राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो: आदर्श राज्य की धारणा (Conception of Ideal State) in Hindi

प्लेटो: आदर्श राज्य की धारणा (Conception of Ideal State) in Hindi

प्लेटो: आदर्श राज्य की धारणा

प्लेटो: आदर्श राज्य की धारणा

आदर्श राज्य की धारणा
(Conception of Ideal State)

अपने सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ ‘रिपब्लिक’ में प्लेटो ने एक आदर्श राज्य का चित्रण किया है जिसका प्रमुख उद्देश्य न्याय की प्राप्ति है। उसके आदर्श राज्य की कल्पना अत्यन्त मौलिक है। इस राज्य के चित्रण के कई कारण हैं। पहला – प्लेटो आदर्शवादी होने के नाते पदार्थ की बजाय विचार को ही वास्तविक मानता है। उसके अनुसार वास्तविकता किसी वस्तु में नहीं बल्कि वस्तु के बारे में जो भाव है, उसमें है। इस तर्क के आधार पर प्लेटो मौजूदा राज्यों को परिवर्तनशील, क्षणभंगुर और अवास्तविक मानता था। दूसरा – अपने समय की एथेन्स की राजनीतिक तथा सामाजिक बुराइयों से प्लेटो चिन्तित था, उन्हें सुधारने के लिए उसने आदर्श राज्य की कल्पना की। तीसरा – प्लेटो उस समय के यूनानी नगर राज्यों के शासकों के लिए राज्य का एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहता था ताकि वे अपने नगर राज्यों में राजनीतिक और सामाजिक सुधार ला सके।

प्लेटो के आदर्श राज्य को सेबाइन जैसे लेखक कल्पना की उड़ान मानते हैं। उसका आदर्श राज्य अव्यावहारिक है। डनिंग इसे रोमांस कहते हैं। प्लेटो स्वयं स्वीकार करता है कि उसके आदर्श राज्य जो कि दर्शन के शासन और साम्यवाद पर आधारित है, को क्रियान्वित करना बहुत ही कठिन है। प्लेटो ने आदर्श राज्य का चित्रण एक चित्रकार की तरह किया है। जिस प्रकार एक चित्रकार अपने चित्र को सुन्दर बनाने के लिए इस बात पर ध्यान नहीं देता कि उसकी कल्पना प्रकृति में कहीं विद्यमान है या नहीं, उसी प्रकार प्लेटो आदर्श राज्य को आदर्श के अनुरूप बनाने के लिए उसकी व्यावहारिकता के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं देता। यह राज्य अव्यावहारिक है जिसका नमूना स्वर्ग में तैयार किया गया है। प्लेटो जिस राज्य को चित्रित करते हैं वह सबसे अच्छे राज्य का नमूना है- “राज्य जो अपने आप में एक किस्म है” (A State which is a class in it sell)| प्लेटो का आदर्श राज्य एक अच्छाई का एक विचार है जो सभी कालों और देशों के लिए एक आदर्श हो सकता है। अपने आदर्श राज्य के बारे में प्लेटो स्वयं कहते हैं- “राज्य शब्दों से बनाया गया है क्योंकि मेरा विचार है कि संसार में यह कहीं भी मौजूद नहीं है।” किन्तु प्लेटो के इस आदर्श के विवरण में ऐसे मानवीय मूल्य निहित हैं जो उसके राज्य को सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक बनाते हैं।

प्लेटो के आदर्श राज्य की व्याख्या करने से पहले राज्य की उत्पत्ति के दार्शनिक आधारों पर चर्चा करनी आवश्यक है। प्लेटो के आदर्श राज्य के निम्नलिखित दार्शनिक आधार हैं:-

1. व्यक्ति का विस्त तरूप ही राज्य है (The State is the Individual writ Large) :

