पुरुरवा का जीवन परिचय (Biography of Pururawa in Hindi)- प्रायः देखा गया है कि पौराणिक काल से आशय रखती कथा वस्तुतः नीतिकथा के पक्ष में मार्गदर्शन करती है। ऐसी नीतिकथाओं में औत्सुक्स भाव की प्रबलता तो रहती ही है, साथ ही कोई संदेश भी उससे प्राप्त होता है। पुरुरवा के बारे में भी ऐसी ही कथा प्रचलित है कि वह प्राचीन भारत का एक विख्यात राजा थे, जिन्होंने सोमवंश राज्य की स्थापना की थी। ये राजा बुध की संतान थे और इऋकी माता का नाम इला था। इस कारण ये पुरुरवा ऐल के नाम से भी जाने गए। ये प्रयाग व काशी का भी राजा थे। प्रतिष्ठानपुर इसकी राजधानी हुआ करती थी।
पुरुरवा ने सप्तदीपों पर विजय प्राप्त कर सौ अश्वमेध यज्ञ किए। वशिष्ठ इनका पुरोहित था। इन्हें सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के समय का ही राजा स्वीकार किया जाता है। तपस्या और अग्नि उपासना के कारण पुरुरवा का रूप बेहद दर्शनीय हो गया था। एक बार देवसभा में नारद ने इनकी सुंदरता व गुणों का बखान किया। यह सुनकर उर्वशी उस पर मुग्ध हो गई। उसकी वह स्थिति भांप कर मित्रावरुणों ने उसे पृथ्वी पर चले जाने का श्राप दे दिया। इससे वह पृथ्वी पर आई, लेकिन केशी नामक दैत्य ने उसका अपहरण कर लिया। पुरुरवा ने उसे स्वतंत्र कराया और शादी का प्रस्ताव किया। उर्वशी तीन शर्तों पर विवाह के लिए तैयार हुई। वह तीन शर्तें निम्न थीं :
1. मेरे द्वार पालित तीन भेड़ों की रक्षा करोगे।
2. मैथुन के अतिरिक्त कभी भी मुझे नग्न दिखाई नहीं दोगे।
3. मेरा आहार महज घी होगा।
इन शर्तों पर दोनों ने विवाह कर लिया।
उर्वशी के अभाव में दुःखी गंधर्वों ने उसे पुनः लौटाने की योजना तैयार की। योजना अनुसार ये पलंग से बंधी भेड़ें रात्रि में खोलकर ले जाने लगे। इस पर उर्वशी इन्हें बचाने को चीखी, तब पुरुरवा वस्त्ररहित स्थिति में तलवार लेकर भेड़ों को बचाने के लिए दौड़े। इसी समय बिजली चमकी और उर्वशी ने पुरुरवा को नग्न स्थिति में देख लिया। शर्त भंग होने पर उर्वशी स्वर्गलोक वापस लौट गई। इस कारण राजा विक्षिप्त समान हो गए थे। उर्वशी कुछ अंतराल में उसके पास आती रही और दोनों से छह संतानें हुईं। ऐसी भी मान्यता है कि पुरुरवा उच्च कोटि के वैदिक सूत्रकार व मंत्रदृष्टा भी थे।
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