वाक्य का अर्थ
वाक्य उस व्यवस्थित शब्द अथवा पद समूह को कहते हैं जो वक्ता अथवा लेखक के तथ्य को पूर्णता एवं स्पष्टता के साथ व्यक्त करता है। संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान पातंजलि ने पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द समूह को वाक्य की संज्ञा दी है। किसी भाषा की सर्वप्रधान महत्त्वपूर्ण इकाई वाक्य है; अर्थात् वाक्य ही भाषिक व्यवहार का मेरुदण्ड है। वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित रूप है। वाक्य शब्दों के परस्पर संयोजन द्वारा बनाये जाते हैं। वाक्य द्वारा भाव एवं विचार प्रकट किये जाते हैं।
वाक्य के अंग
वाक्य के दो अंग होते हैं – (1) उद्देश्य और (2) विधेय ।
(1) उद्देश्य – किसी वाक्य में जिसके सम्बन्ध में कहा जा रहा है वह उद्देश्य कहलाता है।
(2) विधेय – उद्देश्य के सम्बन्ध में जो कहा जा रहा है उसे विधेय कहते हैं।
उदाहरण – नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमन्त्री हैं।
इसमें नरेन्द्र मोदी उद्देश्य तथा विधेय प्रधानमन्त्री है।
वाक्य के अन्तर्गत पद, पदक्रम एवं पदबन्ध को समझाइये|
वाक्य के अन्तर्गत पद, पदक्रम एवं पदबन्ध को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. पद – भाषा की न्यूनतम् इकाई वाक्य होता है और वाक्य की न्यूनतम इकाई शब्द होता है। वाक्य की रचना मूलत: पदों से ही की जाती है। यदि वाक्य में प्रयुक्त पद (शब्द) एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाते हैं तो वाक्य की संरचना करना कठिन कार्य है। ये पद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया विशेषण, क्रिया और अव्यय होते हैं; जैसे-रमेश ने पुस्तक पढ़ी। यहाँ रमेश, पुस्तक और पढ़ी तीनों शब्द न होकर पद हैं, क्योंकि ये सम्बन्ध तत्त्व से युक्त हैं। ‘ने’ परसर्ग है। पदों में वाक्य रचना करने में पदक्रम, अन्वय एवं अध्याहार महत्त्वपूर्ण होते हैं।
2. पदक्रम-‘पदक्रम’ का अर्थ है ‘वाक्य’ में पदों के रखे जाने का क्रम। शब्दों को सही. क्रम से प्रस्तुत करना पदक्रम कहलाता है; जैसे- राम गया।
3. पदबन्ध – वाक्य का वह भाग जिसमें एक से अधिक पद आपस में सम्बन्धित होकर अर्थ देते हैं, किन्तु पूरा अर्थ नहीं देते को पदबन्ध कहा जाता है।
वाक्य रूपान्तरण के आधार पर छोटे-छोटे वाक्य बनाने की प्रक्रिया को समझाइये |
वाक्य रूपान्तरण को विभिन्न रूपों में निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
1. सरल वाक्य से कठिन वाक्य बनाना- इसके अन्तर्गत विधेय-पूरक और विशेषण- बोधक वाक्यांश को वाक्य बनाकर अथवा विधेय बताने वाले पद को वाक्य बनाकर या उद्देश्यवर्द्धक विशेषण-पद को वाक्य बनाकर ‘जो, वह’ ‘यदि, तो’ आदि नित्य-सम्बन्धी अव्ययों द्वारा जोड़ देते हैं। कहीं नित्य-सम्बन्धी पद लुप्त रहते हैं; जैसे
सरल-भारतवासियों के हृदय सम्राट आज हमारे मध्य नहीं हैं।
कठिन-जो भारतवासियों के हृदय सम्राट थे, वे आज हमारे मध्य नहीं हैं।
सरल- उसकी चाल को मैं समझता हूँ।
कठिन- उसकी जो चाल है, उसे मैं समझता हूँ।
2. कठिन वाक्य को सरल वाक्य बनाना-किसी कठिन वाक्य को पद या वाक्यांश के रूप में लाकर सम्बन्ध बोधक दोनों पदों को हटा देना चाहिये। इसमें अर्थ और काल का विशेष ध्यान रखना चाहिये।
कठिन- जब तक मैं अपना अध्ययन समाप्त नहीं कर लूँगा तब तक विवाह नहीं करूँगा।
सरल – अपना अध्ययन समाप्त नहीं करने तक विवाह नहीं करूँगा।
कठिन-तुमने मुझसे जिस प्रकार कहा था, उसी के अनुसार कार्य कर रहा हूँ।
सरल – तुम्हारे कथनानुसार कार्य कर रहा हूँ।
