हिन्दी व्याकरण

Ras in Hindi रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Ras in Hindi रस - परिभाषा, भेद और उदाहरण - हिन्दी व्याकरण
Ras in Hindi रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Ras in Hindi (रस)- रस क्या होते हैं? रस की परिभाषा

Ras in Hindi रस : रस से तात्पर्य काव्य का आनंद प्राप्त करने से है। जब हम किसी कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास, फिल्म आदि को पढ़ते, देखते या सुनते हैं, तब पाठक, श्रोता या दर्शक को जिस सुख, दुःख एवं आनंद की अनुभूति होती है, वही काव्य में रस कहलाता है।

भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा-

रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र‘ में रास रस के आठ प्रकारों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भावमूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है।

आचार्य भरतमुनि ने रस की निष्पत्ति का मुख्य सूत्र इस प्रकार दिया है

“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्गसनिष्पत्तिः”

अर्थात् विभाव (भाव उत्पन्न करने के साधन), अनुभाव (पात्रों की चेष्टाएँ), व्यभिचारी (अनेकानेक भाव) भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

रस के अवयव/अंग

रस के चार अवयव या अंग हैं-स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव तथा संचारी या व्यभिचारी भाव। इन चारों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

1.स्थायी भाव

प्रत्येक मनुष्य के चित्त में प्रेम, दुःख, क्रोध, आश्चर्य, उत्साह आदि भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें ही स्थायी भाव कहते हैं। स्थायी भाव हमारे हृदय में छिपे होते हैं तथा ये अनुकूल वातावरण उपस्थित होने पर स्वयं ही जाग्रत हो उठते हैं।

2. विभाव

विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं विषयों के वर्णन से है, जिनके प्रति सहृदय के मन में किसी प्रकार का भाव या संवेदना जागृत होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-आलंबन और उद्दीपन।

(i) आलंबन विभाव

जिन व्यक्तियों या पात्रों के आलंबन या सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं;

जैसे-नायक-नायिका।

आलंबन के भी दो प्रकार हैं

(क) आश्रय जिस व्यक्ति के मन में रति (प्रेम) करुणा, शोक आदि विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय आलंबन कहते हैं।

(ख) विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में । भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय आलंबन कहते हैं।

उदाहरण के लिए यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जाग्रत होता है, तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय। उसी प्रकार यदि सीता के मन में राम के प्रति रति भाव उत्पन्न हो, तो सीता आश्रय और राम विषय होंगे।

(i) उद्दीपन विभाव

आश्रय के मन में उत्पन्न हुए स्थायी भाव को और तीव्र करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।

उदाहरण के लिए दुष्यंत शिकार खेलते हुए ऋषि कण्व के आश्रम में पहुंच जाते हैं। वहाँ वे शकुंतला को देखते हैं। शकुंतला को देखकर दुष्यंत के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है।

उस समय शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यंत के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं।

नायिका शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन प्रदेश के अनुकूल वातावरण को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।

3. अनुभाव

अनु का अर्थ है-पीछे अर्थात् बाद में। स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर उसके बाद जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुभाव कहा जाता है।

अनुभाव चार प्रकार के होते हैं

(i) सात्विक

जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वतः प्रकट हो जाते हैं, वे सात्विक हैं।

(ii) कायिक

शरीर में होने वाले अनुभाव कायिक हैं।

(iii) वाचिक

काव्य में नायक अथवा नायिका द्वारा भाव-दशा के कारण वचन में आए परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं।

(iv) आहार्य

नायक-नायिका की वेशभूषा द्वारा भाव प्रदर्शन आहार्य अनुभाव कहलाते हैं।

(i) आलंबन विभाव

जिन व्यक्तियों या पात्रों के आलंबन या सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं;

जैसे-नायक-नायिका।

आलंबन के भी दो प्रकार हैं

(क) आश्रय जिस व्यक्ति के मन में रति (प्रेम) करुणा, शोक आदि विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय आलंबन कहते हैं।

(ख) विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में । भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय आलंबन कहते हैं।

