निबंध / Essay

दिल्ली का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला पर निबंध | Essay on International Trade Fair in Delhi

दिल्ली का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला पर निबंध
दिल्ली का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला पर निबंध

दिल्ली का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला पर निबंध 

भूमिका- ‘प्रदर्शनी’ अर्थात् ‘अनेक दर्शनीय वस्तुओं का प्रदर्शन’ । प्राचीन शब्द पैठ अथवा मेले का आधुनिक नाम ही ‘प्रदर्शनी’ है। प्रदर्शनी कई प्रकार की होती है जैसे- कृषि पदार्थों की प्रदर्शनी, डाक टिकटों की प्रदर्शनी, कारों की प्रदर्शनी, कपड़ों की प्रदर्शनी, खिलौनों की प्रदर्शनी इत्यादि। इनमें से कुछ प्रदर्शनियाँ जैसे डाक टिकटों, फूलों, जूतों आदि की प्रदर्शनियाँ छोटे स्तर पर आयोजित की जाती है परन्तु कुछ प्रदर्शनियाँ जैसे कृषि व औद्योगिक वस्तुओं, वस्त्रों, किताबों आदि की प्रदर्शनियाँ बड़े स्तर पर आयोजित होती है, जिन्हें बड़े खुले मैदानों में आयोजित किया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला- नई दिल्ली में बड़े स्तर की प्रदर्शनियाँ अथवा मेले आयोजित होते रहते हैं। नई दिल्ली के ही प्रगतिमैदान में हर वर्ष 14 नवम्बर से 28 नवम्बर तक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन किया जाता है। प्रगति मैदान में राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाला यह सबसे विशाल मेला होता है। इसका आयोजन ‘भारतीय व्यापार मेला प्राधिकरण’ द्वारा किया जाता है। विभिन्न समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं तथा टेलीविजन के माध्यम से इसका विज्ञापन दिया जाता है। जगह-जगह बड़े-बड़े बैनर भी लगाए जाते हैं साथ ही कई स्थानों पर टिकट भी मिलते हैं। इसका प्रचार करने के लिए आकाश में एक विशाल गैस का गुब्बारा उड़ता रहता है जिस पर ‘विश्व व्यापार मेला’ लिखा होता है। इस प्रदर्शनी की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसमें वे सभी वस्तुएँ प्रदर्शित होती हैं, जिनका प्रयोग सभी देशों द्वारा समान रूप से किया जाता है जैसे-कपड़े, मशीने, जूते, जेवर, कास्मैटिक्स, घरेलू साज-सज्जा का सामान, पुस्तकें, खिलौने, टी.वी., रेडियो, इत्यादि । यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि इस मेले में सभी कुछ मिलता है। इन वस्तुओं का निर्माण छोटे व बड़े उद्योगपतियों द्वारा होता है। इसीलिए इन उद्योगों से सम्बन्धित प्रदर्शनी ‘औद्योगिक प्रदर्शनी’ कहलाती है।

व्यापार मेले का आँखों देखा वर्णन- इस वर्ष मैं अपने मित्रों के साथ दिल्ली में आयोजित ‘औद्योगिक प्रदर्शनी’ देखने गया था। हम लोग सुबह 11 बजे बस द्वारा प्रगति मैदान पहुंच गए। प्रदर्शनी में प्रवेश करने के लिए हमने टिकट पहले ही खरीद रखे थे। प्रवेश के लिए कई द्वार थे तथा हम गेट नं. 2 से अन्दर चले गए। अन्दर घुसकर तो हम सभी दंग रह गए क्योंकि यह मेला बहुत विशाल जगह में आयोजित किया गया था। हमें दूर से अनेक मोटे-मोटे नाम लिखें दिखाई दिए- दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, केरल, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान, जम्मू व काश्मीर इत्यादि।

विभिन्न मण्डपों का वर्णन- हम इन रंगीनियों में खोए हुए आगे बढ़ रहे थे कि अचानक जर्मनी का मण्डप दिखाई पड़ा। हम इसके अन्दर चले गए। वहाँ स्टीम प्रेस तथा बुनाई की मशीन मुझे बहुत अच्छी लगी। एक लड़की बुनाई की मशीन से नए-नए डिजाइन की बुनाई करके दर्शकों को मोहित कर रही थी। इस मण्डप से निकलकर हम हरियाणा के मण्डप में चले गए। हरियाणा का मण्डप कई मंजिला बना हुआ था। उसमें कृषि से सम्बन्धित अनेक वस्तुएँ थीं इसलिए वहाँ किसान लोग अधिक आए हुए थे। वहाँ हमें ‘एटलस’ कम्पनी की साइकिल बहुत अच्छी लगी। वहाँ पर हमने चाट तथा गोल गप्पे भी खाए। तत्पश्चात् हम पंजाब के मण्डप में गए वहाँ पर तो माहौल बहुत रंगीन था। कई नर्तक नर्तकियाँ भंगड़ा कर रहे थे। सरसों के साग तथा मक्की की रोटी की सुगन्ध दूर तक फैल रही थी। हमने वहाँ से अचार-मुरब्बे खरीदे और बाहर आ गए।