उपर्युक्त दोनों प्रकार के परिवर्तनों में वाक्य-संकोचन के नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिये।
3. सरल वाक्यों को यौगिक वाक्य बनाना-सरल वाक्य के किसी वाक्यांश को स्वतन्त्र वाक्य बनाकर ‘एवं’, ‘किन्तु’, ‘इसलिये’ आदि अव्ययों के प्रयोग से यौगिक वाक्य बना लेना चाहिये। कहीं-कहीं पूर्वकालिक क्रिया को समापिका क्रिया कर लेने से यौगिक वाक्य बन जाता है।
सरल-स्नानादि से निवृत होकर, गीता रहस्य का अध्ययन किया।
यौगिक-स्नानादि से निवृत हुआ और गीता रहस्य का अध्ययन किया।
सरल – पढ़ने में शिथिलता करने से दुःख होता है।
यौगिक-पढ़ने में शिथिलता मत करो, इससे दुःख होता है।
4. यौगिक वाक्यों को सरल वाक्य में बदलना-यौगिक वाक्य के एक स्वतन्त्र वाक्य को वाक्यांश में बदलकर कहीं-कहीं समापिका क्रिया पूर्वकालिक क्रिया करने से यौगिक वाक्य से सरल वाक्य बन जाता है। यौगिक वाक्यों से अव्यय क्रिया करने से यौगिक वाक्य से सरल वाक्य बन जाता है। यौगिक वाक्यों से अव्यय पद सरल वाक्य बनने पर लुप्त हो जाते हैं!
यौगिक-महेश आया और चला गया।
सरल-महेश आकर चला गया।
यौगिक-केले पका लिये और खा लिये।
सरल-केले पकाकर खा लिये।
5. कठिन वाक्य को यौगिक वाक्य में बदलना- कठिन वाक्य के अप्रधान (आश्रित) वाक्य को स्वतन्त्र वाक्य बनाकर और उसके नित्य सम्बन्धी दोनों पदों को छोड़कर ‘नहीं’, ‘तो’, ‘अथवा’, ‘और’ आदि संयोजक और विभाजक अव्यय पद लगाकर बनाते हैं।
कठिन – उसने जो कहा था, वह नहीं किया।
यौगिक-उसने कह तो दिया, परन्तु किया नहीं।
6. यौगिक वाक्य से कठिन वाक्य बनाना-यौगिक वाक्य के दो स्वतन्त्र वाक्यों में से प्रथम वाक्य के प्रारम्भ में ‘यदि’ आदि अव्यय तथा संयोजकादि अव्यय के स्थान पर नित्य-सम्बन्धी पदों के प्रयोग करने से कठिन वाक्य बन जाता है।
यौगिक-निष्काम कर्म करो, तुम्हें फल अवश्य मिलेगा।
कठिन-यदि निष्काम कर्म करोगे तो फल अवश्य मिलेगा।
वाच्य के आधार पर आप वाक्य परिवर्तन किस प्रकार करेंगे? उदाहरण दीजिये ।
वाच्य परिवर्तन- सकर्मक क्रिया के प्रयोग में कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य और कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य और अकर्मक क्रिया में कर्तृवाच्य से भाववाच्य और भाववाच्य से कर्तृवाच्य में परिवर्तन करने का नाम ‘वाच्य परिवर्तन’ है।
कर्तृवाच्य में कर्म होता भी है और नहीं भी पर कर्मवाच्य में कर्म अवश्य होता है, किन्तु भाववाच्य में कर्म नहीं होता है।
1. कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन
कर्तृवाच्य- राम ने मेरी पुस्तक चुरा ली।
कर्तृवाच्य – रवीन्द्रनाथ ने शान्ति निकेतन की स्थापना की।
कर्मवाच्य – रवीन्द्रनाथ के द्वारा शान्ति निकेतन स्थापित किया गया।
कर्मवाच्य – मेरी पुस्तक राम से चुरायी गयी।
2. कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में परिवर्तन
कर्मवाच्य – साधु से कैसा भजन गाया जाता है ?
कर्तृवाच्य – साधु कैसा भजन गाता है ?
कर्मवाच्य – भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिया गया।
कर्तृवाच्य- भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया।
3. कर्तृवाच्य से भाववाच्य में परिवर्तन
कर्तृवाच्य – मैं नहीं उठता हूँ।
भाववाच्य – मुझसे नहीं उठा जाता है।
कर्तृवाच्य – मैं दिन भर काम नहीं कर सकता।
भाववाच्य- मुझसे दिन भर काम नहीं हो सकता।
4. भाववाच्य से कर्तृवाच्य में परिवर्तन
भाववाच्य- गाय से चला नहीं जाता।
कर्तृवाच्य – गाय नहीं चलती।
भाववाच्य- तुमसे खाया जायेगा।
कर्तृवाच्य- तुम खाओगे।
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