उदाहरण के लिए यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जाग्रत होता है, तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय। उसी प्रकार यदि सीता के मन में राम के प्रति रति भाव उत्पन्न हो, तो सीता आश्रय और राम विषय होंगे।

(i) उद्दीपन विभाव

आश्रय के मन में उत्पन्न हुए स्थायी भाव को और तीव्र करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।

उदाहरण के लिए दुष्यंत शिकार खेलते हुए ऋषि कण्व के आश्रम में पहुंच जाते हैं। वहाँ वे शकुंतला को देखते हैं। शकुंतला को देखकर दुष्यंत के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है।

उस समय शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यंत के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं।

नायिका शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन प्रदेश के अनुकूल वातावरण को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।

3. अनुभाव

अनु का अर्थ है-पीछे अर्थात् बाद में। स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर उसके बाद जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुभाव कहा जाता है।

अनुभाव चार प्रकार के होते हैं

(i) सात्विक

जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वतः प्रकट हो जाते हैं, वे सात्विक हैं।

(ii) कायिक

शरीर में होने वाले अनुभाव कायिक हैं।

(iii) वाचिक

काव्य में नायक अथवा नायिका द्वारा भाव-दशा के कारण वचन में आए परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं।

(iv) आहार्य

नायक-नायिका की वेशभूषा द्वारा भाव प्रदर्शन आहार्य अनुभाव कहलाते हैं।

4. संचारी या व्यभिचारी भाव

मन के चंचल या अस्थिर विकारों को संचारी भाव कहते हैं। स्थायी भाव के बदलने पर ये भाव परिवर्तित होते रहते हैं, इनका नाम ‘संचारी भाव’ रखे जाने के पीछे यही कारण भी है। संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए-शकुंतला के प्रति रति भाव के कारण उसे देखकर दुष्यंत के मन में मोह, हर्ष, आवेग आदि जो भाव उत्पन्न होंगे, उन्हें संचारी भाव कहेंगे।

संचारी भावों की संख्या तैंतीस (33) बताई गई है। इनमें से मुख्य संचारी भाव हैं-शंका, निद्रा, मद, आलस्य, दीनता, चिंता, मोह, स्मृति, धैर्य, लज्जा, चपलता, आवेग, हर्ष, गर्व, विषाद, उत्सुकता, उग्रता, त्रास आदि।

रस 

स्थायी भाव

संचारी भाव

शृंगार रति स्मृति, हर्ष, मोह आदि
हास्य हास हर्ष, चपलता, लज्जा आदि
करुण शोक ग्लानि, शंका, चिंता आदि
रौद्र क्रोध उग्रता, क्रोध आदि
वीर उत्साह आवेग, गर्व आदि
भयानक भय डर, शंका, चिंता आदि
बीभत्स जुगुप्सा (घृणा) दीनता, निर्वेद, घृणा आदि
अद्भुत विस्मय हर्ष, स्मृति, घृणा आदि
शांत निर्वेद (वैराग्य) हर्ष, प्रसन्नता, विस्मय आदि
वात्सल्य वत्सल वत्सलता, हर्ष आदि
भक्ति अनुराग/ईश्वर विषयक रति हर्ष, गर्व, निर्वेद, औत्सुक्य आदि

रस के भेद

रस के मुख्यतः नौ भेद होते हैं। बाद के आचार्यों ने दो और भावों को स्थायी भाव की मान्यता देकर रसों की संख्या ग्यारह बताई है। ये रस निम्नलिखित हैं

1.श्रृंगार रस

जब नायक-नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम (लगाव) उत्पन्न होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के योग से स्थायी भाव रति जाग्रत हो, तो ‘शृंगार रस’ कहलाता है। इसे ‘रसराज’ भी कहा जाता है।

इसका स्थायी भाव रति (प्रेम) है।

इसके दो भेद होते हैं

(1) संयोग शृंगार (ii) वियोग अथवा विप्रलंभ शृंगार

(i) संयोग शृंगार

नायक व नायिका का मिलन संयोग श्रृंगार कहलाता है।

उदाहरण-

“तन संकोच मन परम उछाहू। गूढ प्रेम लखि परह न काहू।।
जाइ समीप रामछवि देखी। रहि जनु कुँआरि चित्र अनुरेखी।”

