भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम
“भारत की सम्पूर्ण सीमा में व्यापार, वाणिज्य एवं समागम की स्वतन्त्रता होगी।” क्या कोई इसकी मर्यादा होगी? यदि हाँ तो समझाइये। Freedom of Trade, commerce and Intercourse throughout the territory of India shall be free. Discuss and point out limitations, if any.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 में देश की आर्थिक प्रगति को विकासनोमुखी बनाने के लिए तथा आर्थिक एकता को बनाये रखने के लिए सम्पूर्ण भारत व्यापार-वाणिज्य तथा समागम को अवरोध मुक्त बनाने के विषय में उपबन्ध किये गये हैं।
संविधान का अनुच्छेद 301 यह उपबन्धित करता है कि, “इस भाग के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य तथा समागम अबाध होगा।”
इस अनुच्छेद को ऑस्ट्रेलिया के संविधान की धारा 92 के अंगीकृत किया है परन्तु भारत में इसे ऑस्ट्रेलिया से विस्तृत अर्थ में स्वीकृत किया गया है। भारत में न केवल राज्यों के बीच वरन् राज्य के भीतर भी व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतन्त्रता है।
यह सर्वविदित है कोई भी स्वतन्त्रता आत्यन्तिक नहीं होती है उसे विनियमित किया जा सकता है। अनुच्छेद 301 पर लगाये गये प्रतिबन्धों का उल्लेख अनुच्छेद 302 से अनुच्छेद 305 तक में उपबन्धित है। इसके अतिरिक्त विनियात्मक (Regulatory) विधि के आधार पर इन प्रतिबन्धों को लगाया जा सकता है परन्तु प्रतिबन्धात्मक (Restrictive) विधि के आधार पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
मैसूर राज्य बनाम एच. संजीवैया के मामले में सरकार द्वारा निर्मित इस नियम की वैधता को चुनौती दी गयी थी जिसके द्वारा शाम से सबेरे तक की जंगल की पैदावार को ले जाने पर रोक लगाये जाने की व्यवस्था थी। न्यायालय ने इस नियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया क्योंकि उक्त नियम विनियमात्मक (Regulatory) नहीं वरन् प्रतिबन्धात्मक (Restrictive) है जो अनुच्छेद 301 में प्रदत्त मूल अधिकार का अतिक्रमण करता है।
तमिलनाडु राज्य Vs. मैसर्स रंजीत ट्रेडिंग कम्पनी के मामले में टिम्बर की लकड़ी की क्षेत्रीय आवश्यकता को करने तथा साधारण जनता को उचित मूल्य में उपलब्ध कराने के उद्देश्य से तमिलनाडु सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके उसे राज्य से बाहर ले जाने पर पूर्ण रोक लगा दी। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि तमिलनाडु सरकार का वह आदेश विधि मान्य है और अनुच्छेद 301 तथा 304(B) का उल्लंघन नहीं करता है और एक विनियमात्मक उपाय है।
विनियमात्मक तथा प्रतिकारात्मक विधियों के सम्बन्ध में न्यायालयों के विचारणों से निम्नलिखित सिद्धान्त स्पष्ट होते हैं-
- अनुच्छेद 301 अन्तर्राज्यों तथा राज्यों के आन्तरिक भागों में व्यापार, वाणिज्य एवं अन्तर्व्यवहारों की स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करता है।
- व्यापार, वाणिज्य और समागम शब्दावली बड़ी विस्तृत अर्थों वाली है और इसके अन्तर्गत व्यक्तियों और वस्तुओं दोनों का आवागमन शामिल है।
- यह स्वतन्त्रता केवल विधायिका द्वारा प्रदत्त शक्ति के अधीन निर्मित ऐसी विधियों के विरुद्ध ही संरक्षण नहीं है जो व्यापार और वाणिज्य या उत्पादन आपूर्ति और मालों (goods) के वितरण से सम्बन्धित है वरन् कर अधिरोपित करने वाली सभी प्रकार की विधियों के विरुद्ध संरक्षण है।
