जल प्रदूषण
Water Pollution
वह जल जिसमें अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ एवं गैसें एक निश्चित अनुपात से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं प्रदूषित जल कहलाता है। प्रोक्का के अनुसार जल प्रदूषण का अर्थ है, “मनुष्य द्वारा बहती नदी में ऊर्जा या ऐसे पदार्थ का निस्तारण जिससे जल की गुणों में ह्रास हो जाय।” विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जल प्रदूषण की परिभाषा इस प्रकार दी है-“प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाह्य पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है तथा वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिये घातक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है।”
जल प्रदूषण के कारण (Causes of water pollution)
जल प्रदूषण प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों कारणों से होता है-प्राकृतिक कारणों में भू-क्षरण, मृत वनस्पति या उसके सड़े-गले अंगों, खनिज पदार्थों, प्राणियों के मृत शरीरों या उसके द्वारा उत्सर्जित मलमूत्र इत्यादि के मिलने से जल प्रदूषण होता है। ज्वालामुखी के फटने से भी जल प्रदूषित होता है। इस प्रकार के प्रदूषण की गति धीमी होती है और प्रकृति अपनी स्वशुद्धीकरण प्रक्रिया द्वारा उसे समयानुसार शुद्ध भी करती रहती है। बढ़ती हुई मानव जनसंख्या के साथ कृषि, उद्योग और स्वयं मानव के उपयोग के लिये जल की मात्रा इस सीमा तक बढ़ गयी है कि मानव ही जल को प्रदूषित करने वाला प्रमुख कारण बन गया है। घरेलू बहिस्राव में घरेलू अपशिष्ट पदार्थों से युक्त इस जल को मलिन जल भी कहते हैं। यह जल साबुन, डिटर्जेण्ट, तेल आदि से युक्त होता है। वाहित मल में घरेलू एवं सार्वजनिक शौचालय से उत्सर्जित मानव मलमूत्र की अधिकता होती है। घरेलू बहिस्राव एवं वाहित मल को तालाब, झील या नदी में मिलने दिया जाता है। रंगाई, वस्त्र उद्योग, कागज और लुगदी उद्योग, इस्पात उद्योग, शराब उद्योग, शक्कर उद्योग, तेल शोधन उद्योग, उर्वरक उद्योग और इसी प्रकार के अनेक उद्योग हैं जो जल का भरपूर उपयोग करते हैं तथा अपने बहिस्राव से जल स्रोतों का भारी मात्रा में प्रदूषण करते हैं। कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों तथा कीटनाशकों के द्वारा भी जल प्रदूषित होता है।
जल प्रदूषण के प्रभाव (Effect of water pollution)
जल प्रदूषण के निम्न- लिखित प्रभाव होते हैं-
जीवों पर प्रभाव- जल प्रदूषण का जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे हैजा, टाइफाइड, पेचिश एवं पोलियो जैसे रोग फैलते हुए महामारी का रूप धारण कर लेते हैं। प्रदूषित जल के जीवाणु मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जल भण्डारों में जलीय जीवों के नष्ट होने से खाद्य पदार्थों की हानि होती है। बड़ी संख्या में मछलियाँ नष्ट हो जाती हैं तथा आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। जलीय पौधों के नष्ट होने से पर्यावरण में नितान्त आवश्यक पदार्थ जैसे ऑक्सीजन आदि की कमी होने लगती है। इस प्रकार परिण के विनष्ट होने से सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र ही असन्तुलित हो जाता है। नि:सन्देह जल प्रदूषण मानव जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करता है।
वनस्पतियों पर प्रभाव- प्रदूषित जल में पौधों के पोषक तत्त्व उपस्थित होने के कारण शैवाल आदि अधिक विकसित होते हैं जिनसे सूक्ष्म जीवाणुओं की तीव्र वृद्धि होती है जो जलीय ऑक्सीजन को कम कर देते हैं। ऐसी परिस्थिति में अधिकांश पौधे नष्ट हो जाते हैं। प्रदूषित जल में नल कवक का आवरण उपस्थित होने के कारण सूर्य का प्रकाश जल के अन्दर प्रवेश नहीं कर पाता। अत: जलीय पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है। इससे जल के तापमान में वृद्धि हो जाती है, पौधे सूख जाते हैं। अपशिष्टों द्वारा जल के प्रदूषित होने से प्रदूषक जल स्रोत की पेंदी में बैठ जाते हैं। ऐसे जल में जलकुम्भी, फर्न एवं लेटयूस तीव्र गति से फैलने लगते हैं जो जलीय वनस्पति की वृद्धि को रोक देते हैं और कभी-कभी जलीय पौधे नष्ट हो जाते हैं।
जल प्रदूषण को रोकने के उपाय (Measures to controlling water pollution)
जल प्रदूषण को रोकथाम के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
(1) वाहित मल (Sewage) को स्वच्छ जल में विसर्जित करने से पूर्व उसे उपचारिक किया जाना चाहिये। इस कार्य में कैथेड रे-टयूब तथा गन्दगी का अवशोषण करने वाले उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
(2) सड़े-गले पदार्थ एवं कूड़ा-करकट को स्वच्छ जल के भण्डों में विसर्जित नहीं करना चाहिये।
(3) शवों को जलाने के लिये विद्युत शवदाह गृहों (Electric Crmatorium and Morturies) का निर्माण किया जाना चाहिये।
(4) औद्योगिक अपशिष्टों के उपचार की व्यवस्था की जानी चाहिये। ऐसा न करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर वैधानिक नियमों का कड़ाई से पालन कराने की योजना होनी चाहिये।
(5) समुद्रों में परमाणु परीक्षणों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये।
(6) जल प्रदूषण रोकने के लिये सामान्य जनता में जागरूकता लायी जानी चाहिये। सभी प्रकार के प्रचार माध्यमों द्वारा जल संरक्षण के उपायों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये।
(7) स्वच्छ जल के दुरुपयोग पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये।
(8) जल में ऐसे जीव और वनस्पतियाँ विकसित की जायें जो जल को शुद्ध करने में सहायक हों।
(9) प्रदूषित जल से विषाक्त रसायनों के निष्कर्षण की तकनीक को विकसित किया जाय।
(10) नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करके भी जल प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
(11) मल विसर्जन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये सुलभ अन्तर्राष्ट्रीय जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं की सहायता लेनी चाहिये। सुलभ शौचालयों का निर्माण करने से जल प्रदूषण की मात्रा में कमी लायी जा सकती है।
(12) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल की शुद्धता की रायासनिक जाँच कराते रहना चाहिये।
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