कागभुशुण्डि कौन था?- काक भुशुंडि अयोध्या निवासी शूद्र व परम शिव भक्त थे। गुरु का यह ज्ञान इन्हें समझ नहीं आता था कि शिव व विष्णु एक ही हैं। ये सगुण विष्णु की निंदा किया करते थे। एक बार शिव मंदिर में जप करते हुए इन्होंने वहां पर आए अपने ही गुरु का अभिवादन नहीं किया। इस पर आकाशवाणी हुई कि इन्हें बारंबार निम्न जातियों में जन्म लेना होगा। जब गुरु ने इनकी ओर से शिव से क्षमा की याचना की तो शिव ने इन्हें अंतिम योनि में ब्राह्मण के घर में रामभक्त के रूप में जन्म लेने का वरदान प्रदान कर दिया। उसी अनुरूप कई योनियों में भटकने के पश्चात् काक भुशुंडि ने ब्राह्मण के पुत्र स्वरूप जन्म लिया। ब्राह्मण बालक शिक्षा ग्रहण करने के लिए लोमश ऋषि के पास गया। ऋषि इसे निर्गुण ब्रह्म का उपदेश देने लगे तो इसने गुरु का खंडन करके सगुण का समर्थन शुरू कर दिया। इस पर कुपित लोमश ने इसे पक्षियों में सर्वाधिक नीच पक्षी कौआ हो जाने का श्राप दे दिया, किंतु जब इन्हें योगबल से ब्राह्मण बालक के रामभक्त होने का ज्ञान हुआ तो उन्होंने इसे राममंत्र देकर श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति का आशीर्वाद प्रदान किया। इस प्रकार स्थिति बनने लगी। काक भुशुंडि ने नीलांचल पर्वत को अपना आश्रय बनाया। ये राम की बाललीलाओं के भक्त थे। राम के दर्शनार्थ उड़कर अयोध्या के महलों में बैठ जाया करते थे। गरुड़ को इन्होंने अपने पूर्वजन्म की कथा सुनाई थी। शंकर राजहंस का रूप धारण कर रामकथा श्रवण के लिए इनके ही आश्रम में गए थे। ये प्रसंग बताता है कि ईशभक्ति के माध्यम से मनुष्य जीवन को संवार सकता है।
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