निबंध / Essay

कविवर जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध – Kavivar Jaishankar Parsad par Nibandh

कविवर जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध
कविवर जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध

कविवर जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध

प्रस्तावना

युग की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समय-समय पर युग-प्रवर्तकों का उदय होता रहा है। समाज एवं राष्ट्र की दशा को चित्रित करने वाला साहित्य का युगान्तकारी परिवर्तन कोई सिद्धहस्त साहित्यकार ही प्रस्तुत कर सकता है। कविवर जयशंकर प्रसाद ने हिन्दी के नाट्य साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात किया। प्रसाद जी जैसे युगान्तकारी नाटककार के आगमन के साथ ही हिन्दी नाट्य साहित्य में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने अपने भावपूर्ण ऐतिहासिक नाटकों में राष्ट्रीय जागृति, नवीन आदर्श एवं भारतीय इतिहास के प्रति अगाध श्रद्धा प्रस्तुत की है। सर्वगुण सम्पन्न इस नाटककार ने कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि विधाओं में रचना करके में हिन्दी साहित्य को सम्पन्नता प्रदान की है।

जन्म परिचय एवं शिक्षा

श्री जयशंकर प्रसाद जी का जन्म माघ शुक्ल द्वादशी सं. 1946 वि. (सन् 1889) में काशी में एक सुप्रतिष्ठित सूंधनी साहू के परिवार में हुआ था। आपको पारिवारिक सुख नहीं मिल पाया क्योंकि जब आप मात्र बारह वर्ष के थे तभी श्री देवी प्रसाद जी का निधन हो गया था। पन्द्रह वर्ष की आयु में माता तथा सत्रह वर्ष की आयु में बड़े भाई भी चल बसे। उस समय आप सातवीं कक्षा में पढ़ते थे। आपकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी। घर में ही आपने अंग्रेजी, बंगाली, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा उर्दू आदि भाषाओं का अध्ययन किया। प्रसाद अत्यन्त मेधावी तथा प्रतिभा सम्पन्न थे। आपने अल्पायु में ही काव्य रचना के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे। कवि-गोष्ठियों तथा कवि-सम्मेलनों के द्वारा आपकी प्रतिभा और अधिक निखरने लगी थी। आपकी पहली कविता नौ वर्ष की आयु में ही प्रकाश में आ गई थी। विषम परिस्थितियों के कारण आपका सम्पन्न परिवार ऋण के बोझ तले दब गया। अतः जीवन भर आपको कष्टमय जीवन जीना पड़ा था, परन्तु आपने कभी भी हार नहीं मानी। चिन्ताओं ने आपके शरीर को जर्जर कर दिया था तथा आप क्षयरोग के शिकार गए थे। 15 नवम्बर, 1937 को काशी में ही आपकी मृत्यु हो गयी।

प्रसादजी की प्रमुख रचनाएँ

सर्वगुण सम्पन्न प्रसाद जी जैसा साहित्यकार हिन्दी साहित्य में कोई दूसरा नहीं है। आपने नाटक, काव्य, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, सम्पादन आदि सभी विधाओं पर कुछ-न-कुछ अवश्य लिखा है, आप मुख्यतः नाटककार तथा कवि ही थे। आसू, झरना, प्रेम पथिक, चित्राधार, लहर, करुणालय, कानन कुसुम, कामायनी आपकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। इन सभी में कामायनी हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। कंकाल, तितली इरावती (अपूर्ण) आपके प्रसिद्ध उपन्यास हैं । आँधी, छाया, इन्द्रजाल, आकाशदीप, प्रतिध्वनि में आपकी कहानियाँ संकलित हैं। अजातशत्रु, राज्य श्री, चन्द्रगुप्त, स्कन्धगुप्त, कामना, ध्रुवस्वामिनी, एक घुट, विशाख, कल्याणी, जनमेजय का नागयज्ञ आदि आपके प्रसिद्ध नाटक हैं। आपने ‘इन्द्र’ नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया। इसके अतिरिक्त आपने दार्शनिक एवं साहित्यिक विषयों पर कुछ निबन्ध भी लिखे हैं।

काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष महाकवि प्रसाद जी को काव्यक्षेत्र में अप्रतिम लोकप्रियता प्राप्त हुई है। यो तो आपके प्रायः सभी काव्य अदभुत तथा विशिष्ट है, परन्तु ‘कामायनी’ आपकी अमर काव्यकृति है। आपने अपनी प्रतिभा के बल से काव्य के विषय तथा क्षेत्र में मौलिक परिवर्तन किए। आपने प्राचीन एवं अर्वाचीन का अद्भुत समन्वयं करके एक नई धारा को अवतरित किया। आपने अपने काव्य में नारी के कोमल अवयवों का उत्तेजक वर्णन न कर उसके आन्तरिक गुणों पर अधिक बल दिया। आपने रीति-कालीन कवियों की भाँति नारी को केवल नायिका रूप में न देखकर त्यागमयी बहिन, प्रेममयी प्रेयसी तथा श्रद्धामयी माता के रूप में भी देखा। आपने नारी का श्रद्धामयी रूप इस प्रकार प्रस्तुत किया है-

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पद तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥”

इसके अतिरिक्त प्रसादजी हिन्दी काव्य में छायावादी काव्य धारा के जनक माने जाते हैं। आपको प्रकृति से स्वभाविक प्रेम है तथा आपका प्रकृति निरीक्षण सर्वथा सूक्ष्म है तथा प्रकृति-चित्रण अत्यन्त अनुपम है।

कलापक्ष

प्रसादजी कलापक्ष की दृष्टि से भी एक महान कलाकार है। आपकी भाषा संस्कृत प्रधान है। आपकी शैली अलंकृत एवं चित्रात्मक है तथा शब्दावली समृद्ध एवं व्यापक है। आपने गद्य तथा पद्य दोनों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया है। छन्द योजना अति सुन्दर एवं आकर्षक है। प्रसादजी प्रेम पथ के सच्चे पथिक है। ‘आँसू’ कविता के द्वारा प्रसादजी ने अपनी प्रेयसी से विमुक्त हो जाने का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करते हुए सच्चे प्रेम-प्रेमिका की प्रेमानुभूति वर्णित की है-

“जो धनीभूत पीड़ा जी,
मस्तिष्क में स्मृति सी छाई।
दुर्दिन में आँसू बनकर,
वह आज बरसने आई॥”

आपने अपने काव्य में रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति, उपमा आदि अलंकारों की अद्भुत छटा प्रस्तुत की है। उपमा अलंकार का एक सुन्दर दृश्य यहाँ प्रस्तुत है-

“घन में सुन्दर बिजली सी,
बिजली में चपल चमक-सी।
आँखों में काली पुतली,
पुतली में स्याम झलक-सी॥”

नाटकीय विशेषताएँ

प्रसादजी के ऐतिहासिक नाटकों में सर्वप्रथम रचना ‘राज्यश्री’ है। इसमें हर्षकालीन भारत का सुन्दर चित्रण है। ‘अजातशत्रु’ द्वारा प्रसादजी को एक नाटककार के रूप में सबसे अधिक प्रसिद्धि मिली। चन्द्रगुप्त तथा स्कन्दगुप्त प्रसाद जी के सर्वोत्कृष्ट नाटक है। उनके नाटकों में राष्ट्रप्रेम की भावना मिलती है। ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक के एक गीत की पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं-

“अरुण यह मधुमय देश हमारा ।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ॥”

‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आपका पौराणिक नाटक है तथा ‘कामना’ तथा ‘ध्रुवस्वामिनी’ एक ऐतिहासिक नाटक है, जिसमें ‘एक पूंट’ भावनाट्य

नाटककार ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि प्राचीनकाल में भी विधवा विवाह का चलन था। अतः आपकी समस्त रचनाओं में गम्भीर चिन्तन, द्वन्द्व, सूक्ष्म चरित्र-चित्रण, गम्भीर सांस्कृतिक वातावरण तथा सुगठित कथानओं के कारण प्रसाद जी के नाटक उच्चकोटि के हैं।

उपसंहार

निःसंदेह जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के गौरव हैं। आपके नाटक अतीत के चित्रपट पर वर्तमान की समस्याओं के चित्र अंकित करते हैं। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, साहित्यिक एवं राष्ट्रीय सभी दृष्टियों से प्रसाद जी के नाटक हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। हम भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

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