- केवल वही कानून जो कि प्रत्यक्ष एवं तात्कालिक प्रभाव से व्यापार अथवा वाणिज्य की स्वतन्त्रता को निर्बन्धित करते हैं, अनुच्छेद 301 की स्वतन्त्रताओं के प्रतिकूल माने जायेंगे।
- ऐसे कानून जो केवल विनियमन करते हैं अथवा प्रतिकारात्मक कर लगाते हैं और जिनका उद्देश्य व्यापार की स्वतन्त्रता को बढ़ाना है, अनुच्छेद 301 के क्षेत्र के बाहर माने जायेंगे।
अनुच्छेद 301 पर निर्बन्धन–
अनुच्छेद 301 में वर्णित व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतन्त्रता के अधिकारों पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध अथवा निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं।
(1) लोकहित में विनियमित करने की संसद की शक्ति-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 302 द्वारा यह उपबन्धित किया है कि संसद को यह अधिकार है कि यदि लोकहित में अपेक्षित हो तो वह अनुच्छेद 301 के अधीन वर्णित स्वतन्त्रता के अधिकार पर निर्बन्धन लगा सकती है। यह सुनिश्चित करने का अधिकार संसद को ही है कि कौन सा निर्बन्धन लोकहित में है तथा कौन सा नहीं, परन्तु ये निर्बन्धन न्यायिक जाँच के विषय माने जाते हैं।
अनुच्छेद 302 के अधीन दी गयी संसद की शक्ति अनुच्छेद 303 द्वारा परिसीमित की गयी है। अनुच्छेद 302 दो राज्यों में विभेद करने वाली विधियों के निर्माण पर रोक लगाता है। इसके अनुसार, संसद अथवा राज्य का विधान मण्डल व्यापार, वाणिज्य या समागम की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में कोई ऐसी विधि नहीं बना सकता-
- जो एक राज्य को दूसरे राज्य पर अधिमान देने वाली हो, अथवा
- एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच विभेद करने वाली हो।
अपवाद- अनुच्छेद 302 का अपवाद है कि संसद दो राज्यों में विभेदकारी विधि सकती है यदि उसे यह प्रतीत हो कि किसी राज्य में “माल की कमी से संकट उत्पन्न हो गया है और ऐसे संकट से निपटने के लिए तथाकथित विधि का बनाया जाना आवश्यक है।
(2) विनियमित करने की राज्य की शक्ति-
संविधान के अनुच्छेद 304 द्वारा व्यापार, वाणिज्य तथा समागम की स्वतन्त्रता के अधिकार पर दो और निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं। इसके अनुसार, राज्य का विधान मण्डल विधि द्वारा-
- अन्य राज्यों अथवा संघ राज्य क्षेत्रों से आयातित माल पर कर अधिरोपित कर सकता है, तथा
- लोक हित में राज्य के भीतर व्यापार, वाणिज्य एवं समागम की स्वतन्त्रता पर युक्ति- युक्ति निर्बन्धन लगा सकता है।
परन्तु यह निर्बन्धन भी निम्नलिखित शर्तों के अधीन है, अर्थात्-
- ऐसी विधि विभेदकारी न हो।
- ऐसे निर्बन्धन का लोकहित में होना आवश्यक है।
- ऐसे निर्बन्धन के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मन्जूरी आवश्यक होती है; तथा
- ऐसा निर्बन्धन युक्तियुक्त होना चाहिए।
(3) वर्तमान विधियों की व्यावृत्ति-
अनुच्छेद 305 वर्तमान विधियों तथा राज्य एकाधिकार के लिए उपबन्ध करने वाली विधियों की वहाँ तक व्यावृत्ति करता है, सिवाय जहाँ तक कि राष्ट्रपति द्वारा अन्यथा निर्देश देकर कोई प्रभाव न डाला जाये।
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