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गरुड़ पुराण क्या है और मृत्यु के बाद इसका पाठ क्यों होता है जरूरी

गरुड़ पुराण क्या है

गरुड़ पुराण क्या है- गरुड़ को मूलरूप से भगवान विष्णु का वाहन माना गया है। वेदों व पुराणों में ये एक ऐसा पक्षी है, जिसका ऊपर का शरीर पक्षी का व नीचे का मानव का है, दोनों का मिश्रित रूप। सर्पों से इसका स्वाभाविक बैर रहा है। इस बारे में पुराणों में एक कथा भी है। गरुड़ की माता विनता और सर्पों की माता कद्रू दोनों प्रजापति कश्यप की पत्नियां थीं। सौतिया डाह में कद्रू व उसके पुत्रों ने मिलकर छल से गरुड़ की माता विनता को कद्रू की दासता स्वीकार करने के लिए विवश किया। जब गरुड़ को इसकी जानकारी हुई तो ये सर्पों के सदैव के बैरी तो बन ही गए, स्वर्ग से अमृत घट लाकर माता को दासता से आजादी भी दिला दी। उपरोक्त कथा का मूल स्वरूप ऋग्वेद में भी मौजूद है।

अनेक विद्वान कई पौराणिक कथाओं की तरह गरुड़ की नीति कथा को भी संकेत स्वरूप मानते हैं। इनकी मान्यतानुसार गरुड़ ज्योति के देवता हैं तथा सर्प या नाग तमस के। गरुड़ व नागों का बैर प्रकाश व अंधकार के इसी संघर्ष की तरफ इंगित करता प्रतीत होता है।

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