क्रिसमस (बड़ा दिन)
प्रस्तावना- प्रत्येक पर्व मानव की उन्नत भावनाओं, अनवरत श्रद्धा व अटूट विश्वास का प्रतीक होता है। भारतवर्ष तो मानो त्योहारों की ही भूमि है, जहाँ प्रत्येक धर्म के लोग कितने ही त्योहार मनाते हैं। इनमें से कुछ त्योहारों की सृष्टि प्रकृति के आधार पर हुई है तो कुछ त्योहारों का आधार अतीत में उन महापुरुषों का जीवन होता है, जिनसे मानव जीवन का बहुत हित हुआ है। इन महापुरुषों ने अपने अद्भुत कार्यों द्वारा संसार को प्रकाशवान किया है। ‘बड़ा दिन’ अथवा ‘क्रिसमस’ ईसाई धर्म के प्रवर्तक ‘ईसा मसीह के जीवन पर आधारित है। यह त्योहार बहुत कुछ हिन्दुओं की रामनवमी एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से मिलता जुलता है। इस पर्व को न केवल भारतीय ईसाई, अपितु विश्व के प्रत्येक कोने में बसे ईसाई पूरे हर्षोल्लास से मनाते हैं।
क्रिसमस मनाने की तिथि एवं कारण
क्रिसमस का पर्व ईसामसीह के जन्म दिवस के रूप में प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को पूरे विश्व में बड़ी खुशी व जोश के साथ मनाया जाता है। क्रिसमस को ‘बड़ा दिन’ भी कहते हैं क्योंकि भूगोल की दृष्टि से यह दिन वर्ष भर का सबसे बड़ा दिन होता है। यह दिन सभी को महात्मा ईसा मसीह के जीवन से बलिदान तथा सहिष्णुता की भावना ग्रहण करने की प्रेरणा देता है। आज से सैंकड़ों सालों पूर्व ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर की रात को बारह बजे वेथलेहम शहर में एक गौशाला में हुआ था। उनकी माता का नाम ‘मरियम’ था तथा आपके पिता जोसफ जाति के यहूदी आपकी माँ दाऊद वंश की थी। आपकी माँ ने आपको एक साधारण कपड़े में लपेटकर धरती पर लिटा दिया था। जन्म के समय ईसा का नाम ‘एमानुएल’ रखा गया था, जिसका अर्थ ‘मुक्ति प्रदान करने वाला’ होता है। ईसा मसीह के जन्म की खबर सुदूर पूर्व में बसने वाले तीन धार्मिक पुरुषों को दैवीय प्रेरणा से मिली। कहते हैं कि आकाश में एक जगमगाता तारा उगा और ये तीनों धार्मिक पुरुष उस तारे का अनुकरण करते हुए उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ यीशु (ईसा) ने जन्म लिया था। उन लोगों ने उस आलौकिक बालक को देखकर उसके चरणों में सिर झुका दिया। तभी से 25 दिसम्बर को ईसा के जन्म दिवस को ‘बड़ा दिन’ के रूप में मनाया जाने लगा है। आज भी श्रद्धालु 25 दिसम्बर को ईसा मसीह के पुनर्जन्म की कामना करते हैं तथा उनकी याद में विभिन्न प्रार्थनाएँ तथा मूक भावनाएँ प्रस्तुत करते हैं।
ईसा का जीवन-चरित्र
ईसा मसीह सत्य, अहिंसा तथा मानवता के सच्चे संस्थापक थे। वे सादा जीवन तथा उच्च विचार के प्रतीकात्मक तथा संस्थापक थे। ईसा मसीह ने भेड़ बकरियों को चराते हुए अपने समय के अंधविश्वासों तथा रुढ़ियों के प्रति विरोधी स्वर को फूंक दिया था, इसीलिए उनकी जीवन-दिशाओं से क्षुब्ध होकर कुछ लोगों ने इसका कड़ा विरोध भी किया। उनके विरोधी अधिक होने के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिलने में अधिक समय नहीं लगा। ईसा के विचारों को सुन यहूदी लोग घबरा उठे। यहूदी अज्ञानी होने के साथ-साथ अत्याचारी भी थे। वे एक ओर तो ईसा को मूर्ख कहते