, उपग्रह आदि ने मानव जीवन एकदम सुखद, सरल व सरस बना दिया है। मुद्रण यन्त्र का आविष्कार विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण देन है जिसके कारण प्रकाशन का कार्य बहुत आसान हो गया है। शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रान्ति आई है जिससे मनुष्य अधिक जागरुक व चेतन हो रहा है।
कृषि उद्योग के क्षेत्र में विज्ञान एक वरदान- नए-नए बीजों, खादों तथा वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से आज कृषि कार्य पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है, साथ ही उत्पादन क्षमता भी बढ़ी है। उद्योग के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी मशीनें सभी वस्तुओं का निर्माण बहुत तीव्र गति से कर रही हैं। लाखों श्रमिकों को रोजगार मिल रहा है। बड़े-बड़े उद्योगों का चालन इन विशालकाय मशीनों के बल पर ही सम्भव हुआ है।
मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान एक वरदान- मनोरंजन के क्षेत्र में भी विज्ञान का योगदान अभूतपूर्व है। रेडियो, ट्रांजिस्टर, चलचित्र, दूरदर्शन आदि हमारा भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। रेडियो एक श्रव्य साधन है तो चलचित्र एवं दूरदर्शन में दृश्य व श्रव्य दोनों गुण समाहित हैं। इनके अतिरिक्त विद्युत तो सबसे महानतम वैज्ञानिक आविष्कार है। इसी ऊर्जा-शक्ति के बल पर घर तथा बाहर सभी जगह हम सुविधा सम्पन्न है। विज्ञान की अदम्य शक्ति का उल्लेख कवि ‘दिनकर’ ने इस प्रकार किया है-
“है बंधे नर के करो में वारि, विद्युत भाप,
हुक्म पर चढ़ता उतरता है, पवन का ताप,
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान
लाँघ सकता नर सरिता, गिरि, सिन्धु एक समान।”
विज्ञान : एक अभिशाप- जिस प्रकार फूल के साथ काँटे भी अवश्य होते हैं, उसी प्रकार विज्ञान के साथ अभिशाप भी जुड़े हैं। तभी तो किसी ने ठीक ही कहा है-
“घर घर में फैला आज विज्ञान का प्रकाश ।
करता दोनों काम वह नवनिर्माण और विनाश।”
यह सही है कि विज्ञान ने अनेक सुविधाएँ दी हैं, तथापि यह भी सत्य ही है कि इसी विज्ञान ने मानव के लिए नरक का द्वार भी खोला है। इसने अनेक शक्तिशाली अणुबम, परमाणु बम, स्कड मिसाइल, पैट्रियाट मिसाइल आदि बनाई है, जो केवल विनाशकारी शक्तियाँ है । विज्ञान ने मानव को पूर्णतः भोगवादी व अकर्मण्य बना दिया है। हम आज वैज्ञानिक शक्तियों के गुलाम हो चुके हैं। विज्ञान ने मानव को चतुर तो बनाया, परन्तु ईमानदारी छीन ली, इसने मानव को साधन तो दिए, परन्तु उनका सदुपयोग करना नहीं सिखाया। तभी तो आज सर्वत्र अशान्ति, कटुता, बीमारी तथा शोषण का वातावरण है। जो वैज्ञानिक उपकरण हमारे इशारे पर काम करते हैं कितनी ही बार वे हमें ही अपना निशाना बना लेते हैं। बिजली का गलत प्रयोग हमें क्षण भर में नष्ट कर सकता है। यातायात के साधनों से दुर्घटनाएँ भी अनगिनत हो रही है। कारखानों एवं बड़े-बड़े औद्योगिक केन्द्रों में हुई अनेक दुर्घटनाओं में कितने ही मजदूर अपने हाथ पैर कटवा बैठते हैं। कम्प्यूटर, इन्टरनेट, स्वचालित मशीनों एवं अन्य वैज्ञानिक उपकरणों के आविष्कारों के कारण अनेक लोग विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं, अर्थात् विज्ञान की हानियाँ भी उसके लाभों से कुछ कम नहीं हैं।
उपसंहार- इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि सत्यता की गूंज तो दोनों ही पक्षों में हैं, किन्तु सही अर्थों में दोषी विज्ञान नहीं, अपितु मानव ही है। मानव की स्वार्थलिप्सा तथा धनलोलुपता ही विज्ञान को वरदान के स्थान पर अभिशाप बना रही है। जिस प्रकार एक छुरी कसाई के हाथ में आने पर जानलेवा होती है और जब वही छुरी एक सफल डॉक्टर के हाथों ऑपरेशन करवाती है, तो जीवनदायिनी सिद्ध होती है। तभी तो कहा भी गया है, “Science is a good servant but a bad master,” अर्थात् विज्ञान अच्छा दास होने के साथ-साथ बुरा स्वामी भी है।
विज्ञान तो वह शक्ति है, जिसका उपयोग बहुत सोच-समझकर किया जाना चाहिए। यदि मानव अपनी कलुषित विचारधारा से परे स्वच्छ मन से विज्ञान के आविष्कारों का सदुपयोग अपने हित में करेगा, न कि दूसरों के अहित में तो वह हर किसी के लिए ‘अलादीन का चिराग’ ही सिद्ध होगा। इसीलिए एक कवि की ये पंक्तियाँ शत प्रतिशत सही है-
“विष्णु सरीखा पालक है, शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शुद्ध भाव से, करो आज से आराधक।”
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