नई शिक्षा प्रणाली
प्रस्तावना- उचित शिक्षा ही किसी समाज अथवा राष्ट्र की जागृति का मूल आधार है। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य नैतिक, मानसिक एवं शारीरिक सभी दृष्टियों से सुयोग्य, सदाचारी, स्वाबलम्बी तथा सुनागरिक बनाना है अर्थात् व्यक्ति अभाव में का सर्वांगीण विकास शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। शिक्षा के मनुष्य के चरित्र का विकास असम्भव है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति महात्मा गाँधी ने कहा था, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक अथवा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास से है। अतः शिक्षा एक ऐसा उपकरण है, जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझता है तथा जिससे सामाजिक उत्थान एवं राष्ट्र निर्माण के कार्य सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित ढंग से किए जाते हैं।”
प्राचीन कालीन शिक्षा– प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि रहा है। उस समय शिक्षक ही राज्य एवं राष्ट्र के सर्वशक्तिमान माने जाते थे तथा प्रशासक वर्ग एवं अधिकारी गण भी उनकी चरण धूलि से अपने मस्तक को पवित्र करते थे। आज का युग तो मशीनी युग है। नई-नई तकनीके सामने आ रही हैं। आज पूरा विश्व यान्त्रिक सभ्यता एवं वैज्ञानिक परीक्षणों की आग में झुलस रहा है। ऐसे वातावरण में तो शिक्षा का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है।
अंग्रेजी शासन काल में शिक्षा का स्वरूप- अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा करने के साथ ही हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति को बदल कर अंग्रेजी शिक्षा को आधार बनाया। उन्होंने हमारे देश की भोली-भाली जनता का फायदा उठाया तथा ‘मैकाले’ की शिक्षा का भार हमारे सिर पर डाल दिया। लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के सन्दर्भ में कहा था, “मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शिक्षा प्रणाली भारत में एक ऐसा शिक्षित वर्ग बन जाएगा, जो रक्त और रंग से तो भारतीय होगा परन्तु रुचि, विचार एवं वाणी से पूर्णतया अंग्रेज होगा।” इस अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को केवल ‘बाबू’ एवं ‘लिपिक’ बना दिया। इस शिक्षा प्रणाली से हम भारतीयों को जो हानि उठानी पड़ी उससे भारतीयता तिलमिला उठी। इस शिक्षा पद्धति ने हमारे मौलिक सिद्धान्तों, मानसिक शक्ति एवं आध्यात्मिक से विकास को कठित कर डाला। जवजागरुकसाहित्यकारों का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से अपनी संस्कृति से विमुख हो रही जनता को जगाने का प्रयास किया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चातू शिक्षा पद्धति- भारत की स्वतन्त्रताक पश्चात् भारतीय नेताओं ने शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करने का निश्चय किया। इस उद्देश्य से अनेक आयोगों की स्थापना की गई। इस दिशा में सबसे सराहनीय कदम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उठाया तथा उन्होंने अंग्रेजों की दूषित शिक्षा पद्धति को दूर करने के लिए ‘बेसिक शिक्षा पद्धति’ पर बल दिया तथा 1948 में बेसिक शिक्षा समिति का निर्माण किया। बेसिक शिक्षा से अभिप्राय शिक्षाकाल में भी विद्यार्थी का अपने माता-पिता पर भार स्वरूप न रहकर आत्मनिर्भर होना था। परन्तु यह पद्धति अधिक सफलता न पा सकी। सन् 1964-1966 में प्रसिद्ध ‘कोठारी आयोग’ की स्थापना की गई। इस आयोग ने पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ औद्योगिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक शिक्षा पर जोर डालने के लिए 10+2 + 3 (15 वर्षीय) शिक्षा का कार्यक्रम बनाया। इसके अनुसार दसवीं के पश्चात् दो सालों तक स्कूलों में पढ़ाई होगी, जिसमें सामान्य शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा के माध्यम से युवक व युवतियों को इस योग्य बनाया जाएगा कि वे अपने पैरों पर खड़े होकर कोई कार्य कर सकें।
नई शिक्षा पद्धति- शिक्षा के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रयास हमारे भूतपूर्वक प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गाँधी ने किए, जिन्होंने प्रचलित शिक्षा प्रणाली के गुण दोषों को समझते हुए नई शिक्षा पद्धति लागू कर एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का प्रबन्ध करने का विचार बनाया जो स्वयं में पूर्ण हो तथा शिक्षित व्यक्ति को सम्पूर्णता का अहसास कराए। 21 अप्रैल 1986 को उन्होंने इस नई शिक्षा पद्धति का प्रारुप संसद में पेश किया, जिसके अनुसार बिना धर्म, जाति, लिंग अथवा वर्ग के भेदभाव के सभी विद्यार्थियों को राष्ट्रीय स्तर पर एक समान शिक्षा देने की व्यवस्था की गई।
इस शिक्षा नीति को जीवन पर आधारित बनाया गया था। इसे जीवनानुकूल होने पर बल दिया गया। इसके लिए प्रधानमन्त्री ने एक विशेष मन्त्रालय बनाया, जिसका नाम ‘मानव संसाधन एवं विकास मन्त्रालय रखा गया। इस नई शिक्षा नीति के कारण ही सम्पूर्ण देश में 10 + 2 शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन आमूल कर उसे जनपयोगी बनाया गया। अनुसूचित जातियों एवं पिछड़ी जातियों को विशेष सुविधाएं दी गई। इस शिक्षा नीति के प्रचार प्रसार के लिए आकाशवाणी, दूरदर्शन, कम्प्यूटर आदि का उपयोग किया जा रहा है।
वर्तमान समय में सम्पूर्ण देश में केन्द्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय आदि नई शिक्षा नीति की ही देन है। इन विद्यालयों में सरकारी संसाधन प्राप्त है। आज विद्यार्थी पहले के समान ही विनयी, चरित्रवान, परिश्रमी, आज्ञाकारी एवं जीवन में सफलता प्राप्त करने वाला बनेगा। गुरु एवं शिष्य के सम्बन्ध मधुर होंगे। इस नीति के अन्तर्गत व्यवसायिक पाठ्यक्रम भी लागू किए गए हैं, जिससे शिक्षा के पश्चात् सुगमता से रोजगार प्राप्त हो सके। इस नीति के तहत परीक्षा-प्रणाली में भी परिवर्तन आया है। पहले की भाँति आज का विद्यार्थी रटे-रटाए प्रश्नोत्तर लिखने तक सीमित नहीं रह गया है, अपितु विद्यार्थियों के व्यवहारिक अनुभव को भी परीक्षा का आधार बनाया गया है। इससे प्रत्याशी अपने व्यवहारिक स्तर के मूल्यांकन के आधार पर कोई भी पद, व्यवसाय या उच्चतम अध्ययन को चुनने के लिए आज़ाद होगा।
उपसंहार- अतः यह बात तो निश्चित है कि नई शिक्षा नीति हमारे देश के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है। इससे छात्र छात्राओं में जागरुकता, नवीन चेतना, स्वाबलम्बन, कर्त्तव्यनिष्ठा एवं आत्मविश्वास का संचार हुआ है। जब देश का युवा इतने गुणों की खान होगा, तो देश तो उन्नति के शिखर पर अवश्य ही पहुँचेगा।
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