थे तथा दूसरी ओर उनकी लोकप्रियता से जलते भी थे। उन्होंने ईसा का कड़ा विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। यहूदियों ने तो ईसा मसीह को जान से मार डालने तक की योजना बनानी शुरू कर दी थी। जब ईसा मसीह को यहूदियों की योजनाओं के बारे में पता चला तो वे यहूदियों से कहा करते थे- “तुम मुझे मार डालोगे तो मैं तीसरे दिन ही जी उठूँगा।” प्रधान न्यायकर्ता विलातस ने शुक्रवार के दिन ईसा को शूली पर लटकाने का आदेश दे दिया, इसलिए शुक्रवार को ईसाई लोग ‘गुड फ्राइडे’ कहते हैं।
क्रिसमस मनाने की विधि
क्रिसमस पर घरों एवं गिरिजाघरों में सफाई-पुताई आदि की जाती है। फूलो, बैनरो तथा लकड़ी व धातु से बने हुए ‘क्रॉसो’ को सजाया जाता है। जीसस क्राइस्ट’ एवं ‘मदर मैरी’ की प्रतिमाओं को मोमबत्तियों एवं फूलों से सजाया जाता है। सभी ईसाई बच्चे-बूढे, स्त्रियाँ, धनी व निर्धन इस त्योहार को समान खुशी व उल्लास से मनाते हैं। बाजारों, दुकानों, गिरिजाघरों सभी की शोभा देखते ही बनती है। इस दिन लोग सुबह सवेरे नहा धोकर नए कपड़े पहनते हैं। सभी एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्ड, तथा उपहार आदि देते हैं तथा ‘क्रिसमस डे’ की बधाई भी देते हैं। लोग गिरिजाघरों में जाकर प्रार्थना करते हैं तथा ईसा की प्रतिमा के समक्ष मोमबत्ती जलाते हैं। लोग एक दूसरे के घर मिठाईयाँ ले जाते हैं तथा सायंकाल को ‘बड़ा दिन’ के उपलक्ष में प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी सम्बन्धी तथा मित्रगण भी हिस्सा लेते हैं। मध्य-रात्रि से लेकर दूसरे दिन सायंकाल तक लोग राग-रंग में डूबे हुए उत्सव मनाते हैं। संगीत, नृत्य आदि की हर ओर धूम होती है। सभी बड़े दिन के गीत गाते हैं। बच्चे इस दिन सान्ताक्लाज की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से करते हैं क्योंकि वह बच्चों के लिए तरह-तरह के खिलौने, उपहार तथा टॉफियाँ आदि लेकर आते हैं।
क्रिसमस मनाने के लिए घर के किसी मुख्य भाग में क्रिसमस वृक्ष का निर्माण भी किया जाता है। उस वृक्ष को चमकीले रंग-बिरंगे कागजों, खिलौनों, सुनहरे तारो, गुब्बारों, घंटियों, फलों, फूलों, मेवो व मिठाईयों आदि से सुसज्जित किया जाता है। इस वृक्ष के चारों ओर ईसाई लोग एकत्रित होकर ईसा मसीह की प्रार्थना करते हैं तथा गीत गाकर सभी के सुख एवं समृद्धि की काम करते हैं।
उपसंहार- इस दिन की ईसाई लोगों द्वारा बड़ी उत्सुकतापूर्ण प्रतीक्षा की जाती है। इस संसार में महाप्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन को बड़ी पवित्रता तथा आस्थापूर्वक मनाया जाता है। पैगम्बर ईसा के स्लीब पर लटकाए जाने के बाद पुनर्जीवित हो उठने से ईसाईयों को जो प्रसन्नता हुई, उसी कारण से इन दिन को ‘बड़ा दिन’ कहा जाने लगा। यह पर्व हमें दीन-दुखियों से प्रेम करने, उनकी सेवा करने, उन्हें दान देने की शिक्षा देता है। ईसा ने अपना पूरा जीवन मानव उद्धार में लगा दिया था। हर वर्ष उनका जन्म दिवस भी हमें उन्हीं के बताए सत्य, अहिंसा, निष्ठा, दयाभाव आदि रास्तों पर चलने की प्रेरणा देता है।
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