निबंध / Essay

ऋतुराज बसन्त पर निबंध |Essay on Rituraj Spring in Hindi

ऋतुराज बसन्त पर निबंध
ऋतुराज बसन्त पर निबंध

अनुक्रम (Contents)

ऋतुराज बसन्त

प्रस्तावना- भारतवर्ष अनेकता में एकता का देश है तभी तो यहाँ प्रत्येक दो मास के अन्तराल पर एक नई ऋतु का आगमन होता है। केवल भारत देश में ही छः ऋतुओं का सौन्दर्य निहारा जा सकता है। बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त तथा शिशिर ऋतुएँ पूरे वर्ष हमारे तन-मन की प्यास बुझाती हैं। ये ऋतुएँ सौन्दर्य के साथ-साथ अपने साथ अनेक लाभकारी वस्तुएँ भी लेकर आती हैं। इन सभी ऋतुओं में बसन्त ऋतु की महिमा अपरम्पार है तथी तो इसे ‘ऋतुराज बसन्त’ अथवा ‘मादकता तथा उल्लास’ की ऋतु भी माना जाता है।

बसन्त ऋतु का शुभारम्भ- भारतीय गणना के अनुसार इसका समय चैत्र से वैसाख माह तक होता है। चैत्र तथा वैसाख के दो महीने ‘मधुमास’ कहलाते हैं। प्राचीन परम्परा के अनुसार इस ऋतु का प्रारम्भ माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात् बसन्त पंचमी से ही माना गया है। इस ऋतु में प्रकृति के सभी अंग मस्ती में झूम उठते हैं। इस ऋतु में न तो अधिक सर्दी होती है न अधिक गर्मी। सूर्य उत्तरायण में होता है और उसकी सीधी किरणे भारत भूमि पर पड़ती है अतः सर्दी समाप्त होने वाली होती है।

बसन्त ऋतु में अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य- इस ऋतु में प्रकृति का सौन्दर्य अपने चरम पर होता है। प्रकृति का रूप अत्यन्त भव्य, मधुमय तथा मादक हो जाता है। प्रकृति के कण कण में नवजीवन का संचार हो जाता है। वन उपवनों में हर तरफ फूलों पर मँडराती हुई तितलियाँ तथा मधुपान करने को आतुर भ्रमर अद्वितीय लगते हैं। अपने खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुशी से झूम उठते हैं। धरती के इन पुत्रों के लिए माँ धरती सोना उगलती है। अपने परिश्रम का फल प्रत्येक किसान अपनी आँखों के सामने देखकर फूला नहीं समाता। खेतों में चारों ओर सरसों के पीले फूल पीली चादर ओढ़े प्रतीत होते हैं। धरती तो एकदम नई नवेली दुल्हन जैसा शृंगार कर लेती है। हंसों की पंक्ति तो उड़ती हुई इतनी मनभावन लगती है मानो श्वेत मुक्तमाला आकाश में उड़ी चली जा रही हो। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल पूरी धरती को शृंगारमय कर देते हैं।

बसन्त ऋतु की महिमा- बसन्त ऋतु प्राकृतिक एवं आन्तरिक मादकता की ऋतु है। इस ऋतु में मानव मन सहज ही उत्कंठित हो उठता है। वृक्ष फलों से लद जाते हैं, सरोवरों में कमल खिल उठते हैं तथा बाग-बगीचे फूलों की सुगन्ध से वातावरण को और भी अधिक आलोकित कर देते हैं। इस ऋतु में हर व्यक्ति में काम करने की रुचि बढ़ जाती है। बच्चों एवं नवयुवकों में उल्लास भर जाता है तथा वृद्धों में भी नई उमंग आ जाती है। बौराए आम, वृक्षों पर कोयल की कूक मन को प्रफुल्लित कर देती है। ऋतुराज को अनुराग, प्रेम तथा स्नेह का प्रतीक तथा कामदेव का सखा माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवो की प्रेरणा से जब कामदेव भगवान शंकर की तपस्या भंग करने के लिए कैलाश पर्वत पर गया था, उस समय बसन्त भी उनके साथ था ताकि सारा वातावरण सौन्दर्ययुक्त बना रहे । कवियों की दृष्टि से भी बसन्त ऋतु अत्यन्त प्रेरणादायक, उत्साहवर्द्धक एवं रोचक ऋतु हैं। सुमित्रानन्दन पन्त बसन्त की कल्पना इस प्रकार करते हैं-

