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वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण | Scientific and Technical View

वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण
वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण

वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण
Scientific and Technical View

विज्ञान एवं तकनीकी दृष्टिकोण का मुख्य उद्देश्य प्रकृति की कार्यशैली को समझाना है। प्राचीन काल में किसी व्यक्ति विशेष या धर्म विशेष द्वारा प्रतिपादित तथ्यों को मान लिया जाता था परन्तु आधुनिक युग में केवल प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा जिनका अनुभव हमारी ज्ञानेन्द्रियों (नाक, कान एवं आँख) द्वारा होता है ऐसे ही विचारों को मान्यता दी जाती है। इस सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी दृष्टिकोण ऐसे विचारों का समूह है, जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से वैज्ञानिक आधार पर ही मान्यता प्राप्त हो । वैज्ञानिक अनुसन्धान की नयी प्रणाली केवल प्रेक्षित तथ्यों पर ही निर्भर है, जिसमें धारणाओं की पुष्टि प्रेषित तथ्यों द्वारा होती है और उनकी मान्यता इस पुष्टि पर निर्भर है। शिक्षण के इस दृष्टिकोण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं। यह अन्धविश्वास दूर कर व्यक्ति में विश्वास एवं जिज्ञासा का प्रार्दुभाव करता है। विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि का अनुसरण करने से वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। रूढ़िगत एवं परम्परागत विचारों से हटकर स्वतन्त्र एवं मुक्त चिन्तन की प्रवृत्ति ने वैज्ञानिक

दृष्टिकोण (Scientific Attitude) को जन्म दिया है। वास्तव में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य एवं यथार्थ का पता लगा सकते हैं। उदार मनोवृत्ति ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा (Curiosity) ज्ञान प्राप्त करने की प्रविधियों (Techniques) में विश्वास एवं प्राप्त ज्ञान के प्रयोग के आधार पर उसके प्रामाणिक होने की सम्भावना, ये सभी तथ्य वैज्ञानिक द्वष्टिकोण में निहित हैं।

शिक्षा द्वारा वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण का विकास
Development of Technical and Scientific Tendency by Education

शिक्षा के माध्यम से तकनीकी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास प्राथमिक स्तर से ही छात्रों में हो जाता है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर छात्र अनेक प्रकार के तर्क एवं प्रश्न अध्यापकों से करता है, जिसके आधार पर वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर अग्रसर होता है। बालक अपने परिवेश में अनेक प्रकार की घटनाओं का अवलोकन करता है, जिसके आधार पर वह परम्परा एवं अन्धविश्वास का शिकार हो जाता है; जैसे-वह परिवेश में इन्द्रधनुष, सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण को देखता है तो अनेक दन्तकथाओं के आधार पर सोचता है। जब विद्यालय में पहुँचता है तो इन घटनाओं पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर विचार करता है। इस प्रकार शिक्षा लक में विभिन्न घटनाओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने का प्रयास करती है। शिक्षा के द्वारा वैज्ञानिक एवं तकनीकी के विकास को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास (Development of positive view)- शिक्षा के माध्यम से सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास सम्भव होता है। शिक्षा मानव की सोच को सकारात्मक बनाती है। इसलिये वह प्रत्येक घटना की वास्तविकता को जानने का प्रयास करता है। वह प्रत्येक तथ्य को स्वीकार करने से पूर्व उस पर विचार करता है तथा उसको सकारात्मक रूप में स्वीकार करने का प्रयास करता है।

2. तर्क एवं चिन्तन का विकास (Development of logic and thinking)- शिक्षा के माध्यम से छात्रों में तर्क एवं चिन्तन का विकास होता है। छात्रों द्वारा प्रत्येक घटना को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं किया जाता वरन् उस पर तार्किक रूप से विचार करके ही उसको स्वीकार किया जाता है; जैसे-सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण की घटना को छात्र तब तक खगोलीय घटना के रूप में स्वीकार नहीं करता जब तक कि उसे पर्याप्त प्रमाण नहीं मिल जाते! इस प्रकार शिक्षा द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रवृत्ति का विकास होता है।

