संघ एवं राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों का वर्णन कीजिये। State the financial relations between Union and State.
संघ एवं राज्यों के वित्तीय सम्बन्ध- भारतीय शासन व्यवस्था का स्वरूप संघात्मक है, जिसमें केन्द्र तथा राजज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। केन्द्र और राज्यों के बीच सम्बन्धों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है- विधायी प्रशासनिक तथा वित्तीय सम्बन्ध। संविधान के अनुच्छेद 245 से 255 तक विधायी सम्बन्धों, 256 से 263 तक प्रशासनिक सम्बन्धों तथा 264 से 291 तक। दोनों के बीच वित्तीय सम्बन्धों को स्पष्ट किया गया है।
(1) प्रशासनिक सम्बन्ध-
संविधान द्वारा राज्य एवं केन्द्रों की सरकारों की रचना की गयी है। दोनों सरकारों को अलग-अलग कार्यकारिणी के अधिकार दिये गये हैं। इस प्रकार भारत में प्रजातान्त्रिक राज्य व्यवस्था है। यह आवश्यक नहीं है कि केन्द्र तथा राज्यों में एक दल का शासन हो। राज्य एवं केन्द्र कभी-कभी इस स्थिति में आ सकते हैं कि उनकी कार्यकारिणी शक्तियों में गतिरोध उत्पन्न हो जाय। संघ तथा राज्यों के प्रशासकीय सम्बन्धों को निम्नलिखित प्रकार से उल्लिखित किया जा सकता है।
(A) राज्यों तथा संघ का आभार- अनुच्छेद 256 के अनुसार, संविधान ने राज्यों एवं संघ पर आभार स्थापित किये हैं। यह आभार संवैधानिक आभार है। इस अनुच्छेद में व्यवस्थित किया गया है कि राज्य की कार्यकारिणी इस प्रकार कार्य करेगी जिससे संसद द्वारा बनाये गये कानूनों का पालन होगा। इसी प्रकार संविधान के पूर्व बने कानून भी राज्यों में लागू होंगे तथा राज्य उनका अनादर नहीं करेगा। केन्द्र के कानून को यदि राज्य की कार्यकारिणी उचित प्रकार से लागू नहीं करती है तो केन्द्र राज्यों को निर्देश दे सकता है। इस प्रकार इस अनुच्छेद द्वारा राज्यों की तथा संघ की कार्यकारिणी के मध्य तालमेल किये जाने की व्यवस्था है।
(B) संघ का राज्यों पर नियन्त्रण- अनुच्छेद 257(4) के द्वारा भारत संघ कुछ विषयों पर नियन्त्रण रखता है जिसके अनुसार प्रत्येक राज्य की कार्यकारिणी शक्ति का प्रयोग इस प्रकार होगा जिससे कि संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई बाधा उत्पन्न न । संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य के किसी इस प्रकार के संचार-साधनों से निर्माण करने और बनाये रखने के लिए निर्देश देने तक विस्तृत होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्त्व का होना उस निर्देश में घोषित किया गया हो।
(C) राज्यों को सशक्त बनाने का अधिकार- संविधान के अनुसार संघ को अधिकार है कि वह राज्यों को सशक्त बनाये। इस अधिकार के अनुसार, संघ राज्यों को कुछ शक्तियाँ प्रदान कर सकता है जो राज्यों के पास नहीं है। इस प्रकार की शक्तियाँ सौंपते समय शर्ते भी लगायी जा सकती हैं।
(D) संघीय कृत्यों को राज्यों को सौंपना- अनुच्छेद 258(1) यह उपबन्धित करता है कि संसद किसी राज्य सरकार की सम्मति से, संघ कार्यपालिका शक्ति से सम्बन्धित किसी विषय को उस सरकार को या उसके पदाधिकारियों को सशर्त सौंप सकती है। केन्द्र की ही तरह राज्य सरकारें भी अपने कृत्यों को या संघ सरकार को सौंप सकती हैं। अनुच्छेद 258 (अ) यह उपबन्धित करता है कि, किसी राज्य का राज्यपाल भारत सरकार की सम्मति से ऐसे किसी भी विषय सम्बन्धी कृत्य, जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त के उसे सौंप सकता है। राज्य केन्द्र को अपने कृत्य केन्द्र की सहमति से ही सौंप सकते हैं, जबकि केन्द्र अपने कृत्यों को राज्यों को उनकी सहमति के बिना भी सौंप सकता है।
(E) विदेशी राज्यों की कार्यकारिणी शक्तियों का ग्रहण- संविधान की व्यवस्था के अनुसार केन्द्रीय सरकार अन्य विदेशी सरकारों की कार्यकारिणी की शक्तियों को ग्रहण कर सकती हैं।
(F) सम्पूर्ण विश्वास को मान्यता- इस नियम के अनुसार राज्य के सम्पूर्ण राज्य- क्षेत्र में लेखा कार्यों, अभिलेखों तथा न्यायिक कार्यवाहियों पर विश्वास किया जायेगा। न्यायालय द्वारा दिये गये अन्तिम निर्णय भारत राज्य के सम्पूर्ण क्षेत्र में प्रतिपादित कराये जा सकेंगे (अनुच्छेद 261)।
