ग्रीष्म ऋतु बहुमूल्य पर निबंध
प्रस्तावना- भारतवर्ष के जनमानस पर प्रकृति देवी की विशेष कृपा है कि यहाँ छः ऋतुएँ-बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त तथा शिशिर हर वर्ष आती है। ऐसा सुन्दर ऋतु चक्र किसी अन्य देश में तो सोचा भी नहीं जा सकता। अन्य देश या तो बहुत ठंडे है या फिर बेहद गर्म। सभी ऋतुएँ अपने साथ अनेक पदार्थों का खजाना लेकर आती है। ग्रीष्म ऋतु का भी ऋतु-क्रम में विशेष महत्त्व है।
ग्रीष्म ऋतु का आगमन- ग्रीष्म ऋतु बसन्त ऋतु के समाप्त होने पर आती है। यह ऋतु ज्येष्ठ तथा आषाढ़ (मई व जून) के महीनों में आती है। इस ऋतु के प्रारम्भ होते ही बसन्त की कोमलता एवं मादकता समाप्त हो जाती है तथा सुगन्धित पवन का स्थान ‘साँय-साँय’ की आवाज करने वाली ‘लू’ ले लेती है। बसन्त के उन्माद तथा मादकता का स्थान आलस्य एवं क्लान्ति ले लेती है। गला प्यास से सूखने लगता है तथा पूरा शरीर पसीने से नहाया रहता है। सुबह सात बजे ही ऐसा लगता है मानो दोपहर के बारह बज रहे हो। कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ‘निराला’ ने ग्रीष्म ऋतु का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-
“ग्रीष्म तापमय लू की लपटों की दोपहरी।
झुलसाती किरणों की वर्षों की आ ठहरी ॥”
कवि बिहारी ने भी गर्मी की तपन का वर्णन इस प्रकार किया है-
“बैठि रही अति सघन वन, पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की, छाहौ चाहति छाँह ॥”
गर्मी की प्रबलता का उल्लेख- ग्रीष्म ऋतु के ताप का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता, वरन् इसे तो बस महसूस किया जा सकता है। गर्मी की प्रबलता से धरती पर रहने वाले सभी नर-नारी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे व्याकुल हो उठते हैं। भगवान सूर्यदेव सुबह जल्दी उठकर चले आते हैं और देर सांयकाल तक जाने का नाम नहीं लेते। ऐसा प्रतीत होता है मानो सूर्य भगवान भी परशुराम के समान दिन भर क्रोधाग्नि बरसाकर सांयकाल अन्धकार में लीन हो जाते हैं। गर्मियों में दिन लम्बे तथा राते बहुत छोटी होती हैं। ग्रीष्म की दोपहरी में भी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल एक साथ पड़े रहते हैं। सड़के तवे की भाँति तप जाती है लगता है जैसे वे ताप से पिघल ही जाएगी-
“बरसा रहा है, रवि अनल भूतल तवा-सा जल रहा।
है चल रहा सन-सन पवन, तन से पसीना ढल रहा॥”
रेतीले प्रदेशों जैसे राजस्थान आदि में तो स्थिति और भी भयानक हो जाती है क्योंकि वहाँ धूल भरी आन्धियाँ चलती है। ऐसी कड़कती गर्मी में अमीर लोग तो घरों में छिप जाते हैं, परन्तु किसानों तथा मजदूरों को तो तब भी काम पर जाना पड़ता हैं।
ग्रीष्म ऋतु से बचाव के उपाय- व्यक्ति अपने बचाव का रास्ता ढूँढ़ ही लेता है। साधारण आय वाले लोग अपने घरों में बिजली के पंखे लगाकर गर्मी से बचते हैं तो धनवान लोग अपने घरों में कूलर तथा वातानुकूलित आदि लगवाकर अपना बचाव करते हैं। समर्थ व्यक्ति ऐसी गर्मी में पहाड़ी इलाकों जैसे मसूरी, नैनीताल, शिमला, श्रीनगर आदि स्थानों पर चले जाते हैं। प्यास बुझाने के लिए लोग ठंडे पेय पीते हैं तथा ठंडी वस्तुएँ जैसे कुल्फी, आइस्क्रीम आदि खाते हैं। ऐसे मौसम में ठंडे तथा स्वादिष्ट फल जैसे खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, लीची, आडू, आलू-बुखारे आदि भी कुछ राहत देते हैं। इन दिनों तो बर्फ से बनी चीजे खाने में अच्छी लगती हैं तथा सूती व हल्के रंगों के कपड़े पहनने में आरामदेह होते हैं।
ग्रीष्म ऋतु की उपयोगिता- ऐसी कोई भी चीज नहीं है, जिसकी उपयोगिता न हो। गर्मी दुखदायी है, परन्तु फसलें तो सूर्य के ताप से ही पकती हैं। गर्मी से कई प्रकार के विषैले कीटाणु, मच्छर मक्खी आदि नष्ट हो जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु अपने साथ वर्षा ऋतु के आगमन की आशा लेकर आती है। लगता है कभी तो दिन का हृदय पिघल जाएगा तथा पर्वत से अजस, जलधारा धरती को तृप्त करने निकल पड़ेगी। नदियाँ पानी से भर जाएगी तथा सभी की प्यास शान्त होगी। ग्रीष्म ऋतु में ही बच्चों की छुट्टियाँ पड़ जाती है इससे उन्हें अपने मित्रों तथा रिश्तेदारों से मिलने का अवसर मिल जाता है।
ग्रीष्म ऋतु हमें दुखों को सहने की शक्ति भी देती है। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को कष्टों तथा दुखों से घबराना नहीं चाहिए, वरन् उनका सामना भी पूरी हिम्मत से करना चाहिए। रात के बाद सुबह अवश्य आती है, इसी प्रकार गर्मी के बाद वर्षा भी होगी, तब सारे कष्ट अपने आप दूर हो जाएँगे। इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु तो नारियल की भाँति है, जो बाहर से तो सख्त है, किन्तु भीतर से कोमल है। सूर्य की तीव्र किरणें ऊर्जा का साधन बनकर ऊर्जा के संकट को समाप्त करने में सहायता देती है।
उपसंहार- ग्रीष्म ऋतु से बचाव के लिए गलियों, बाजारों, सड़कों आदि पर शीतल छायादार पेड़ लगाए जा सकते हैं। स्थान-स्थान पर ठड़े पानी की प्याऊ लगवाकर जन-सेवा की जा सकती है। ग्रीष्म ऋतु तो हमें कष्ट सहने की अद्भुत शक्ति प्रदान करती है। वह हमें संकेत देती है कि कठोर संघर्ष के पश्चात् ही शान्ति एवं उल्लास का आगमन होता है। धरती माता भी तो इस ताप को झेलती है, फिर हम मनुष्य तो घरो में छिपकर भी रह सकते हैं इसलिए इस ताप की उग्रता को भी हँसकर झेलना चाहिए। कवि रहीम जी ने कहा भी है-
“जैसी परी सों सहि रहे, कह रहीम यह देह ।
धरती पर ही परत है, सीत छाँव अस मेह॥”
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