3. प्रयोग की प्रवृत्ति का विकास (Development of tendency of experiment)- शिक्षा में करके सीखने की विधि को विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता है। इसलिये बालक में प्राथमिक स्तर से प्रयोग करने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है। इससे छात्र प्रत्येक घटना की वास्तविकता का परीक्षण प्रयोग द्वारा सम्पन्न करता है। प्रयोग की प्रवृत्ति के कारण ही उसमें विभिन्न प्रकार के उपकरणे के प्रयोग की क्षमता का विकास होता है।

4. Astfach griechilot aut facit (Development of scientific view) – वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में छात्र अनेक प्रकार के अन्धविश्वासों से ग्रसित हो जाता है। शिक्षा के माध्यम से छात्रों में समझ विकसित की जा सकती है, जिससे वह सत्य एवं असत्य का ज्ञान रख सकते हैं। परिणामस्वरूप वह प्रत्येक तथ्य में निहित वास्तविकता को समझ सकते हैं। वर्तमान समय में समाज में सामाजिक समरसता की भावना उत्पन्न करने में तथा अन्धविश्वासों को दूर करने में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

5. कौशलों का विकास (Development of skills)- शिक्षा के माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक कौशलों का विकास सम्भव होता है। वैज्ञानिक कौशलों के विकास की प्रक्रिया में छात्रों को भौतिक विज्ञान, जीवन विज्ञान एवं रसायन विज्ञान से सम्बन्धित प्रयोग करना सिखाया जाता है। इसके अन्तर्गत छात्रों को वैज्ञानिक यन्त्रों का रखरखाव एवं उनके प्रयोग से सम्बन्धित जानकारी प्रदान की जाती है। इससे छात्रों को प्रयोगशाला में प्रयोग करने में कुशलता प्राप्त होती है।

6. शिक्षण तकनीकी का विकास (Development of teaching technology)- शिक्षा के विभिन्न प्रकार के तकनीकी यन्त्रों, शिक्षण विधियों एवं शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग से शिक्षण तकनीकी का विकास सम्भव हुआ है। शिक्षा द्वारा तकनीकी के विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) शिक्षा में सामान्य रूप से यह प्रयास किया जाता है कि छात्रों को प्रदत्त किया जाने वाला ज्ञान सरल एवं बोधगम्य रूप में प्रस्तुत किया जाय। इसके लिये छात्रों को समस्या- समाधान विधि, दल शिक्षण विधि एवं करके सीखने की विधि से शिक्षण दिया जाता है, जो कि शिक्षण तकनीकी का प्रमुख विषय माना जाता है।

(2) शिक्षक द्वारा अपनी शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण एवं प्रयोग करने की योग्यता भी छात्रों में वैज्ञानिक कौशल एवं वैज्ञानिक तकनीकी का विकास करने में सहायता पहुँचाती है।

(3) छात्रों को शिक्षण यन्त्रों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तकनीकी का विकास होता है क्योंकि इसमें छात्र द्वारा उन यन्त्रों की उपयोगिता एवं प्रयोग के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है जो कि वर्तमान समय में विज्ञान एवं तकनीकी से सम्बन्धित होते हैं।

(4) शिक्षा के माध्यम से ही छात्रों में प्रत्येक कार्य को कम श्रम एवं कम धन व्यय करके सम्पन्न करने की कुशलता प्राप्त होती है; जैसे-किसी कार्य को करने में 100 मजदूर लगते थे, उस कार्य को एक जे.सी.बो. की मशीन एक दिन में कर देती है। इस प्रकार से अनेक कार्यों को सरल रूप में सम्पन्न करने की तकनीक शिक्षा द्वारा ही सम्भव होती है।

(5) शिक्षा के माध्यम से छात्रों में कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट के प्रयोग की क्षमता का विकास होता है, जिससे छात्र विभिन्न प्रकार की शैक्षिक सूचनाओं की प्राप्ति अपने घर बैठकर प्राप्त कर सकता है तथा विभिन्न प्रकार के शैक्षिक अनुसन्धान सम्बन्धी सूचनाओं को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार उसके कार्य एवं व्यवहार में वैज्ञानिकता का विकास होता है।

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