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राजा जनमेजय का जीवन परिचय | Biography of Janamejaya in Hindi

राजा जनमेजय का जीवन परिचय 
राजा जनमेजय का जीवन परिचय 

राजा जनमेजय का जीवन परिचय- वैसे तो कुरुवंश के राजा जनमेजय का यश सर्वाधिक है, लेकिन वैदिक साहित्य में अन्य जनमेजयों का भी विवरण प्राप्त होता है। महाभारत के युद्ध में अर्जुनपुत्र अभिमन्यु को जिस समय मारा गया, उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। उसके गर्भ से परीक्षित ने जन्म लिया, जो युद्ध के पश्चात् हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठा। जनमेजय इसी परीक्षित का पुत्र कहा जाता है।

प्राप्त विवरण के अनुसार एक बार परीक्षित ने आखेट के समय एक मौन ध्यानस्थ ऋषि शमीक से जल मांगा। मौन साधक द्वारा उत्तर न देने पर कुपित राजा ने इन्हें ढोंगी माना और एक मृत सर्प इनके गले में डाल दिया। ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंगी ऋषि को इसकी जानकारी हुई तो इसने श्राप दे दिया, जिससे सातवें दिन तक्षक सर्प के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। इसी का प्रतिकार लेने के लिए जनमेजय ने पहले तक्षशिला को जीता, फिर नाग-यज्ञ किया, जिसमें सर्प हवनकुंड में आ-आकर गिरने लगे व अपनी आहुति देने लगे।

भयाक्रांत तक्षक नाग इंद्र का शरणागत हो गया, लेकिन यज्ञ के मंत्रों के असर से जब तक्षक के साथ इंद्र भी हवन कुंड की तरफ खिंचने लगा तो इसने तक्षक को त्याग दिया। तदंतर वासुकी नाग की बहन जरत्कारूकी के पुत्र आस्तीक ने राजा जनमेजय से वर मांगकर सर्प-यज्ञ बंद कराया और इस तरह तक्षक का जीवन बचा। इस आशय का भी प्रसंग मिलता है कि वास्तव में यह दो जातियों के मध्य का शाश्वत बैर रहा था, जिसमें नाग जाति परास्त हुई। काल्पनिक रूप में इसे नाग-यज्ञ के रूप में चित्रित किया गया।

ब्राह्मण काल के आखिर में कुरुवंश के शासक जनमेजय को अनेक अश्वों का स्वामी कहा गया है। आसंदीव्रत को इसने राजधानी बनाया। उसके पौत्रों के पाप विमुक्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ करवाया था। शौनक ऋषि द्वारा यज्ञ का पुरोहित कर्म संपन्न करवाया गया था।

जनमेजय कौन थे? आप उनके विषय में क्या जानते हैं?

जनमेजय महाभारत के अनुसार कुरुवंश का राजा था। महाभारत युद्ध में अर्जुनपुत्र अभिमन्यु जिस समय मारा गया, उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। उसके गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठा। जनमेजय इसी परीक्षित तथा मद्रावती का पुत्र था। महाभारत के अनुसार (१.९५.८५) मद्रावती उनकी जननी थीं, किन्तु भगवत् पुराण के अनुसार (१.१६.२), उनकी माता ईरावती थीं, जो कि उत्तर की पुत्री थीं।

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