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दहेजप्रथा : एक सामाजिक कलंक पर निबंध | Essay On Dowry System In Hindi

दहेजप्रथा : एक सामाजिक कलंक पर निबंध
दहेजप्रथा : एक सामाजिक कलंक पर निबंध

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दहेजप्रथा : एक सामाजिक कलंक

प्रस्तावना- समाज में किसी भी प्रथा का आरम्भ किसी अच्छे उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होता है। लेकिन कभी-कभी समय बीतने के साथ-साथ यह प्रथा ऐसी रुढ़ि बन जाती है जिससे मुक्ति पाना आसान नहीं होता। दहेज प्रथा भी एक ऐसी ही ‘सामाजिक रीति’ है, जिसका शुभारम्भ तो लड़कियों के भले के लिए किया गया था, परन्तु भाजक यह प्रथा विकृत रूप धारण कर चुकी है तथा नाना दुखो का कारण बन चुकी है। आज यह प्रथा इतनी विकृत एवं जाति को जर्जरित कर रखा था। नारी जीवन तो इसी प्रथा के कारण आज नरक बना हुआ है।

दहेज’ से अभिप्राय- भारतवर्ष में विवाह एक पवित्र संस्कार माना जाता रहा है और ‘कन्या’ के विवाह को गृहस्थ के लिए एक शुभावसर भी माना गया है।  विवाह के समय कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को जो कुछ भी प्रीतिपूर्वक दिया जाता था वह दान दक्षिणा माना जाता था। ‘कन्यादान’ के साथ ‘दक्षिणा’ आवश्यक थी। यह दक्षिणा ही ‘दहेज’ नाम से जानी जाने लगी। प्रारम्भ में माता-पिता अपनी बेटी के सुखद भविष्य के लिए यह दहेज अपनी खुशी एवं सामर्थ्य अनुसार देते हैं, परन्तु आज दहेज देना ‘विवशता’ बन चुका है।

दहेज प्रथा का शुभारम्भ- प्राचीन काल में दहेज प्रथा एक सात्विक एवं सार्थक प्रथा थी। कन्यादान के रूप में माता-पिता पति-गृह में उसकी सुख-समृद्धि की कामना करते हुए उसे वस्त्र, आभूषण, धन आदि देते थे ताकि वह अपनी गृहस्थी सुचारू रूप से चला सके। उस समय ससुराल में लड़की के सम्मान का आधार दहेज नहीं अपितु उसके गुण होते थे। वह ससुराल में अपने शील, सौन्दर्य, शिक्षा व सद्गुणों के आधार पर सम्मान पाती थी। उस समय दहेज प्रथा एक पवित्र सामाजिक व्यवस्था एवं पारिवारिक आवश्यकता थी, क्योंकि उस समय दहेज राशि तय नहीं की जाती थी।

वर्तमान समय में दहेज-प्रथा- आज के भौतिकवादी जीवन में धन का महत्त्व कुछ इस प्रकार बढ़ गया है कि लड़के वाले उसके विवाह के समय लड़की वालों से दहेज राशि तय करके अपने लड़के की पढ़ाई तथा परवरिश पर होने वाले खर्च को वसूलना चाहते हैं। लड़के के माता-पिता भी विवश होकर उन्हें अपनी सामर्थ्य से अधिक दहेज देने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि लड़की की विवाह योग्य आयु होने पर आज भी लड़की व उसके माँ-बाप को ताने सुनने पड़ते हैं। आज हमारा देश इतनी प्रगति कर रहा है, परन्तु विचारों से हम अभी भी को दहेज देने को विवश करता है। वे अपनी बेटी की विवाह उच्चकुल में ही करेंगे साथ ही दिखावा भी करेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। आज दहेज एक दानव का रूप धारण कर चुका है, जो सभी को अपने शिकंजे में कस रहा है। आज स्थिति यह है कि अधिक धन पदार्थ लाने वाली अयोग्य व कुरूप लड़की भी उच्च खानदान की बहू बन जाती है तथा सुन्दर सुशील परन्तु निर्धन परिवार की लड़की का विवाह भी मुश्किल से हो पाता है।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम- दहेज के वर्तमान कुत्सित रूप का समाज पर अत्यन्त घातक प्रभाव पड़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप समाज की अनेक स्वस्थ एवं शुभ परम्पराएँ रुग्ण, अभिशापयी एवं समाज के माथे पर कलंक बन चुकी हैं। कितने ही योग्य बेटी के माता-पिता दहेज न दे पाने के कारण अपनी बेटियों का विवाह अयोग्य, विधुर या अधिक उम्र के लड़के से कर देते हैं। इसके अतिरिक्त कई जागरुक लड़कियाँ निम्नस्तीय, अवगुणी या वृद्ध वर से विवाह करने के स्थान पर आजीवन अविवाहित रहना पसन्द करती हैं। दहेज के दुष्परिणाम तनावग्रस्त वैवाहिक जीवन के रूप में भी सामने आते हैं। कम दहेज लाने के लिए ससुराल में उसे ताने मिलते हैं, शारीरिक तथा मानसिक प्रताड़नाएँ झेलनी पड़ती हैं। इस समस्या का अन्त यही पर नहीं होता अपितु कितनी ही बार तो ससुराल वाले लड़की को जहर देकर या जलाकर की मार डालते हैं औरकई लड़कियाँ इन तानों से परेशान होकर स्वयं ही खुदकुशी कर लेती हैं।

दहेज-प्रथा को दूर करने के उपाय- इस सामाजिक कोढ़ अथवा कलंक से छुटकारा पाने के लिए हमें भरसक प्रयास करने होंगे। इसके लिए लड़के लड़कियों को आगे आना होगा। उन्हें जात-पात की तुच्छ मानसिकता से ऊपर उठकर अन्तर्जातीय विवाह करने पर जोर देना चाहिए। लड़कियों के माता-पिता को भी लड़कियों को योग्य बनाना चाहिए ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सके। इससे वर चुनने में भी आसानी हो जाती है क्योंकि योग्य लड़कियों को अच्छा वर आसानी से मिल जाता है। इस दिशा में हमारी सरकार की ओर से अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। जैसे ‘हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम’ का पारित करना। इस अधिनियम के अनुसार कन्याओं को भी अपनी पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार मिलने की व्यवस्था है। सरकार ने दहेज प्रथा को दण्डनीय अपराध घोषित किया है तथा इसकी रोकथाम के लिए ‘दहेज निषेध अधिनियम’ पारित किया है।

उपसंहार- दहेज-दानव का नाश केवल कानून द्वारा तब तक असम्भव है, जबतक सामाजिक जागृति न हो। इस दिशा में सर्वप्रथम प्रबुद्ध युवक-युवतियों को आगे आना होगा। युवकों को बिना दहेज विवाह करने का प्रण लेना होगा । युवतियों को भी दहेज के लोभी लड़के से विवाह न करने की प्रतिज्ञा लेनी होगी। ऐसे साहसी युवक-युवतियों को सम्मानित किया जाना चाहिए ताकि और लड़के-लड़कियाँ भी उनके आदर्शों पर चलकर समाज के दृष्टिकोण में जागरुकता ला सकें।

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