“सौरभ की शीतल ज्वाला से, फैला उर-उर में मधुर दाह।

आया बसन्त, भरा पृथ्वी पर, स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह॥”

‘कुमार सम्भव’ में कालिदास ने तथा ‘रामचरित मानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने बसन्त ऋतु का बहुत अनुपम वर्णन किया है। जयशंकर की ये पंक्तियाँ बसन्त ऋतु की ही महिमा का बखान कर रही हैं-

“नई कोपल में से कोकिल, कभी किलकारेगा सानन्द।
एक क्षण बैठ हमारे पास, मिला दोगे मदिरा मकरन्द॥”

इनके अतिरिक्त देव, पद्याकर, सेनापति आदि के बसन्त-विषयक वर्णन अति उत्तम हैं। यह मादक ऋतु तो बड़े-बड़े योगियों, साधु-तपस्वियों की तपस्या तक को भंग कर देती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मानव जीवन में हर्षोल्लास, रस तथा मस्ती भरने वाली ऋतु केवल बसन्त ऋतु ही है।

इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बसन्त ऋतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस ऋतु में नए रक्त का संचार होता है, जिससे अनेक रोग अपने आप नष्ट हो जाते हैं। चिकित्सा-विशेषज्ञों का यह मत है कि यदि इस ऋतु में मनुष्य सन्तुलित आहार तथा उचित व्यायाम करता रहे तथा प्रातःकाल का भ्रमण करे तो कोई रोग उसके निकट नहीं आ सकता। अतः सौन्दर्य तथा स्वास्थ्य दोनों की दृष्टि से बसन्त ऋतु अवर्णनीय है।

बसन्त ऋतु के मुख्य त्योहार- बसन्त ऋतु में कई महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। इस ऋतु का आरम्भ ही ‘बसन्त पंचमी’ से होता है। हिन्दुओं का प्रसिद्ध पर्व ‘होली’ इस ऋतु में ही आता है। रामनवमी, वैशाखी पर्व भी इसी ऋतु में आते हैं तथा विक्रम संवत् का आरम्भ भी बसन्त काल में ही होता है। लोग इस दिन को शुभ मानकर अपने महत्त्वपूर्ण कार्य इसी दिन प्रारम्भ करना चाहते हैं।

उपसंहार- ऋतुरात बसन्त, सृष्टि में नवीनता का प्रतिनिधि बनकर आती है तभी तो प्रकृति भी रुप यौवन सम्पन्न होकर इस ऋतु का इठलाते हुए यह कहकर स्वागत करती है-

“तुम आओ तुम्हारे लिए वसुधा ने हृदय पर मंच बना दिए हैं,
पथ में हरियाली के सुन्दर-सुन्दर पाँवडे भी बिछवा दिए हैं,
चारों ओर पराग भरे सुमनों के नए विखा लगवा दिए हैं,
ऋतुराज तुम्हारे ही स्वागत में सरसों के दिए जलवा दिए हैं।”

निःसन्देह इस ऋतु के आगमन से सारे विश्व में नवजीवन का संचार होता है। जीवन में जो स्थान यौवन का है वही स्थान ऋतुओं में ‘बसन्त ऋतु’ का है। बसन्त आगमन पर सारी दिशाएँ हरी-भरी, रंगीन तथा मदमस्त हो उठती है।

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