पर्वतारोहण : एक दुस्साहसपूर्ण शौकमनुष्य
प्रस्तावना- मनुष्य तथा प्रकृति का सम्बन्ध एक दूसरे के साथ बहुत गहरा ने सदा प्रकृति के संसर्ग में ही आनन्द की प्राप्ति की है। प्रकृति का प्रत्येक सौन्दर्य चाहे वे हरे भरे उद्यान हो या रेतीले सुनसान रास्ते, मानव ने खुशी ही पायी है। इसीलिए प्रकृति तथा मानव का आपसी सम्बन्ध अथाह है। अपने इसी प्रकृति सम्बन्ध के कारण मनुष्य पर्वतों से भी प्रेम करने लगा तथा पर्वतारोहण का शौकीन बन बैठा। परन्तु पर्वतारोहण कोई आम शौक नहीं है, अपितु एक दुस्साहसी तथा हिम्मतवाला मनुष्य ही पर्वतारोही बन सकता है साथ ही जिसे खतरों से खेलने में आनन्द आता हो, वही इस चुनौती को स्वीकार कर सकता है
पर्वतारोहण का अर्थ- पर्वतों के शिखरों पर चढ़ना ही पर्वतारोहण कहलाता है। पर्वतारोहण का अर्थ मसूरी, दार्जिलिंग, शिमला या काश्मीर की पक्की सड़कों पर चढ़ाई करना नहीं है, अपितु ऐसे पर्वतों पर चढ़ाई करना है, जहाँ विधिवत मार्ग न होकर उँचे-ऊँचे पहाड़ मार्ग में रास्ता रोके खड़े हो। यदि पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ से ढकी हो तो पर्वतारोहण और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। पर्वतारोहण का शौक बहुत दुर्गम एवं दुसाध्य है। कठिन एवं भयंकर मार्गों को पार कर सीधी ऊँचाई पर शिखर तक पहुँचना निःसन्देह जोखिम भरा कार्य है।
पर्वतारोहण के लिए की जाने वाली तैयारियाँ- पर्वतारोहण पर जाने से पहले मौसम की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। पर्वतारोहण अकेले नहीं, अपितु पूरे समूह के साथ किया जाता है। समूह में एक भूगोलवेता भी होना चाहिए, जो पहाड़ पर चढ़ने का मार्ग-दर्शन कर सके। पर्वतों पर वायु का दबाव कम हो जाता है इसलिए साँस लेने में परेशानी होती है इसके लिए ऑक्सीजन गैस का सिलेंडर साथ में होना चाहिए। सन्देश भेजने के यन्त्र तथा भोजन रखने के डिब्बे, खाना बनाने के लिए चूल्हा तथा सभी बीमारियों से सम्बन्धित कुछ दवाईयाँ अवश्य होनी चाहिए। हवा, पानी तथा बर्फ से बचाव के लिए विशेष प्रकार के कपड़े तथा जूते होने चाहिए। रहने के लिए तम्बू तथा पहाड़ों के मानचित्र भी साथ में ले जाना न भूले । ऊपर चढ़ने के लिए रस्सी तथा खूटियाँ, बर्फ काटने की कुल्हाड़ी, फावडे आदि भी साथ में होने चाहिए। इस सारे सामान को ढोने के लिए गाडियाँ तथा प्रशिक्षित कुली भी चाहिए। यदि कैमरा, दूरबीन आदि साथ में हो तो भी अच्छा रहता है। कोई ऐसा व्यक्ति भी साथ में वश्य होना चाहिए जिसे थोड़ी बहुत डॉक्टरी भी आती हो।
विश्व-विख्यात पर्वतारोही- विश्व भर में अनेक ऐसे साहसी पर्वता ही हुए हैं, जिनकी वीरता की गाथाएँ आज भी सभी की जुबान पर हैं। इनमें अंग्रेज पर्यटक हावर्ड वैरी, सर जॉर्ज एवरेस्ट, जनरल बूस, कप्तान हिलैरी, इविन ओल्ड तथा मैलोरी आदि प्रमुख है। भारतीय पर्वतारोहियों में बचेन्द्रीपाल तथा शेरपा तेनसिंह प्रमुख हैं। अब तो जैसे पर्वतारोहण युवा वर्ग के लिए विशेष आकर्षण का विषय बन चुका है, तभी तो कितने ही युवा प्रतिवर्ष हिमालय की दुर्गम चोटियों पर पहुँच जाते हैं। अब तो सुवतियाँ भी युवाओं की भाँति ही पर्वतारोहण करने लगी हैं। वे भी स्वयं को पुरुषों की ही भाँति निडर एवं साहसी साबित कर रही हैं।
