भारतीय समाज में परिवर्तन
भारतीय समाज में परिवर्तन के कारकों का वर्णन कीजिए।
भारतीय समाज में परिवर्तन के कारकों का वर्णन निम्नवत् है- नगरीकरण, औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण, संस्कृतिकरण, लौकिकीकरण, आधुनिकीकरण
1. नगरीकरण (Urbanization)-
पिछले कुछ समय से नगरीय जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। यही कारण है कि आज नगरों का क्षेत्रफल विस्तारित होता चला जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार नगरीय जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई है। अनेकानेक ग्राम कस्बों में, कस्बे नगरों में तथा कई नगर महानगरों में परिवर्तित हो गये हैं। नगरीयकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में अनेक परिवर्तन हुए
2. औद्योगीकरण (industrialization)-
परम्परागत भारत में छोटे-छोटे उद्योग- धन्धे थे जिनका स्थान आज बड़ी-बड़ी मिल फैक्टरियों ने ले लिया है। वर्तमान भारत में औद्योगिकरण की गति धीरे-धीरे तेज हो रही है। यहाँ अब उत्पादन कल-कारखानों एवं बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा होने लगा है। इससे एक तरफ उत्पादन बढ़ा है तथा दूसरी ओर उसकी गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी हुई है। औद्योगीकरण ने लोगों को जीवन जीने के तरीकों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है।
3. पश्चिमीकरण (Westernization)-
पश्चिमीकरण यूरोपीय देशों की देन है। जब यहाँ पर अंग्रेज शासक बनकर आये तो उन्होंने यहाँ की जीवन पद्धति को ही परिवर्तित कर दिया। पश्चिमी सांस्कृतिक अनुकरण के कारण भारतीय समाज में अनेक बदलाव हुए हैं। पश्चिमी संस्कृति के परिणामस्वरूप ही न केवल जीवन के तौर-तरीकों में बदलाव आया हैं बल्कि उसने भारतीय साहित्य, दर्शन, संस्कृति, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं को भी प्रभावित किया है।
4. संस्कृतिकरण ( Sanskritisation )-
भारतीय समाज में चल रही सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया को समझाने और सामाजिक परिवर्तन की विवेचना करने के लिए प्रोफेसर एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का प्रतिपादन किया। श्रीनिवास ने अपने अध्ययन के दौरान यह पाया कि समाज में निम्न समझी जाने वाली जातियाँ जातीय संस्तरण की प्रणाली में ऊपर आने के लिए उच्च जातियों की संस्कृति का अनुकरण करती हैं तथा उनकी जीवन-पद्धति को अपना लेती हैं। ऐसे लोग निम्न समझे जाने वाले व्यवसायों को त्यागकर उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त व्यवसायों को अपना लेते हैं। ये जातियाँ धर्म-कर्म, पाप-पुण्य, पुनर्जन्म, मोक्ष जैसे शब्दों का प्रयोग अपनी शब्दावली में करने लगे हैं। ये जातीय संस्तरण की प्रणाली में अपनी प्रस्थिति को ऊँचा उठाने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं और आगे चलकर दो-तीन पीढ़ियों के पश्चात् समाज में उनकी प्रस्थिति कुछ ऊपर उठ जाती है। डॉ. श्रीनिवास ने इसी प्रक्रिया को संस्कृतिकरण का नाम दिया है।
5. लौकिकीकरण (Secularization)-
लौकिकीकरण की प्रक्रिया ने भारतीयसमाज में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लौकिकीकरण का तात्पर्य है पहले जिन वस्तुओं को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता था उसके स्थान पर उन्हें तार्किक, बौद्धिक एवं लौकिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। लौकिकीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में धर्म का महत्व एवं प्रभाव पहले की अपेक्षा कुछ कमजोर हुआ है तथा विज्ञान एवं वैज्ञानिक विचारों का महत्व बढ़ा है। अब लोग किसी भी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक घटना व वस्तु की व्याख्या ईश्वर, परलोक एवं धर्म के सन्दर्भ में न करके वैज्ञानिकता एवं तार्किकता के आधार पर करने लगे हैं। इस तरह लौकिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण हुआ है। वास्तविकता यह है कि भारत में लौकिकीकरण अंग्रेजी की देन है।
6. आधुनिकीकरण (Modernization)-
आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी एक ही दिशा या क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन को प्रकट नहीं करती बल्कि यह एक बहुआयमी प्रक्रिया है। साथ ही यह किसी भी प्रकार के मूल्यों से बँधी हुई नहीं है। डॉ. एस.पी. दुबे आधुनिकीकरण को मूल्यों से मुक्त मानते हैं तथा इसके लिए कोई एक निश्चित मॉडल या मार्ग भी नहीं मानते। भारत में हमने राजनीतिक क्षेत्र में प्रजातंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद को अपनाया है तथा पश्चिम को मॉडल माना है, वहीं दूसरी तरफ हमने समतावादी समाज के लिए रूस और चीन को मॉडल माना है। डॉ. योगेन्द्र आधुनिकीकरण को एक सांस्कृतिक प्रत्यय मानते हैं जिसमें तार्किक मनोवृत्ति, आदि समाहित हैं। सार्वभौमिक दृष्टिकोण, परानुभूति, वैज्ञानिक विश्व दृष्टि, प्रौद्योगिक प्रगति तथा मानवतावादी दृष्टिकोण लेवी ने शक्ति के जड़ स्रोत जैसे- पेट्रोल, डीजल, कोयला, जल विद्युत, अणुशक्ति और यन्त्रों के प्रयोग को आधुनिकीकरण का आधार रूप माना है।
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