मौलिक लेखन का महत्त्व
कुशल वक्ता और मूल लेखक दोनों को ही समाज में सर्वप्रियता की कमी नहीं रहती। दोनों ही समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन तथा संशोधन करते हैं। वक्ता की वाणी जादू का काम करती है, किन्तु वह अस्थायी होती है। उससे उसके जीवन काल में ही लाभ प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु मौलिक लेखन द्वारा लेखक की लेखनी से निसृत श्याम वर्णों की छाप स्थायी होती है और उसका प्रभाव युग-युगों तक बना रहता है। तात्पर्य यह है कि एक सफल लेखक अपने शरीर से सदैव जीवित रहकर जन-कल्याण करता रहता है। एक समुचित रचना संग्रह हो, बस फिर क्या, अल्प समय में ही तुलसी, सूर, कबीर एवं शुक्ल किसी का भी अभिलिखित विचार सत्संग करके लाभ प्राप्त कीजिये। अवकाश के समय के सदुपयोग के लिये भी ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण होते हैं, उनमें ज्ञानार्जन के साथ मनोरंजन भी होता है। वर्तमान निबन्धात्मक परीक्षा के युग में रचना – शक्ति विद्यार्थियों की अंक प्राप्ति में सहायक होती है। प्राय: वही छात्र अच्छे अंक प्राप्त करते हुए देखे जाते हैं, जिनमें अपने प्राप्त ज्ञान और तत्सम्बन्धी विचारों को एक सुन्दर क्रम में शुद्ध भाषा लिपिबद्ध करने की क्षमता होती है। मौलिक लेखन रचना एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें लेखन विचारों की गहनता, अनुभव तथा परिपक्वता के प्रकाशन हेतु निर्वाध एवं विस्तृत स्थान है। मौलिक रचना से मानव मस्तिष्क को दृढ़ता तथा प्रौढ़ता प्राप्त होती है। इस प्रसिद्ध उक्ति से स्पष्ट है-‘लेखन दशा मनुष्य को पूर्णता तक पहुँचाती है।’ अंग्रेजी के विद्वान् लेखक बेकन ने भी इसी विचार का समर्थन किया, “बोलना मनुष्य को पूर्णता तक पहुँचाता है, लेकिन लिखना व्यक्ति को परम शुद्ध बनाता है।”
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