हिमालय की प्रमुख चोटियों पर विजय- हिमालय की उच्चतम चोटी ‘एवरेस्ट’ पर अनेक बार विश्व के कुछ साहसी लोगों ने आरोहण करने का प्रयास किया है, किन्तु ये कई बार असफल ही हुए हैं। 29 मई, 1953 में कर्नल हंट के नेतृत्व में कर्नल हंट तथा शेरपा तेनसिंह ने ‘एवरेस्ट’ पर पहला कदम रखा था। ये दोनों बीस मिनट तक ‘एवरेस्ट शिखर पर रुके थे। नीलकंठ शिखर के आरोहण का प्रारम्भ ब्रिटिश पर्वतारोही श्री मीड ने सन् 1913 ई. में किया था। इसके बाद सन् 1937, 1947 एवं 1951 में भी कुछ पर्वतारोहियों ने भगवान शिव के मस्तक को छूने का प्रयास किया था, किन्तु असफल रहे थे। पहला भारतीय पर्वतारोहण दल सन् 1959 ई. में एयर वायस मार्शल एस.एन. गोयल के नेतृत्व में नीलकंठ के शिखर पर चढ़ने के लिए निकला, दूसरा दल सन् 1961 ई. में गया, जिसका नेतृत्व युवा कप्तान नरेन्द्र कुमार ने किया था। यकायक बर्फ गिरने लगी, जिससे पूरे दल का साहस टूटने लगा किन्तु ओ.पी. शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी तथा दो शेरपाओं के साथ करीब 440 फीट की चढ़ाई चढ गए। वहाँ पहुँचकर सबसे पहले उन्होंने शिवजी की उपासना की। उसके बाद तो दुर्गम शिखरों पर विजय प्राप्त करने की होड़ सी लग गई। आज तो साहसी वीरों ने ‘कंचनजंगा’ पर भी विजय प्राप्त कर ली है।
पर्वतारोहण के दौरान होने वाली कठिनाइयाँ- अब तक पर्वतारोहण करते समय कितने ही वीर हिम-समाधि ले चुके हैं, कितने ही व्यक्ति तो बर्फ की अधिकता के कारण मार्ग में ही गायब हो गए, कितनों को तूफानी-बर्फानी हवाएँ उड़ाकर मिट्टी में मिला गई। पर्वतारोहण कोई बच्चों का खेल नहीं है। पर्वतों में रास्ता खोजना, बर्फ काट-काट कर रास्ता बनाना, रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना, बर्फीली हवाओं को सहना, ठण्ड में तम्बू में रहना, स्वयं भोजन बनाना, रात्रि में भयंकर अन्धकार को चुनौती रूप में लेना, अचानक तेज बारिश आ जाने पर अपनी तथा साथियों के सामान की रक्षा करना बहुत ही कठिन कार्य है। इन सबसे अधिक यदि कोई साथी बीमार हो जाए या फिर भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ जाए तो उसे सम्भालना बहुत दूभर हो जाता है। पर्वतारोही तो अपनी जान हथेली पर लेकर चढ़ता है यदि उसे अपनी मंजिल मिल जाती है तो वह उसकी किस्मत तथा हिम्मत का मीठा फल होता है।
उपसंहार- पर्वतारोहण के लिए विशेष प्रशिक्षण लेना होता है इसके अतिरिक्त को शारीरिक शक्ति के अतिरिक्त मानसिक रूप से भी दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होना आवश्यक है क्योंकि जो खतरों से डर गया, वह पहले ही मर गया। इसके अतिरिक्त पर्वतारोहियों में त्याग, समर्पण तथा मैत्री भाव भी होना चाहिए जिससे रास्ते में वे एक-दूसरे की सहायता कर सकें। तभी तो ऐसा माना जाता है कि पर्वतारोहण का शौक एक ओर तो दुस्साहसपूर्ण कार्य है, वहीं दूसरी ओर यह बहुत मँहगा तथा सामूहिक एकता पर निर्भर शौक है।
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