राजभाषा के रूप में हिन्दी का स्थान | राजभाषा के रूप में हिन्दी का संवैधानिक स्वरूप
राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है- राजा भी भाषा किन्तु आधुनिक युग राजाओं के युग का नहीं है। आज प्रजातन्त्र है फिर भी राज्य सम्बन्धी काम-काज तो आज भी होते ही हैं अतः किंचित् संशोधन-परिमार्जन के साथ आधुनिक युग में राजभाषा से तात्पर्य राज्य के कार्यों में प्रयुक्त होने वाली भाषा से लिया जाने लगा है।
संविधान निर्माताओं के सामने स्वतंत्रता से पूर्व ही यह प्रश्न था कि भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् किस भाषा को भारत की राजभाषा का पद दिया जाएगा। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, उनका प्रचुर साहित्य भी है। पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय पारित किया कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी होगी।
संवधान में राजभाषा सम्बन्धी अनुच्छेद भाग 17 के अध्याय 1 में धारा-343 से 351 तक हैं। राजभाषा सम्बन्धी संवैधानिक उपबन्ध निम्नलिखित हैं-
(1) संविधान भाग-5 (120)– संसद-कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में किया जाएगा।
(2) संविधान भाग-6 (210)– राज्य के विधान-मण्डल के कार्य राज्य की राजभाषा, राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी मे किया जायगा।
(3) संविधान भाग 17 : अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।
(4) अनुच्छेद 344- राष्ट्रपति द्वारा संविधान के प्रारम्भ से 5 वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात् 10वर्ष की समाप्ति पर आदेश द्वारा एक आयोग गठधित किया जाएगा जो आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारतीय भाषाओं के प्रयोग एवं विकास के विषय में अनुशंसा करेगा।
(5) अनुच्छेद 345- राज्य विधान मण्डल उस राज्य में प्रयोग में आने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक को या हिन्दी को शासकीय प्रयोग के लिए अंगीकार कर सकेगा।
(6) अनुच्छेद 346– एक राज्य और के संघ के बीच पत्रादि की भाषा वहाँ की राजभाषा या हिन्दी होगी।
(7) अनुच्छेदज 347- यदि किसी राज्य की संख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वाआर बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो राष्ट्रपति निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उनके किसी भाग में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए।
(8) अनुच्छेद 348– राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्चतम न्यायालयों में तथा अधिनियओं एवं विधेयकों में प्रयोग की जाने वाली भाषा हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा प्रयोग की जा सकेगी।
(9) अनुच्छेद 349- राष्ट्रपति द्वारा भाषा सम्बन्धी कुछ विधेयकों को अधिनियम करने के लिए गठित राजभाषा आयोग और समिति की सिफारिशों और उनके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टो पर विचार करने के पश्चात् ही मंजूरी दी जाएगी।
(10) अनुच्छेद 351- संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे, ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति का सभी तत्त्वों के साथ अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। भारत के राष्ट्रपति महोदय ने संविधान के अनुच्छेद 343(2) के अधीन 27 मई, 1952 को एक आदेश जारी किया जिसमें राज्यों के राज्यपालों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों के अधिपत्रों को अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी में और अन्तर्राष्ट्रीय अंकों के अतिरिक्त देवनागरी के अंकों के प्रयोग को प्राधिकृत किया गया।
इसी प्रकार सन् 1955 में राष्ट्रपति द्वारा एक अन्य आदेश जारी किया गया जिसमें-
(1) जनता के साथ पत्र व्यवहार, (2) प्रशासनिक रिपोर्ट, (3) सरकारी पत्रिकाएँ और संसद को दी जाने वाली रिपोर्ट, (4) सरकारी संकल्प और विधायी अधिनियम, (5) जिन राज्य सरकारों ने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपना लिया है इउनके साथ पत्र-व्यवहार, (6)संधियाँ और करार, (7) अन्य देशों की सरकारों और राजदूतों तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से पत्र-व्यवहार, (8) राजनीतिज्ञों तथा भारत के प्रतिनिधियों को जारी किये जाने वाले औपचारिक कागजात आदि के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी के प्रयोग को प्राधिकृत किया गया।
हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने सन् 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की। इससे पूर्व सन् 1963 और 1976 में राजभाषा अधिनियम भी पारित किये गये जिनमें केन्द्र और राज्य के सरकारी कामकाज और अंग्रेजी तथा हिन्दी के प्रयोग पर अनेक उपबन्ध लागू किये गये। सन् 1960 के आदेश के अनुसार सरकार मैन्युअलों, फार्मों, विनियमों को हिन्दी में अनूदित करने का कार्य निदेशालय को सौंपा गया। सन् 1961 में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग बना जिसमें कृषि, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, मानविकी, औद्योगिक आदि विषयों से सम्बन्धित शब्द-कोशों के निर्माण के साथ-साथ विश्व- कोशों के निर्माण का कार्य भी हिन्दी में आरंभ हुआ। सन् 1975 में स्वतन्त्र रूप से राजभाषा विभाग का गठन हुआ, जिसके द्वारा संवैधानिक उपबन्धों को समुचित रूप से क्रियान्वित करने, उन्हें बढ़ावा देने तथा पुनरीक्षण करने एवं समन्वय करने का प्रभावी प्रयास किया जा रहा है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में गैर-सरकारी, समाज-सेवी, स्वयं-सेवी संस्थाएँ भी कार्यरत हैं
निष्कर्षतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को संविधान में महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है तथा आधुनिक भारत में सभी राजकाज में उसका प्रयोग हो रहा है।
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