स्थायी भाव रति
आश्रय  नायिका अर्थात् सीताजी
विषय नायक अर्थात् श्रीराम
उद्दीपन समीप जाना, छवि देखना
संचारी भाव सीताजी का जड़वत् रह जाना।

(ii) वियोग शृंगार

जहाँ नायक और नायिका के वियोग का वर्णन हो, वहाँ वियोग श्रृंगार” होता है।

उदाहरण-

“विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवासः
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!
जीवन, विरह का जलजात!”

स्थायी भाव रति (प्रिया वियोग)
आश्रय  नायिका
विषय नायक
उद्दीपन नायक से दूरी
अनुभाव वेदना, पीड़ा अनुभव करना
संचारी भाव विलाप करना, रोना आदि।

2. करुण रस

जब प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ‘करुण रस’ जाग्रत होता है।

उदाहरण

“मेरे हृदय के हर्ष हा!
अभिमन्यु अब तू है कहाँ?”

स्थायी भाव शोक
आश्रय  द्रौपदी
विषय अभिमन्यु
उद्दीपन शोकाकुल वातावरण
अनुभाव रोना, विलाप करना
संचारी भाव द्रौपदी का अभिमन्यु को याद करना, बीच-बीच में जड़ हो जाना आदि।

3.वीर रस

युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित ‘उत्साह’ स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे ‘वीर रस’ कहा जाता है।

उदाहरण-

“चढ़त तुरंग, चतुरंग साजि सिवराज,
चढ़त प्रताप दिन-दिन अति जंग में।
भूषण चढ़त मरहट्अन के चित्त चाव,
खग्ग खुली चढ़त है अरिन के अंग में।
भौंसला के हाथ गढ़ कोट हैं चढ़त,
अरि जोट है चढ़त एक मेरु गिरिसुंग में।
तुरकान गम व्योमयान है चढ़त बिनु
मन है चढ़त बदरंग अवरंग में।।”

स्थायी भाव उत्साह
आश्रय  शिवराज
विषय औरंगजेब और तुरक
उद्दीपन  शत्रु का भाग जाना, मर जाना
अनुभाव घोड़ों का चढ़ना, सेना सजाना, तलवार चलाना
संचारी भाव उग्रता, क्रोध, चाव, उत्साह आदि।

4. बीभत्स रस

विभावों, अनुभावों तथा संचारी भावों के मेल से घृणा’ स्थायी भाव जाग्रत होकर ‘बीभत्स रस’ को जन्म देता है।

उदाहरण-

“सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहि स्यार अतिहि आनंद कर धारत।।
गीध जाँघ कहँ खोदि-खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खात विचारत।।
बहु चील नोच ले जात तुच मोद भर्यो सबको हियो।
मनु ब्रह्मभोज जजिमान कोउ आज भिखारिन कहँ दियो।।”

स्थायी भाव जुगुप्सा
आश्रय  देखने वाला
विषय मृत शरीर
उद्दीपन गिद्ध, सियार, चील आदि द्वारा मांस नोच-नोचकर खाया जाना
अनुभाव घृणा
संचारी भाव दीनता, निर्वेद आदि।

5.शांत रस

सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति तथा सात्विकता का वर्णन ही ‘शांत रस’ है।

उदाहरण-

“मन मस्त हुआ फिर क्यों डोले?
हीरा पायो गाँठ गठियायो, बार-बार
वाको क्यों खोले?”

