राजा पुरु का जीवन परिचय- ये उस राजवंश के पुरोधा थे, जिसने आगे चलकर दुष्यंत व भरत को जन्म दिया। कौरव भी इसी कुल में जन्मे थे। कुरु राजा ययाति की संतान थे। ययाति की दो रानियां थीं। शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा। शर्मिष्ठा भी राजपरिवार से थी। उसे देवयानी के विवाह में उसकी सेविका बनकर जाना पड़ा था। राजा ययाति शर्मिष्ठा की तरह भी आकर्षित हो गए। उसके गर्भ से अन्य दो पुत्रों के अलावा पुरु का भी जन्म हुआ। राजा के इस लंपट व्यवहार से नाराज होकर जब देवयानी अपने पिता के पास गई तो शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़ा हो जाने का श्राप दे दिया। साथ ही यह भी कहा कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति तुम्हारी वृद्धावस्था अपने ऊपर ले ले तो तुम फिर से युवावस्था प्राप्त कर सकते हो।
देवयानी से पैदा दो पुत्रों के सहित कोई भी पिता की वृद्धावस्था लेने के लिए राजी नहीं हुआ, लेकिन पुरु ने इसके लिए सहमति प्रदान की। फिर से युवावस्था प्राप्त करके ययाति ने लंबे समय तक विषम सुखों को भोगा और अंत में पुरु को राज्य देकर वह तपस्या करने वन में चले गए थे।
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