हिन्दी के भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का वर्णन कीजिये।
खड़ी बोली में हिन्दी के भाषिक और साहित्यिक विकास में जिन भाषाओं का योगदान रहा है, उनमें अपभ्रंश का महत्वपूर्ण स्थान है।
भाषिक योगदान (ध्वनिगत)-
1. मध्यकालीन आर्यभाषाओं में घटित ध्वनिपरिवर्तनों को अपनाकर अपमेश ने उन्हें हिन्दी को सौंप दिया। अपश में ध्वनिपरिवर्तन के जितने भी नियम थे, हिन्दी में चलते रहे।
उदा०- यत् = जत् जो
2. संस्कृत की जिन नियों को अपभ्रंश ने ग्रहण नहीं किया वे हिन्दी में भी नहीं आ पायी। उदा०-ऋ,लू
3. संस्कृत की ड़ ढ़ ध्वनियाँ अपभ्रंश में पहली बार प्रयुक्त हुई जिन्हें हिन्दी में ग्रहण कर लिया गया।
4. अन्त्य स्वर के लोप की प्रवृत्ति हिन्दी में अपभ्रंश से ग्रहण की गयी।
उदा०—अग्नि = आग
5. अपभ्रंश में क्षतिपूरक दीर्घाकरण का नियम हिन्दी में भी चलता रहा।
उदा०-सच्च = साँच, अज्ज = आज
6. संस्कृत के पंचमाक्षर के स्थान पर अपभ्रंश में अनुस्वार का प्रयोग हुआ। इसे हिन्दी में भी अपनाया गया।
उदा०—पञ्च= पाँच, कम्पन = कपन, दण्ड = दंड
7. संस्कृत के संयुक्त व्यंजनों के सरलीकरण की प्रवृत्ति अपभ्रंश में थी। हिन्दी में इसे अपनाने में उच्चारण सरल हो गया।
उदा०–चतुष्क = चौक
8. बहुत सी महाप्राण ध्वनियों (ख, घ, थ, ध, भ) के स्थान पर ‘ह’ कर देने की प्रवृत्ति प्राकृतों से चलती हुई अपभ्रंश-अवहट्ट के माध्यम से हिन्दी तक बढ़ती रही।
उदा०—कथानिका = कहानी, दुर्लभ = दूल्हा
9. हिन्दी में अधिकांश तद्भव शब्द सीधे संस्कृत से नहीं आये, वरन् पहले उनका अपभ्रंश में रूप परिवर्तन हुआ, उसके बाद हिन्दी में उसे ग्रहण किया गया।
उदा०—हस्त = हत्थ = हाथ
व्याकरणिक योगदान-
1. संस्कृत में संज्ञाओं के अनेक तिर्यक रूप बनते है, परन्तु अपभ्रंश में कम होकर तीन ही रह गये तथा हिन्दी में भी यही प्रचलित हुआ। संस्कृत की रूप-रचना का जो संक्षिप्तीकरण अपभ्रंश में हुआ, वह हिन्दी में भी प्रचलित हुआ।
2. अपभ्रंश कुछ-कुछ वियोगात्मक भाषा बन रही थी, अर्थात् विकारी शब्दों (संज्ञा सर्वनाम विशेषण और क्रिया) का रूपान्तरण संस्कृत की विभक्तियों से मुक्त होकर उपसर्गों और स्वतन्त्र शब्दों या शब्द-खण्डों की सहायता से होने लगा था। इससे भाषा के सरलीकरण की प्रक्रिया तेज हो गयी। हिन्दी लगभग पूर्णतया वियोगात्मक भाषा बन गयी।
3. हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले सर्वनामों का निकटतम रूप अपभ्रंश में निर्मित हुआ।
उदा०—मइ = मैं, तुहुँ = तुम
4. विभक्तियों के लिये प्रयुक्त परसर्ग की रूप-रचना भी अपभ्रंश से ग्रहण की गयीं। संस्कृत के करण और अपादान कारक अपभ्रंश में एक हो गये, हिन्दी में भी यही मान्य हुआ।
5. अपभ्रंश तक आते-आते लिंग दो (पुल्लिंग और स्त्रीलिंग) और वचन दो (एकवचन और बहुवचन) रह गये थे, यही हिन्दी में भी स्वीकृत हुआ।
6. संस्कृत में काल रचना अनेक लकारों में होती थी, परन्तु अपभ्रंश में उनके केवल सामान्य रूप ही रह गये, तथा हिन्दी में भी काल-सम्बन्धी रचना की सरल प्रक्रिया अपना ली गयी।
7. संस्कृत में संयुक्त क्रिया के प्रयोग की प्रवृत्ति नहीं है। यह प्रवृत्ति अपभ्रंश से हिन्दी में आयी।
उदा०—आया, आ गया, आ बैठा, आ चुका
8. अपभ्रंश में कुछ धातुएं देशी आधार पर बनायी गयी हैं जिनके स्रोत संस्कृत में नहीं मिलते। इन्हें हिन्दी में अपनाया गया
उदा०—छड़ – छोड़, टक्क = टेक, चक्ख = चख
9. संख्यावाची विशेषणों को भी अपभ्रंश से ग्रहण किया गया।
उदा०–एक, दोउ, तीनि, चार, पाँच
10. अपभ्रंश तक देशी शब्द का गठन, तत्सम शब्दों का पुनरूज्जीवन, विदेशी शब्दावली का ग्रहण द्रुतगति से बढ़ चला था। इससे हिन्दी को अपना शब्द भण्डार समृद्ध करने में बड़ी मदद मिली।
साहित्यिक योगदान-
1. दोहा छन्द का प्रयोग सबसे पहले अपभ्रंश में हुआ जो हिन्दी में आज तक प्रचलित है, चौपाई, मसनवी शैली भी अपभ्रंश से ली गयी।
2. तोता के संदेशात्मक के रूप में प्रयोग की कल्पना हिन्दी में अपनश से ली गयी।
3. सिंहलद्वीप की कल्पना अपभ्रंश से ली गयी।
4. अपभ्रंश के चर्यागीतों से रीतिकवियों ने प्रेरणा ग्रहण की।
5. मूर्तिपूजा और अवतारवाद की कल्पना के स्रोत अपभ्रंश काव्य हैं।
6. हिन्दी साहित्य के कलापक्ष और भावपक्ष दोनों स्तरों पर अपभ्रंश का प्रभाव है।
7. हिन्दी में भक्तिकाव्य का उद्भव लुइपा, सरहपा और कण्हपा आदि की रचनाओं का प्रभाव ग्रहण करके हुआ।
8. सिद्धों और नाथों की पद रचना से हिन्दी के संत कवियों ने प्रेरणा ग्रहण की। विधि-विधान का खण्डन-गुरुमहिमा आदि अपभ्रंश काव्यों से लिये गये।
9. जैन कवियों से प्रबन्ध काव्य तथा चरितकाव्य की परम्परा ग्रहण की गयी।
10. हिन्दी में सतसई लेखन की परम्परा अपभ्रंश के मुक्तक काव्यों से ग्रहण की गयी।
11. कथा रूढ़ियों के प्रयोग की प्रवृत्ति अपभ्रंश काव्य से ग्रहण की गयी।
Important Links
- हिन्दी की मूल आकर भाषा का अर्थ
- Hindi Bhasha Aur Uska Vikas | हिन्दी भाषा के विकास पर संक्षिप्त लेख लिखिये।
- हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग, उद्भव, उत्पत्ति, विकास, अर्थ,
- डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- मलयज का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- रवीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore Biography Jeevan Parichay In Hindi
- केदारनाथ अग्रवाल का -जीवन परिचय
- आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ/आदिकाल की विशेषताएं
- राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- सूफ़ी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- संतकाव्य धारा की विशेषताएँ | संत काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियां
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | स्वर्ण युग की विशेषताएँ
- मीराबाई का जीवन परिचय
- सोहनलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय
- हरिवंशराय बच्चन के जीवन परिचय
- महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन परिचय
- जयशंकर प्रसाद का- जीवन परिचय
- मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा-शैली
- कबीरदास जी का – जीवन-परिचय
- डॉ० धर्मवीर भारती का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक, तथा भाषा-शैली
- महाकवि भूषण जीवन परिचय (Kavi Bhushan)
- काका कालेलकर – Kaka Kalelkar Biography in Hindi
- श्रीराम शर्मा जी का जीवन परिचय, साहित्यिक सेवाएँ, रचनाएँ , तथा भाषा-शैली
- महादेवी वर्मा का – जीवन परिचय
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – जीवन परिचय
Disclaimer