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अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ | अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना हेतु शिक्षा

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ
Meaning of International Understanding

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से अभिप्राय एक ऐसी भावना से है जो एक राष्ट्र के नागरिकों में दूसरे राष्ट्रों के नागरिकों के प्रति मैत्री एवं बन्धुत्व का भाव उत्पन्न करती है, उन्हें उसके सुख-दुःख में साथ देने के लिये प्रेरित करती है। इसके द्वारा विश्व के समस्त राष्ट्रों का कल्याण करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है तथा सम्पूर्ण संसार को एक कुटुम्ब के रूप में देखने की समझ उत्पन्न होती है। यूनेस्को के पूर्व प्रधान निदेशक डॉ. वाल्टर एच.जी. लेब्स (Dr. Walter H.G. Laver) ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है-“अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से तात्पर्य आलोचनात्मक तथा निष्पक्ष रूप से निरीक्षण करने तथा लोगों की राष्ट्रीयता या संस्कृति पर बिना ध्यान दिये हुए उसके व्यवहार की उत्तमताओं की एक-दूसरे से प्रशंसा करने कीयोग्यता है। ऐसा करने के लिये मनुष्य को इस योग्य होना चाहिये कि वह समस्त राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों एवं प्रगतियों का इस पृथ्वी पर रहने वाले व्यक्तियों का समान रूप से महत्त्वपूर्ण विभिन्नताओं के रूप में निरीक्षण कर सके।”

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना हेतु शिक्षा
Education for International Understanding

शिक्षा में प्रौद्योगिकी ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को निकट लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। समाचार पत्र, रेडियो प्रसारण, दूरदर्शन कार्यक्रम, चलचित्र आदि आर्थिक एवं राजनैतिक दशा को दूसरे देशों को प्रतिबिम्बित करते हैं। प्रत्येक प्रगति के लिये तीव्रता एवं निरन्तरता आवश्यक है। प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे पर निर्भर है। एक राष्ट्र की बहुत-सी आवश्यकताएँ दूसरे राष्ट्र के सहयोग द्वारा ही हल होती हैं। अत: अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास के लिये शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये। विश्व-बन्धुत्व का भाव जगाने के लिये यह आवश्यक है कि हम बालकों के समक्ष आरम्भ से ही विश्व परिवार का लक्ष्य रखें। प्रारम्भ से ही बालकों में यह भावना भरने का प्रयत्न करें कि विश्व के बड़े से बड़े तथा छोटे से छोटे देश, शिक्षित और अशिक्षित, उन्नतिशील तथा पिछड़े हुए अथवा पद-दलित सभी इस महान् विश्व रूपी परिवार के सदस्य हैं। इस विश्वरूपी परिवार में सभी को भाईचारे के रूप में पारस्परिक प्रेम से रहना चाहिये। यदि ऐसा सम्भव हो सका तो विश्व में पारस्परिक द्वेष, घृणा, ईर्ष्या न पनपने पायेगी और विश्व में सुख-शान्ति, समानता तथा स्वतन्त्रता स्थापित हो सकेगी। हमारा अपना परिवार अन्य परिवारों से प्रेम करके ही सजीव एवं अक्षुण्ण रह सकता है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार एक राष्ट्र का कल्याण राष्ट्र के सभी व्यक्ति के समुचित विकास पर निर्भर करता है, उसी प्रकार विश्व-राष्ट्र का कल्याण सभी राष्ट्रों की उत्तम भावनाओं के विकास पर तथा उनके पारस्परिक मैत्रीपूर्ण, प्रेमपूर्ण तथा शान्तिपूर्ण व्यवहार पर निर्भर है। शिक्षा द्वारा मानवीय गुणों की प्राप्ति की जा सकती है तथा उन्हें उत्साहित किया जा सकता है।

शिक्षा द्वारा ही बालक मानव- जाति से प्रेम तथा सहानुभूति सीख सकेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव की शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है-

  1. शिक्षा द्वारा छात्रों को विश्व-नागरिकता के लिये तैयार किया जाये।
  2. विश्व की उन सभी समस्याओं से छात्रों को परिचित कराया जाय जो सभी देशों से सामान्य रूप से सम्बन्धित हैं और उनका समाधान करने के लिये जनतन्त्रीय पद्धतियों का ज्ञान कराया जाये।
  3. उन्हें विश्व समाज के निर्माण के लिये मूल्यों एवं उद्देश्यों में आस्था रखने की शिक्षा प्रदान की जाये।
  4. उन्हें सांस्कृतिक विभिन्नताओं में मानव हित के लिये कल्याणकारी समान तत्वों को खोजने के लिये प्रोत्साहित तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जाय।
  5. उन्हें उन समस्त आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक तत्वों की पूर्ण जानकारी कराया जाना शिक्षा द्वारा ही सम्भव है, जिसके कारण ही विश्व के समस्त राष्ट्र एक-दूसरे पर आधारित हैं।

डॉ. वाल्टर एच.जी. लेब्स (Dr. Walter H.G. Laver) के अनुसार छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास के लिये शिक्षा के अग्रलिखित उद्देश्य होने चाहिये-

  1. छात्रों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है, जिसमें उन्हें रहन-सहन के ढंगों, मूल्यों एवं आकांक्षाओं का ज्ञान हो सके।
  2. छात्र-छात्राओं को समाज के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये तैयार किया जाता है।
  3. शिक्षा द्वारा उन्हें एक साथ रहने के लिये आवश्यक बातों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।
  4. शिक्षा द्वारा सभी राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों एवं प्रजातियों के व्यक्तियों को समान समझने की भावना का सृजन किया जा सकता है।
  5. उन्हें अपने स्वयं की सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पक्षपात को महत्त्व न देने की शिक्षा प्रदान की जाय।

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