श्रुतलेख से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिये।
यह साधन प्राथमिक कक्षाओं में प्रयुक्त होता है। प्रतिलिपि के पश्चात् अनुलिपि और अनुलिपि के पश्चात् श्रुतलेख का क्रम आता है। प्राथमिक कक्षाओं में श्रुतलेख को ही शुद्ध लेख कहा जाता है। श्रुतलेख अर्थात् सुना हुआ लेख, इसमें अध्यापक बोलता है और छात्र सुनकर बोली हुई सामग्री को लिखता है। श्रुतलेख में सुन्दर लिखावट का तो महत्त्व होता ही है, किन्तु इसके साथ ही साथ भाषा की शुद्धता का भी महत्त्व होता है। श्रुतलेख का उद्देश्य छात्रों की श्रवणेन्द्रिय को प्रशिक्षित करना है, ताकि वह भाषा के शुद्ध रूप को सावधानी से सुन सकें। छात्रों की लिखावट में सुडौलता के साथ -साथ स्पष्टता का अभ्यास, लिखायां में गति लाना तथा एकाग्रचितता लाना श्रुतलेख का प्रमुख लक्ष्य है। इस विधि के द्वारा छात्र के हाथ, कान और मस्तिष्क की क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित किया जाता है। उसकी स्मरण शक्ति का विकास किया जाता है। इसके साथ ही सुनकर भाव- ग्रहण करने का भी अभ्यास कराया जाता है। श्रुतलेख की शिक्षा के लिये अध्यापक को गद्यांश पद्यांश चुनते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह न तो अधिक कठिन हो और न ही अधिक सरल। उस अंश को पहले अध्यापक को धीरे-धीरे पूरा पढ़ लेना चाहिये। इसके बाद एक-एक शब्द धीरे-धीरे बोले और बालकों को लिखने को कहे। सम्पूर्ण अंश को लिखा देने के पश्चात् पुनः दो छात्रों को पूर्ण अंश पढ़कर सुनाये ताकि छात्र अपनी भूलें स्वयं सुधार सकें। इसके बाद बालक की कॉपियों में सावधानी से संशोधन किया जाय । संशोधन में छात्रों की कॉपियाँ बदल कर भी छात्रों से संशोधन कराया जा सकता है, इससे छात्रों की बुद्धि को विकसित होने का अवसर प्राप्त होता है।
श्रुतलेख के उद्देश्य
श्रुतलेख का उद्देश्य छात्रों की श्रवणेन्द्रिय को प्रशिक्षित करना है, ताकि वह भाषा के शुद्ध रूप को सावधानी से सुन सकें। छात्रों की लिखावट में सुडौलता के साथ-साथ स्पष्टता का अभ्यास, लिखायी में गति लाना तथा एकाग्रचितता लाना श्रुतलेख का प्रमुख लक्ष्य है। इस विधि के द्वारा छात्र के हाथ, कान और मस्तिष्क की क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित किया जाता है। उसकी स्मरण शक्ति का विकास किया जाता है। इसके साथ ही सुनकर भाव-ग्रहण करने का भी अभ्यास कराया जाता है। वर्तनी की शिक्षा भी इसका एक उद्देश्य है।
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