स्थायी भाव वैराग्य
आश्रय  कवि 
विषय ईश्वर
उद्दीपन ईश्वर भक्ति सुलभ वातावरण
अनुभाव ईश्वर की भक्ति में लीन होना, धन्यवाद करना, गाना
संचारी भाव प्रसन्नता, विस्मय आदि।

6. हास्य रस

किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र वेशभूषा, अनोखी बातों, चेष्टाओं आदि से हृदय में जब विनोद या हास का अनुभव होता है, तब ‘हास्य रस’ की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण-

“गोपियाँ कृष्ण को बाला बना.
बृषभान के भवन चलीं मुसकातीं
वहाँ उसको निज सजनि बता,
रहीं उसके गुणों को बतलाती।
स्वागत में उठ राधा ने ज्यों,
निज कंठ लगाया तो वे थी ठठाती
होली है, होली हैं कहके तभी
सब भेद बताकर खूब हँसाती।”

स्थायी भाव हास
आश्रय  गोपियाँ
विषय कृष्ण का गोपी रूप धारण करना
उद्दीपन होली के त्योहार का वातावरण
अनुभाव गोपियों का हँसना, मुसकुराना, कृष्ण की चेष्टाएँ

संचारी भाव लज्जा, हर्ष, चपलता आदि।

7. रौद्र रस

जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के मेल से ‘क्रोध’ स्थायी भाव का जन्म हो, तब ‘रौद्र रस’ की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण-

” उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।”

स्थायी भाव क्रोध
आश्रय  अर्जुन
विषय अभिमन्यु को मारने वाला जयद्रथ
उद्दीपन अकेले बालक अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फँसाना तथा सात महारथियों द्वारा उस पर आक्रमण करना
अनुभाव शरीर काँपना, क्रोध करना, मुख लाल होना
संचारी भाव उग्रता, चपलता आदि।

8.भयानक रस

भय उत्पन्न करने वाली बातें सुनने अथवा व्यक्ति को देखने, सुनने अथवा उसकी कल्पना करने से मन में भय छा जाए, तो उस वर्णन में ‘भयानक रस’ विद्यमान रहता है।

उदाहरण

“एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय।।”

स्थायी भाव भय
आश्रय  राहगीर
विषय अजगर, मृगराज (सिंह) का राहगीर की ओर बढ़ना
उद्दीपन भयानक जंगल
अनुभाव डरना, मूर्छित होना
संचारी भाव मरण, बेहोश होना आदि।

9. अद्भुत रस

किसी असाधारण, अलौकिक या आश्चर्यजनक वस्तु, दृश्य या घटना को देखने, सुनने से जब आश्चर्य होता है, तब अद्भुत रस की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण

“राग है कि, रूप है कि
रस है कि, जस है कि
तन है कि, मन है कि
प्राण है कि, प्यारी है।”

स्थायी भाव विस्मय
आश्रय  सुदामा
विषय नारी (सुदामा की पत्नी)
उद्दीपन झोंपड़ी के स्थान पर महल और दरिद्र ब्राह्मणी के स्थान पर वस्त्राभूषण से सज्जित होना
अनुभाव आश्चर्यचकित होना
संचारी भाव हर्ष, मोह, स्मृति आदि।


10. वात्सल्य रस

वात्सल्य रस का संबंध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता अथवा सगे-संबंधियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है।

उदाहरण-

“सोहित कर नवनीत लिए
घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित
मुख दधि लेप किए।”

स्थायी भाव वत्सल
आश्रय  माता-पिता
विषय बालकृष्ण
उद्दीपन कृष्ण का घुटनों तक धूल से भरा शरीर, मुँह पर दही का लेप
अनुभाव हँसना, प्रसन्न होना
संचारी भाव विस्मित होना, मुग्ध होना आदि।


11.भक्ति रस

ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थायी रूप में मानव संस्कार में प्रतिष्ठित होने से भक्ति रस होता है।

उदाहरण-

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
साधुन संग बैठि-बैठि लोक-लाज खोई।
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई।।

स्थायी भाव अनुराग/ईश्वर विषयक रति
आश्रय  कवयित्री (मीरा)
विषय श्रीकृष्ण
उद्दीपन कृष्ण लीलाएँ, सत्संग
अनुभाव रोमांच, अश्रु, प्रलय
संचारी भाव हर्ष, गर्व, निर्वेद, औत्सुक्य आदि।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment