प्रदूषण की समस्या पर निबंध
प्रस्तावना- हमारा भारतवर्ष एक विशाल देश है, जो लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है। आज मानव ने विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति कर ली है, किन्तु इस प्रगति ने स्वयं मानव के लिए गम्भीर समस्याएँ पैदा कर दी हैं। आज मानव प्रकृति का दोहन कर उस पर अपना अधिकार जमाना चाहता है जोकि असम्भव है। वृक्ष धरा के आभूषण कहे जाते हैं, परन्तु आज इनको तीव्रगति से काटा जा रहा है। दिन प्रतिदिन कल-कारखाने बढ़ रहे हैं। उद्योगों में प्रयुक्त कच्चा माल, रसायन तथा अवशिष्ट सब वायुमण्डल में प्रदूषण फैलाते हैं।
पर्यावरण एवं प्रदूषण- मानव पर्यावरण की उपज है अर्थात् मानव जीवन को पर्यावरण की परिस्थितियाँ व्यापक रूप से प्रभावित करती है। पृथ्वी के समस्त प्राणी अपनी बुद्धि व जीवन क्रम को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए ‘सन्तुलित पर्यावरण’ पर निर्भर रहते हैं। सन्तुलित पर्यावरण में सभी तत्त्व एक निश्चित अनुपात में विद्यमान होते हैं, किन्तु जब पर्यावरण में निहित एक या अधिक तत्त्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ या घट जाती है या पर्यावरण में विषैले तत्त्वों का समावेश हो जाता है तो वह पर्यावरण प्राणी जगत के लिए जानलेवा बन जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण के विभिन्न रूप- हर प्रकार का प्रदूषण किसी न किसी रूप में हमारे शरीर में रोगों की वृद्धि करता है। यह प्रदूषण जीवन में तनाव तथा मानसिक तथा शारीरिक व्यग्रता को बढ़ावा देता हैं।
(1) वायु प्रदूषण के कारण व प्रभाव- पृथ्वी के चारों ओर वायु का एक घेरा है, जिसे वायुमण्डल कहते हैं। इस वायुमण्डल में अनेक गैसें हैं जैसे-ऑक्सीजन (20.1%), नाइट्रोजन (79%), कार्बनडाइ ऑक्साइड (0.03%)। ये तीनों वायुमण्डल के प्रमुख घटक हैं। वायु में ऑक्सीजन की मात्रा का घटना तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड एवं कार्बन मोनोऑक्साइड सरीखी हानिकारक गैसों की मात्रा का बढ़ना वायु प्रदूषण का लक्षण है। इसके अतिरिक्त आजकल वायुमण्डल में अनेक प्रकार की हानिकारक गैसे वाहनों से निकले धुएँ के रूप में पहुंचकर वातावरण को दूषित कर रही है। वायु प्रदूषण का तेजी से बढ़ना देश में औद्योगिकरण की प्रगति का कारण है। वायुमण्डल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो जाने से नगरों में रहने वाले लोगों में श्वाँस रोग व नेत्र रोग हो जाते हैं। जब यह गैस साँस के द्वारा हमारे शरीर में पहुँचती है, तो खून की लाल कणिकाओं की ऑक्सीजन की संचित क्षमता को लाकर देती है, जिससे सिर-दर्द, चक्कर आना तथा घबराहट होना आदि जैसी बीमारियाँ हो जाती है। उच्च रक्तचाप व हृदय रोग भी वायु प्रदूषण की ही देन है।
(2) जल प्रदूषण के कारण व प्रभाव- जल बिना जीवन असम्भव है। जल के बिना मनुष्य, जीव पेड़-पौधे कोई भी नहीं जी सकता। अतः जल का शुद्ध होना अत्यावश्यक है। जल में अनेक कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज । आज हमारे अधिकांश जल स्रोत जैसे-नदी, झीलें, झरने इत्यादि कहलाता तत्त्व व गैसे घुली होती है। यदि इन तत्त्वों की मात्रा जल में आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तो वह जल अशुद्ध हो जाता है तथा यह जल प्रदूषण है प्रदूषित हो रहे हैं। कारखानों से निकला औद्योगिक कचरा नदियों आदि में बहा दिया जाता है। इससे सभी जलस्रोत दूषित हो रहे हैं, तथा भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है। मनुष्य द्वारा जल स्रोतों के पास मल-मूत्र त्याग करने, तालाबों आदि में पालतू जानवर नहलाने, तालाब या नदी के किनारे कपड़े धोने, आस-पास के वृक्षों के पत्ते एवं कूड़ा जल में गिर जाने से भी जल-प्रदूषण फैलता है। जल से अनेक खतरनाक बीमारियाँ जैसे-पेचिस, दस्त, हैजा व पीलिया आदि प्रदूषण फैलती हैं।
(3) ध्वनि प्रदूषण के कारण व प्रभाव- आजकल बड़े-बड़े नगरों में ध्वनि प्रदूषण का होना भी एक गम्भीर समस्या है। अनावश्यक, असुविधाजनक तथा अनुपयोगी शोर ही ध्वनि प्रदूषण होता है। यह विशेष रूप से अणुओं के मध्य की दूरी को कम अथवा अधिक होने से पैदा होता है। सड़क पर भारी वाहनों के चलने, रेलों के आवागमन के शोर से, लाउडस्पीकरों के शोर से, जेटयान अथवा अन्तरिक्ष में राकेट के छोड़ने से भी ध्वनि प्रदूषण फैलता है। ध्वनि प्रदूषण से अनेक बीमारियाँ जैसे-अनिद्रा, मानसिक थकान, सिर में दर्द, हृदय गति तथा रक्तचाप आदि बढ़ जाते हैं साथ ही आँखों की रोशनी मंद पड़ जाती है।
(4) रासायनिक प्रदूषण- रासायनिक प्रदूषण वह होता है जब अनेक प्रकार के हानिकारक रसायन चाहे वे गैसीय रूप में ही या तरल रूप में या फिर ठोस रूप में, वातावरण में आ जाते हैं तथा मानव जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं। हम सभी भोपाल गैस कांड से भली भाँति परिचित है। जिससे अनेक लोगों की मृत्यु हानिकारक ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ (CH,NC) के रिसने से हुई थी। वातावरण में उद्योगों व वाहनों के धुएँ से अनेक प्रकार के हानिकारक रसायन घुल रहे हैं, जिससे रसायनिक प्रदूषण तेजी से फैल रहा है।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण- विश्व के अनेक देशों द्वारा आण्विक शक्ति का निर्माण अणु प्रदूषण का कारण है। अणु-शक्ति को निश्चित अवधि से पूर्व निष्क्रिय करने तथा शत्रु देश के लिए उसका प्रयोग करने के कारण अणु-प्रदूषण होता है। जितने भी विकसित देश हैं, वे सभी भारी मात्रा में ऐसी गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पूरे विश्व का वातावरण गर्म हो रहा है, जिसे ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही उत्तरी ध्रुव पर ग्लेशियरों, बर्फ के पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही हैं और समुद्रों व महासागरों का जल स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है। पृथ्वी के चारों ओर जो ‘ओजोन’ परत है, रेडियोऐक्टिव प्रदूषण के कारण इस ओजोन परत में छेद हो गया है और वह छेद बढ़ता ही जा रहा है, जिससे पृथ्वी पर अब ये पराबैंगनी किरणे आने लगी हैं, जिससे कैंसर रोग बढ़ रहा है, जो लाइलाज बीमारी है।
प्रदूषण दूर करने के उपाय- बढ़ता प्रदूषण आज हमारी सबसे बड़ी समस्या है। यह हमारा सबसे बड़ा शत्रु है, जिसे दूर करने अथवा कम करने के उपाय अवश्य किए जाने चाहिए अन्यथा हमारा जीवन नरक से भी बदतर हो जाएगा। इस समस्या के समाधान में वनों, पेड़-पौधों, वनस्पतियों का सबसे बड़ा योगदान है। इसके लिए हमें वनों को काटने के स्थान पर उनकी सुरक्षा करनी चाहिए साथ ही अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। प्लास्टिक की थैलियाँ भी प्रदूषण का मुख्य कारण है। आज दिल्ली जैसे महानगर में सरकार की ओर से इन थैलियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है परन्तु हमारे निजी सहयोग के बिना प्रदूषण को रोकना असम्भव है।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रदूषण चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो सभी के लिए हानिकारक है और इनसे बचने की दिशा में सामूहिक व व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए।
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