उच्च न्यायालय किन परिस्थितियों में लेखों को जारी कर सकता है? Under which circumstances High Court can issue writ?
संविधान के अनुच्छेद 226 में प्रत्येक उच्च न्यायालय को निर्देश, आदेश अथवा रिट जिनके अन्तर्गत बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा या इनमें से कोई निकालने की शक्ति है। ऐसे निर्देश, आदेश या रिट (i) मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन अथवा (ii) किसी अन्य प्रयोजन के लिये जारी किये जा सकते हैं। किसी अन्य प्रयोजन के लिये रिट जारी करने में कुछ निश्चित नियम हैं जिनका अनुपालन अवश्य होना चाहिये। उच्च न्यायालय निम्न परिस्थितियों में रिट जारी करने के अधिकार का प्रयोग कर सकता है-
(1) अनावश्यक देरी न हो-
जब किसी व्यक्ति को हानि हो या उसको पीड़ा पहुँचे तो उसे उपचार के लिए तुरन्त न्यायालयय की शरण लेनी चाहिए। अनावश्यक विलम्ब से न्याय में बाधा पैदा होती है। अत: निरर्थक विलम्ब के आधार पर उच्च न्यायालय याचिका जारी करने की प्रार्थना ठुकरा सकते हैं। इस सम्बन्ध में अनुच्छेद 226 में इस बात की स्पष्ट व्यवस्था है कि न्याय द्वारा उपचार उसी पक्ष को मिलना चाहिए जो उसके योग्य हो और जिसने विलम्ब न किया हो। व्यर्थ का विलम्ब करने से साम्या का अधिकार (Right of equation) तो समाप्त हो ही जाता है न्यायिक प्रक्रिया में और अधिक काम बढ़ जाता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि किसी व्यक्ति को न्यायालय से उपचार मांगने में देरी हो जाये तो उसकी प्रार्थना निश्चित रूप से ही । अस्वीकार कर दी जायेगी। यदि प्रार्थी के पास विलम्ब का उचित कारण हो और न्यायालय उस कारण से सन्तुष्ट हो तो याचिका जारी की जा सकती है।विलम्ब की अवधि का न्यायालय द्वारा जो मापदण्ड माना गया है तीन माह की अवधि से लेकर 6 वर्ष तक जो कि परिस्थितियों पर निर्भर करता है, होता है। इस अवधि के बाद न्यायालय याचिकाएं जारी करने सम्बन्धी कार्यवाही के लिए मना कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में यह बात उल्लेखनीय है कि यदि प्रार्थी का समय अन्य कानूनी प्रतिकार (Other legal remedies) प्राप्त करने में लग जाय तो यह विलम्ब नहीं माना जायेगा परन्तु यदि उसने कानून के अतिरिक्त कोई और उपचार प्राप्त करने में समय गंवाया तो निरर्थक विलम्ब माना जायेगा।
(2) तथ्यों का विवाद-
अनुच्छेद 216 के अधीन कार्यवाही की प्रकृति संक्षिप्त कार्यवाही (समरी प्रोसीडिंग) जैसी होती है जिसमें तथ्य के विवादग्रस्त प्रश्न पर विचार नहीं करना होता। नागेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1959) के वाद में रिटकर्ता को नौकरी से निकाल दिया गया था, किन्तु यह प्रश्न विवादग्रस्त था कि वह नौकरी में स्थाई हो गया था कि नहीं। पटना उच्च न्यायालय ने यह कहा कि रिटकर्ता स्थाई हो गया था या नहीं तथ्य का प्रश्न है और उच्च न्यायालय के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह रिट याचिका में तथ्य के विवादग्रस्त प्रश्न पर विचार करे। किन्तु कभी-कभी तथ्यों की गलती के प्रश्न पर भी उच्च न्यायालय विचार कर सकते हैं यदि उससे नैसर्गिक न्याय का सिद्धान्त भंग होता हो या उनसे निर्णयों पर प्रतिकूल अन्तर पड़ने की संभावना हो।
(3) तथ्यों का छिपाव-
न्यायालय को उचित प्रतिकर स्वीकृत करने में कठिनाई उस समय होती है जब प्रार्थी किसी सत्य को छिपाये या ऐसा करने की चेष्टा करे। यह साम्या का सिद्धान्त (Principle of equity) है कि जो साम्य चाहे वह साम्या करे (One who seeks equity must do equity) इसका अर्थ यह है कि प्रार्थी को स्वच्छ हृदय से और निष्कपटता पूर्ण सारे तथ्यों को न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए जिससे कि वे सारी परिस्थितियों को ठीक से समझकर उचित निर्णय दे सके। मुस्ताक हुसैन बनाम उत्तर-प्रदेश राज्य (1959 sc) नामक वाद में यह निर्णय दिया गया कि यदि वाद कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपा ले तो उसका याचिका प्राप्त करने का अधिकार समाप्त हो जाता
(4) जब कोई वैकल्पिक उपचार प्राप्त न हो-
उच्च न्यायालय व्यथित व्यक्ति को उपचार तभी प्रदान करेगा जब उसे विश्वास हो जाये कि पिटीशनर (याची) ने सभी वैकल्पिक उपचार प्राप्त कर लिये हैं, वैसे भी किसी मामले में रिट जारी की जाय अथवा नहीं यह न्यायालय के विवेक पर आधारित है। अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत रिट जारी करने के अधिकार असाधारण होते हैं जिनका प्रयोग सामान्य उपचार के रूप में नहीं किया जा सकता। हाँ मूलाधिकारों के उल्लंघन होने के बावजूद भी रिट जारी कर सकते हैं।
