उच्चतम न्यायालय के सलाहकारी अधिकारिता के विस्तार एवं महत्व का वर्णन कीजिए। Describe the scope and importance of the advisory Jurisdiction of the Supreme Court.
संविधान के अनुच्छेद 143 हमारे उच्चतम न्यायालय को ऐसी अधिकारिता प्रदान करता है जिसे परामर्श या सलाहकारी अधिकारिता कहते हैं। भारत शासन अधिनियम, (1995 द्वारा परिसंघ न्यायालय को भी इसी प्रकार की अधिकारिता स्वीकार नहीं है। आस्ट्रेलिया के उच्च न्यायालय को (वहां का शीर्षस्थ न्यायालय) सलाहकारी अधिकारिता नहीं है।
अनुच्छेद 143 में यह कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि-
- विधि या तथ्य का कोई प्रश्न उपस्थित हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है,
- ऐसा प्रश्न ऐसी प्रकृति का या ऐसे व्यापक महत्व का है कि,
- उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है,
तो वह प्रश्न को विचार करने के लिए न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा। न्यायालय ऐसी सुनवाई करने के पश्चात् जो वह ठीक समझे अपनी राय राष्ट्रपति को प्रतिवेदित कर सकेगा।
अनुच्छेद 143 के दूसरे भाग के अधीन राष्ट्रपति उस प्रकार के विवाद को जो अनुच्छेद 131 के परन्तुक में वर्णित है उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा। उक्त परन्तुक में वर्णित मामले हैं- संविधान के प्रारम्भ से पहले की गयी कोई संधि, करार, सनद आदि। इन सबको उच्च्तम न्यायालय की आरम्भिक अधिकारिता से अपवर्जित किया गया है। इन दोनों अनुच्छेदों का संयुक्त प्रभाव यह है कि प्रभावित पक्षकार ऐसे संधि या करार से उद्भूत होने वाले किसी मामले को निपटाने के लिए न्यायालय में समावेदन नहीं कर सकते किन्तु राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से यह अनुरोध कर सकता है कि वह अपनी राय दें। यह आशा करना उचित और युक्तियुक्त होगा कि राष्ट्रपति उस राय के अनुसार कार्य करेगा। अभी तक इस प्रकार का कोई मामला राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
अनुच्छेद 143 के निर्वचन का प्रश्न सर्वप्रथम इन रि एजुकेशनल बिल (AIR 1959 SC956) के मामले में सर्वप्रथम उच्चतम न्यायालय के समक्ष आया। न्यायालय ने इस मामले में अनुच्छेद 143 लागू होने के लिए निम्न सिद्धान्त निर्धारित किये थे-
- अनुच्छेद 143(1) में प्रयुक्त कर सकेगा शब्दावली यह दर्शाती है कि उच्चतम न्यायालय सलाह देने के लिए बाध्य नहीं है। यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह सलाह दे या नहीं।
- उच्चतम न्यायालय को कौन से प्रश्न सौपें जाए इसका निर्धारण राष्ट्रपति करता है। राष्ट्रपति के इस निर्णय पर आपत्ति नहीं की जा सकती है। अनुच्छेद 143 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी राय यद्यपि आदर के योग्य है। परन्तु वह न्यायालयों पर बाध्यकारी नहीं है। यह राय अनुच्छेद 141 में प्रयुक्त विधि’ शब्द के अंतर्गत नहीं आती है।
किन्तु इन रि स्पेशल कोर्ट बिल, 1978 में उच्चतम न्यायालय ने अपने उक्त मत को बदल दिया है। यह अभिनिर्धारित किया है कि अनुच्छेद 143 के अधीन उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को राय देने के लिए बाध्य है। न्यायालय ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी राय सभी न्यायालयों पर आबद्धकर है किन्तु न्यायालय ने यह राय दिया है कि न्यायालय की राय के लिए निर्दिष्ट प्रश्नों को ही सौंपा जाना चाहिए। यदि ऐसे प्रश्न अस्पष्ट या असामान्य प्रकृति के हैं तो उच्चतम न्यायालय अपनी राय देने के लिए बाध्य नहीं होगा।
संविधान के अनुच्छेद 143 के विस्तार एवं महत्व के बारे में कुछ प्रश्न उत्पन्न हो सकते हैं। ये प्रश्न निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
(क) क्या उच्चतम न्यायालय उसे दिए गए निर्देश या उसके किसी भाग पर अपनी राय देने से इन्कार कर सकता है?-
यदि न्यायालय का यह विचार है कि किसी प्रश्न पर उत्तर देना उचित नहीं है या संभव नहीं है तो उसे अधिकार है कि वह प्रश्न का उत्तर देने से इंकार कर दें। रामजन्म भूमि निर्देश 43 में न्यायालय ने इस प्रश्न पर राय देने से इंकार कर दिया कि उस स्थान पर जहां बाबर ने मस्जिद बनाई थी पहले कोई मंदिर विद्यमान था या नहीं। न्यायालय ने 1982 के निर्देश सं0 1 को (पैरा 15:44) बिना राय दिए लौटा दिया।
(ख) क्या काल्पनिक प्रश्न निर्देशित किए जा सकते हैं? –
यह आवश्यक नहीं है कि तथ्य वास्तव में विद्यमान हो। जब कोई प्रश्न उत्पन्न होने की सम्भावना है तब पहले से ही निर्देश किया जा सकता है। केरल शिक्षा विधेयक और विशेष न्यायालय विधेयक के मामले में ऐसा ही था। अभी तक कोई ऐसा प्रश्न निर्दिष्ट नहीं किया गया है जो काल्पनिक या शास्त्रीय हो।
(ग) क्या साधारण प्रश्न निर्देशित किए जा सकते हैं?-
प्रश्न विनिर्दिष्ट होने चाहिए। साधारण या अस्पष्ट नहीं। अभी तक जितने निर्देश दिए गए हैं वह वास्तविक तथ्यों पर आधारित थे और यह संभाव्यता थी कि उनका व्यापक प्रभाव होगा। राय लेने का कारण यह था कि इससे समय और बेकार की परेशानी दोनों से बचा जा सकेगा। राय के लिए प्रश्न विधि मंत्रालय द्वारा सावधानी से तैयार किये जाते हैं और महान्यायवादी उनकी विधीक्षा करता है।
(घ) क्या उच्चतम न्यायालय राय देकर विधान बनाता है?-
इसका उत्तर नहीं में है। न्यायालय अपनी सुविचारित राय देता है और किसी भी प्रकार से विधान मंडल के कृत्यों में अतिक्रमण नहीं करता। उदाहरण के लिए न्यायलय ने विशेष न्यायालय विधेयक पर अपनी राय दी थी। राय के अनुसार विधेयक का संशोधन करके संसद में पारित किया गया।
सन् 2010 तक राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 143 के अधीन निम्न निर्देश किये थे जो इस प्रकार हैं-
1. दिल्ली विधि अधिनियम- प्रत्यायोजित विधान की दृष्टि से इस अधिनियम की विधिमान्यता पर विचार करने के लिए।
2. केरल शिक्षा विधेयक- यह विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया गया था। राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को इसकी विधि मान्यता पर राय देने के लिए निर्देशित किया था।
3. बेरूबाड़ी यूनियन- भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग को पाकिस्तान को अंतरित करने की क्या रीति है यह जानने के लिए राय मांगी गयी थी।
4. समुद्री सीमा शुल्क अधिनियम- संविधान के अनुच्छेद 289 के प्रकाश में समुद्री सीमा शुल्क विधेयक की विधि मान्यता पर विचार करने के लिए।
5. 1964 का विशेष निर्देश सं०-1- इसे केशव सिंह का मामला भी कहते हैं। इस निर्देश का उद्देश्य विधान मंडल के विशेषाधिकारों का विस्तार कितना है और इसके बारे में न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति कितनी है यह जानना था।
6. 1974 के राष्ट्रपतीय निर्वाचन- निर्वाचन के बारे में कुछ संदेहों के संबंध में।
7. विशेष न्यायालय विधेयक 1978- आपात के दौरान (जून 1975 से मार्च 1977) जिन उच्च पदाधिकारियों ने अपराध किए थे उनके विचारण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करने वाले विधेयक की विधि मान्यता के बारे में न्यायालय की राय जानने के लिए यह निर्देश दिया गया था।
8. कावेरी जल विवाद अधिकरण- यह विचार करने के लिए कि क्या अधिकरण अंतरिम आदेश दे सकता है और उसी से संबंधित कुछ अन्य मामले।
9. 1993 का विशेष निर्देश सं०-1- इसका संबंध राम जन्म भूमि के निकट कुछ विवादित भूमि के अर्जन के लिए अध्यादेश जारी किए जाने के बारे में और इस बात पर राय लेने के लिए कि क्या राम जन्मभूमि के नाम से ज्ञात स्थान पर कभी कोई मन्दिर स्थित था।
10. 1998 का विशेष निर्देश सं०-1- न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श के बारे में और पत्राचार पद्धति के बारे में कुछ संदेहों को दूर करने के लिए। पुनः
11. 1982 का विशेष निर्देश सं०-1- यह जम्मू कश्मीर राज्य द्वारा पारित स्थापन अधिनियम की विधिमान्यता के संबंध में था। यह 08.11.2000 को लौटाया गया। (यह प्रकाशित नहीं हुआ है।)
12. 2002 का विशेष निर्देश सं०-1 (गुजरात विधान सभा के निर्वाचन का मामला)- गुजरात राज्य विधान सभा को समय पूर्व विघटित कर दिया गया था। यह प्रश्न निर्देशित किया गया कि क्या विधान सभा का अधिवेशन छह मास के भीतर होना चाहिए। इसमें अनुच्छेद 174,324, और 356 का निर्वचन किया जाना था।
13. 2001 का विशेष निर्देश सं०-1- क्या राज्यों की अनुसूची 7 की सूची 2 की प्रविष्टि 25 के अधीन प्राकृतिक गैस और द्रवीकृत प्राकृतिक गैस विषय पर विधान बनाने की क्षमता है या क्या केवल संघ को प्राकृतिक गैस पर चाहे वह किसी भी भौतिक रूप से हो सूची। की प्रविष्टि 53 के अधीन अधिनियम बनाने की क्षमता है?
14. पंजाब करार का पर्यवसान अधिनियम 2004 जो पंजाब राज्य द्वारा पारित किया गया था जुलाई 2004 में यह राय जानने के लिए निर्दिष्ट किया गया कि राज्य यह अधिनियम बनाने के लिए सक्षम हैं या नहीं। अभी राय नहीं दी गयी।
Important Links
- साधारण विधेयक की प्रक्रिया | procedure of ordinary bill
- वित्त विधेयक और धन विधेयक में अन्तर | Difference between Finance Bill and Money Bill
- साधारण विधेयक एवं धन विधेयक |Ordinary Bill and Money Bill
- धन विधेयक के प्रस्तुतीकरण और पारित किये जाने की प्रक्रिया |passing of money bills.
- राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ क्या है? What are the legislative powers of the President?
- भारतीय संसद में विधि-निर्माण प्रक्रिया| Procedure of Law Making in Indian Parliament
- संसदात्मक शासन प्रणाली का अर्थ, परिभाषा तथा इसके गुण व दोष
- भारतीय संविधान में नागरिकता सम्बन्धी उपबन्ध | Citizenship provisions in the constitution of India
- भारतीय संविधान की प्रकृति | Nature of Indian Constitution- in Hindi
- संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है ?
- क्या उद्देशिका (प्रस्तावना) संविधान का अंग है ? Whether preamble is a part of Constitution? Discuss.
- संविधान निर्माण की प्रक्रिया | The procedure of the construction of constitution
- भारतीय संविधान के देशी स्रोत एंव विदेशी स्रोत | sources of Indian Constitution
- भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए|Characteristic of Indian Constitution
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi
- वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव | Effects of Environment on school performance – in Hindi
- विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi
- प्रबन्धतन्त्र का अर्थ, कार्य तथा इसके उत्तरदायित्व | Meaning, work & responsibility of management
- मापन के स्तर अथवा मापनियाँ | Levels or Scales of Measurement – in Hindi