राजा बलि का जीवन परिचय
भक्त प्रहलाद का पौत्र व दैत्यराज विरोचन का पुत्र बलि ‘बलि बैरोचन’ नाम से भी ज्ञात हो जाता है। दैत्यों का राजा होते हुए भी बलि सत्यवादी, आदर्शवान व विष्णु उपासक था। इससे मालूम पड़ता है कि दैत्यों व देवताओं का विरोध अन्याय और न्याय के कारण नहीं, दो अलग जातियों के मध्य अपनी सत्ता स्थापित करने का संघर्ष था। अतः परम वैष्णव शिवभक्त होते हुए भी दैत्यों के प्रति देवताओं का व्यवहार बेहद क्रूर ही रहा था।
बलि बड़ा पराक्रमी राजा था। एक बार जब भगवान् विष्णु देवताओं की तरफ से उदासीन थे, उस अवसर का लाभ उठाकर दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की राय पर बलि ने देवताओं को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इसने अपने पितामह प्रहलाद को बुलाकर इनके द्वारा अपना स्वर्ग का राज्याभिषेक भी कराया। इससे ही बलि के बल व सत् की अनुभूति हो जाती है।
समुद्र मंथन के प्रसंग से भी बलि का रिश्ता रहा है। एक बार वह इंद्र की संपूर्ण संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जा रहा था तब संपत्ति समुद्र में समा गई। इसे प्राप्त करने के लिए देवता समुद्र मंथन का मसौदा लेकर राजा बलि के पास गए। बलि ने इसे स्वीकार कर लिया व दैत्यों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन शुरू किया। वास्तव में देवताओं का उद्देश्य धन प्राप्त करना नहीं, अमृत प्राप्त करना था, क्योंकि दैत्यों के पास ‘मृत संजीवनी’ विद्या, जो थी। उसके प्रभाव से युद्ध में मरने वाले दैत्य फिर से जीवित हो जाते थे। मंथन से जो 14 रत्न निकले इनमें से दैत्यों को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। इससे कुपित होकर दैत्यों ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में बलि इंद्र द्वारा मारा गया, लेकिन शुक्राचार्य ने मृत संजीवनी विद्या के द्वारा उसे पुनर्जीवित कर दिया। बलि ने फिर से अपना राज्य गठित किया और सौ अश्वमेध यज्ञ किए।
नर्मदा के उत्तरी तट पर इसका सौवां यज्ञ किया जा रहा था। उसके पूर्ण होने पर इसे इंद्र का पद प्राप्त हो जाता। इसी मौके पर भगवान विष्णु ने वामन का रूप धर करके राजा बलि से तीन पग धरा मांगी। बलि द्वारा इस दान का वचन प्राप्त होते ही वामन का विराट रूप हो गया और इसने एक पग में पूरी पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई जगह नहीं रही तो बलि ने अपना सिर वामन के सम्मुख कर दिया। बलि पाताल में समा गया। शुक्राचार्य ने बलि को इस दान के लिए वचनबद्ध होने से पूर्व रोकने का प्रयास किया था। इन्होंने सूक्ष्म रूप धारण कर जलपात्र में प्रवेश करके उसका मुख बंद करने का भी प्रयास किया, लेकिन पात्र से जल न निकलता देखकर बलि ने कुशा की डंडी से जलपात्र का मुख खोल दिया। इस कारण शुक्राचार्य का एक नेत्र फूट गया और ये ‘एकांक्ष’ भी कहलाए। बलि को महान तत्वज्ञानी कहा गया है। इसकी विंध्यावलीऔर अशुना नाम की दो शक्तियां थीं। पुराणों में वाणासुर सहित इसके पुत्रों की गिनती सौ कही गई है।
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