(G) जल-विवादों से सम्बन्धित अधिकार- संविधान के अनुच्छेद 262 में यह व्यवस्था की गयी है कि संसद विधि द्वारा उन विवादों को निपटाने की व्यवस्था कर सकती है जिनका सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीग विवाद से है। इस विधि के द्वारा केन्द्र अन्तर्राज्यीय नदियों के जल के प्रयोग तथा वितरण की वस्था कर सकता है तथा विधि बनाकर उन्हें कानून के क्षेत्र से भी परे कर सकता है। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत संसद द्वारा नदी परिषद् अधिनियम, 1956 ई. को पारित कर दिया गया है।
(2) वित्तीय सम्बन्ध-
किसी भी संघात्मक प्रणाली की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि केन्द्र तथा राज्यों के वित्तीय साधन पर्याप्त अनुच्छेद 265 यह उपबन्धित करता है कि विधि के अधिकार के सिवाय कोई कर न तो आरोपित किया जायेगा और न संग्रहीत किया जायेगा। किसी कार्यकारिणी के आदेश के द्वारा कोई कर नहीं लगाया जा सकता है। संविधान के किसी भी उपबन्ध द्वारा यदि कर लगाना निषेध हो तो वह कर विधि अवैध होगी। उदाहरण के लिए, वह कर विधि शून्य होगी जो संविदान के अनुच्छेद 14 में निहित समता के मूल अधिकार का उल्लंघन करती है।
संघ तथा राज्यों में राजस्वों का वितरण-
संविधान के अनुच्छेद 268 के अन्तर्गत केन्द्र तथा राज्यों के बीच राजस्व के वितरण के विषय में प्रावधान किया गया है। संघ सूची के विषयों पर कर लगाने का अनन्य अधिकार केन्द्र को तथा राज्य सूची पर कर लगाने का अनन्य अधिकार राज्यों को दिया गया है। समवर्ती सूची में केवल कुछ करों को लगाने का प्राविधान है। यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य सूची में वर्णित विषयों पर लगाये गये करों को राज्य वसूल करके अपने पास रखते हैं जबकि केन्द्र सूची में वर्णित विषयों पर लगे कर में से कुछ पूर्णतया या अंशतया राज्यों में वितरित कर दिये जाते हैं।
केन्द्रीय अनुदान-
प्रत्येक संघात्मक संविधान में केन्द्र द्वारा राज्यों का अपने कर्तव्यों को पालन करने हेतु समर्थ बनाने के लिए अनुदान की व्यवस्था रहती है। भारतीय संविधान के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों को अनुदान दिये जाने की व्यवस्था है। अनुदान देने सम्बन्धी, संविधान में निम्नलिखित प्राविधान किये गये हैं-
(1) अनुच्छेद 273 के अन्तर्गत पटसन या पटसन से बनी हुई वस्तुओं पर निर्यात शुल्क से आने वाली कुल राशि के किसी भाग को असम, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्यों को सहायक अनुदान के रूप में दिया जायेगा। यह वस्तुएँ उक्त सज्यों में उत्पन्न होती हैं जिन पर केन्द्र सरकार को निर्यात शुल्क लगाने का अधिकार है।
(2) अनुच्छेद 275 के अधीन संसद उन राज्यों को जिन्हें उनके अनुसार सहायता की आवश्यकता है ऐसी राशि सहायक अनुदान रूप में प्रदान करेगी जैसी कि संसद विधि निर्धारित करे।
(3) उन राज्यों को विशेष केन्द्रीय अनुदान दिया जायेगा जो अनुसूचित तथा आदिम जातियों के कल्याण या अनुसूचित क्षेत्रों में शासन स्तर की उन्नति के प्रयोजन के लिए भारत सरकार के
अनुमोदन से हाथ में ली गयी योजनाओं को कर्यान्वित कर रहे हों। इस प्रयोजन के लिए असम राज्यों को विशेष अनुदान दिया जाता है।
(4) अनुच्छेद 282 के अन्तर्गत संघ या राज्य दोनों किसी सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए कोई भी अनुदान दे सकते हैं, भले ही उस प्रयोजन पर संसद या उस राज्य विधानमण्डल को विधि बनाने की शक्ति न हो। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार राज्य-क्षेत्र के अस्पतालों या शिक्षण संस्थाओं को अनुदान दे सकती है।
उपर्युक्त उपबन्धों से स्पष्ट है कि वित्तीय मामलों में राज्य सरकारों को काफी हद तक केन्द्र सरकार के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार वित्तीय सम्बन्धों में भी केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति विद्यमान है।
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