प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य का निर्माण व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर आधारित किया है। प्लेटो की मान्यता है कि राज्य व्यक्ति के समान है। व्यक्ति का विस्तृत रूप ही राज्य कहलाता है। प्लेटो का कहना है- “राज्य की उत्पत्ति वृक्षों या चट्टानों से नहीं व्यक्तियों के चरित्र से होती है।” प्लेटो की मान्यता है कि व्यक्ति की चेतना और राज्य की चेतना एक है। सभी सामाजिक वस्तुएँ आत्मा के तीन गुणों को व्यक्त करती हैं। समाज की समस्त वस्तुएँ व्यक्तियों के विचारों के प्रतिरूप होती हैं। एतएव श्रेष्ठ व्यक्तियों के आधार पर ही श्रेष्ठ राज्य का निर्माण किया जा सकता है। प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य का चित्रण इसलिए किया है ताकि व्यक्ति अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो सके।

2. मानव आत्मा के तीन तत्व (Three Elements of Human Soul) :

प्लेटो ने अपने मानव आत्मा के विश्लेषण के आधार पर ही आदर्श राज्य का निर्माण किया है, इसलिए आत्मा के तीन गुणों – विवेक, साहस और क्षुधा के आधार पर आदर्श राज्य में तीन वर्गों – दार्शनिक, सैनिक और उत्पादक वर्ग की व्यवस्था की है। विवेक राज्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यद्यपि साहस के साथ विवेक पहले से ही उपस्थित रहता है लेकिन इसकी पूरी परिणति दार्शनिक शासकों में होती है। दार्शनिक शासक विवेक द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं और प्रेम करना सीखते हैं। अतः ज्ञान से ही प्रेम का जन्म होता है। विवेक सैनिकों में ही होता है लेकिन यह प्रेम में परिणत नहीं हो पाता है। प्लेटो दार्शनिक वर्ग को ही विवेक तत्त्व का निवास स्थान मानकर उन्हें ही शासन करने का अधिकार प्रदान करता है। दार्शनिक शासक विवेकी ओर ज्ञानी होने के कारण कंचन और कामिनी के जाल में नहीं फँसते। उन्हें शिव के स्वरूप का ज्ञान होता है। इसी प्रकार सैनिक वर्ग उत्साह या साहस तत्त्व द्वारा राज्य को सामरिक द ष्टि से सुरक्षित करते हैं। यह वर्ग बाहरी आक्रमण से राज्य की रक्षा करता है एवं आंतरिक शान्ति सुरक्षा कायम करता है। इस वर्ग का कार्य शासक वर्ग की आज्ञाओं का पालन करना है। आत्मा का तीसरा तत्त्व क्षुधा उत्पादक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।

प्लेटो का मानना है कि मानव की आर्थिक आवश्यकताओं से ही प्रारम्भिक रूप में राज्य का उदय होता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए परस्पर निर्भर है। जव सहयोगी और सहायक व्यक्ति आपस में एकत्रित होकर एक स्थान पर रहने लगते हैं तो राज्य का निर्माण होता है। एक आदर्श राज्य कार्य विशिष्टीकरण के सिद्धान्त के आधार पर स्वावलम्बी बन सकता है। इस प्रकार मानव आत्मा व राज्य में सावयवी एकता का निर्माण होता है। अत: राज्य मानव आत्मा का ही व हत् रूप है।

3. राज्य हित में व्यक्ति का हित निहित है (Man’s Interest lies in State’s Interest) :

मानव राज्य की चेतना का ही एक अंश है। अतः राज्य के हित में ही व्यक्ति का हित निहित है। व्यक्ति राज्य में रहकर ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है। इसलिए प्लेटो राज्य की सावयवी एकता पर बल देता है।

4.सत्य सम्बन्धी सिद्धान्त (Theory Regarding Truth) :

प्लेटो के मतानुसार भौतिक पदार्थों (दृश्यमान जगत) तथा भलाई (Good) का निवास विचार जगत् में है। उसने इस विचार जगत् के एक अंग के रूप में ही आदर्श राज्य की धारणा को प्रस्तुत किया है।

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