वहाँ से निकलकर हम पाकिस्तान के मण्डप में गए जहाँ से मैंने अपनी दीदी के लिए पाकिस्तानी कढ़ाई का सूट खरीदा। वहाँ पर ‘सफेद संगमरमर’ का बहुत सामान मिल रहा था। हम बस देखकर खुश हो गए क्योंकि वह सामान बहुत कीमती था इसलिए हमने कुछ नहीं खरीदा। इसके बाद हम बारी-बारी से केरल, दिल्ली, यू.पी., हिमाचल आदि के मण्डपों में गए तथा मेरे मित्रों ने खरीदारी भी की। सामने एक मण्डप दिखाई दे रहा था जिसमें दूर से ही घूमने वाले खिलौने दिखाई पड़ रहे थे। मैंने अपने छोटे भाई के लिए वहाँ से कई खिलौने खरीदे। सभी खिलौने नवीन किस्म के थे। जापान की गुड़िया तो अनेक मुद्राओं में देखने को मिली। इस मण्डप में बच्चों की बहुत भीड़ थी तथा खाने-पीने का भी बहुत किस्म का सामान उपलब्ध था। इस प्रदर्शनी में हमने फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों की वस्तुएँ भी देखी। बीच-बीच में हम खाते-पीते रहे।

तत्पश्चात् हम किताबों-वाले परिसर में पहुंच गए। यहाँ भारत के कोने-कोने से आए प्रकाशकों तथा अनेकों विदेशी प्रकाशकों ने पुस्तकें प्रदर्शित कर रखी थी। हम ऑटोमोबाइल के परिसर में भी गए जहाँ नई-नई गाड़ियों को देखकर हमारी आँखें खुली की खुली रह गई। मारूति, हौंडा, टाटा आदि कम्पनियों ने सुन्दर-सुन्दर लड़कियों को जानकारी देने के लिए नियुक्त किया हुआ था। हम सभी ने अपने परिवारजनों के लिए भी खरीदारी की। मैंने अपने लिए एक टी-शर्ट तथा एक नई किस्म का पैन खरीदा तथा अपने पापा के लिए एक कैलकुलेटर लिया।

औद्योगिक प्रदर्शनियों की उपयोगिता अथक परिश्रम करने के पश्चात् व्यक्ति, व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से विश्राम एवं मनोरंजन दोनों चाहता है। अपने पुराने मित्रों, परिचितों आदि से मिलकर उसका मन हल्का हो जाता है। इन मेलों में वह अपने मित्रों के साथ कुछ समय व्यतीत कर पाता है। इसके अतिरिक्त आधुनिक मेलों व प्रदर्शनियों में नवीनतम वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है। चाहे हम वे सभी वस्तुएँ न खरीद पाए, लेकिन हमारा ज्ञानवर्धन तो होता ही है। हमें नई-नई चीजों की जानकारी मिलती है। इन व्यापार मेलों के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होती है क्योंकि इससे आयात-निर्यात में वृद्धि होती है। छोटे-बड़े उद्योग एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में बढ़िया किस्म का सामान प्रदर्शित करते हैं साथ ही ग्राहकों को एक ही छत के नीचे अपनी रुचि की वस्तु आसानी से उपलब्ध हो जाती है। अतः प्रत्येक देश और जाति में इन मेलों व प्रदर्शनियों का धार्मिक, ऐतिहासिक व सामाजिक महत्त्व अवश्य होता है।

उपसंहार-श्री आर.एन. गौड़ ने इन प्रदर्शनियों तथा मेलों की उपयोगिता इस प्रकार स्पष्ट की है-

“भारत की संस्कृति में सुंदर, यदि मेलों का मेल न होता।
तो निश्चय ही भारपूर्ण मानव जीवन भी खेल न होता ॥”

अर्थात् ये मेले हर किसी के लिए आवश्यक है। इनसे मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी होता है। इन औद्योगिक प्रदर्शनियों द्वारा अनेक वस्तुओं का विज्ञापन होता है जिससे निर्यात व व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है। इन मेलों के माध्यम से अनेक राष्ट्र एक दूसरे के समीप आते हैं, जिनसे उनके मध्य परस्पर मैत्री भाव तथा सहयोग की भावना पैदा होती है। एक दूसरे की संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अतः इन मेलों का हमारे जीवन चुके थे। में अभूतपूर्व महत्त्व है।

अचानक हमारी दृष्टि घड़ी पर गई तो देखा शाम के सात बज हम घूमते-घूमते थक भी चुके थे अतः वापसी के लिए हम मुख्य द्वार पर आ गए तथा बस पकड़कर घर वापस आ गए। घर में सभी को सामान दिखाया, खाना खाया और सो गया। रात भर मैं ‘ट्रेड फेयर’ के ही सपने देखता रहा।

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