जब कोई वैकल्पिक और सामान्य रूप से प्रभावपूर्ण उपचार किसी वादी को प्राप्त हो तो उससे यह आशा की जाती है कि वह अवश्य उस उपचार का अनुसरण करे। प्रमिला देवी बनाम जयचन्द्र ने अपनी पत्नी प्रमिला देवी को घर से निकाल दिया और 11 माह के बालक को अपने पास रख लिया। पत्नी ने हिन्दू अवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 (क) के अन्तर्गत बालक की अभिरक्षा के लिए हैबियस कारपस रिट जारी करने के लिए उच्च न्यायालय से याचना की। किन्तु मद्रास उच्च न्यायालय ने रिट जारी नहीं कि क्योंकि पिटीशनर पत्नी को हिन्दू अवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत प्रभावी एवं कारगर वैकल्पिक उपचार प्राप्त हैं। वैकल्पिक उपचार का यह नियम केवल निर्देशात्मक है, विधि-नियम नहीं। अतएव जब वैकल्पिक उपचार अपर्याप्त या अप्रभावी हो तो न्यायालय रिट जारी कर सकता हैं।
(5) लेख की निरर्थकता-
याचिका एक सशक्त साधन है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को उपचार प्राप्त होता है। परन्तु यदि रिट जारी करने का कोई उद्देश्य सिद्ध होता न दिखाई दे तो रिट जारी नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसे रिट से किसी को कोई लाभ नहीं। सुरेश बनाम बसन्त (1970 SC) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के अनुतोष देते समय यह विचार करना चाहिए कि विरुद्ध पक्ष को किसी प्रकार का अन्याय न हो और इस रिट कर्को जारी करना निरर्थक न हो जाय। इस तरह उच्च न्यायालय ने एक विद्यार्थी के विरुद्ध रिट जारी करने से इन्कार कर दिया जो किसी निश्चित अध्ययन के लिए भर्ती था और करीब-करीब उसको पूरा कर चुका था जबकि याची स्वयं उस निश्चित पढ़ाई में भर्ती होने योग्य था ही नहीं।
उपर्युक्त के अलावा यह दृष्टव्य है कि उच्च न्यायालयों की अनुच्छेद 226 के तहत अधिकारिता साम्या वाली है इसलिये इसका प्रयोग इस प्रकार होना चाहिये जिससे राज्य की विधिका अनुपालन हो और प्रशासकीय प्राधिकारी अपनी अधिकारिता के अन्दर रहे। अनुच्छेद 226 के तहत की गयी कार्यवाही में उच्च न्यायालय पक्षकारों के व्यक्तिगत अधिकारों का विनिश्चय नहीं करता है। यह उपचार राज्य अथवा कानूनी प्राधिकारियों द्वारा अधिकारों के अतिक्रमण के विरुद्ध उपलब्ध है। यह लोक विधि का उपचार है।
Important Links
- भारत में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता | Independence of judiciary in India
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति एवं क्षेत्राधिकार
- उच्चतम न्यायालय के सलाहकारी अधिकारिता के विस्तार एवं महत्व
- उच्चतम न्यायालय के विभिन्न क्षेत्राधिकार |various jurisdictions of the Supreme Court.
- उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक स्थिति | constitutional position of Supreme Court
- राष्ट्रपति कब अध्यादेश जारी कर सकता है ? When the President can issue an ordinance?
- भारत में राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया | procedure of impeachment of President of India.
- साधारण विधेयक की प्रक्रिया | procedure of ordinary bill
- वित्त विधेयक और धन विधेयक में अन्तर | Difference between Finance Bill and Money Bill
- साधारण विधेयक एवं धन विधेयक |Ordinary Bill and Money Bill
- धन विधेयक के प्रस्तुतीकरण और पारित किये जाने की प्रक्रिया |passing of money bills.
- राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ क्या है? What are the legislative powers of the President?
- भारतीय संसद में विधि-निर्माण प्रक्रिया| Procedure of Law Making in Indian Parliament
- संसदात्मक शासन प्रणाली का अर्थ, परिभाषा तथा इसके गुण व दोष
- भारतीय संविधान में नागरिकता सम्बन्धी उपबन्ध | Citizenship provisions in the constitution of India
- भारतीय संविधान की प्रकृति | Nature of Indian Constitution- in Hindi
- संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है ?
- क्या उद्देशिका (प्रस्तावना) संविधान का अंग है ? Whether preamble is a part of Constitution? Discuss.
- संविधान निर्माण की प्रक्रिया | The procedure of the construction of constitution
- भारतीय संविधान के देशी स्रोत एंव विदेशी स्रोत | sources of Indian Constitution
- भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए|Characteristic of Indian Constitution
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi
- वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव | Effects of Environment on school performance – in Hindi
- विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi
- प्रबन्धतन्त्र का अर्थ, कार्य तथा इसके उत्तरदायित्व | Meaning, work & responsibility of management
- मापन के स्तर अथवा मापनियाँ | Levels or Scales of Measurement – in Hindi