कण्व ऋषि का जीवन परिचय- कण्व का बखान वेद, पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में कई स्थलों पर विभिन्न रूपों में किया गया है। वेद के अनुसार घोर के दो पुत्र थे, कण्व व प्रगाथ। एक दिन कण्व ने अपनी भार्या की गोद में सिर रखे प्रगाथ को देखा तो उसे दोनों के चरित्र पर संदेह हुआ। जब प्रगाथ ने पिता व माता कहकर भाई और भाभी के चरण स्पर्श किए, तब कहीं कण्व का संदेह समाप्त हुआ।
कण्व भी याज्ञवल्क्य के शिष्यों में से एक रहे थे। इन्होंने यजुर्वेद की कण्व शाखा की स्थापना की और कई ग्रंथों की रचना भी की।
अयोध्या में आश्रम में प्रवास करने वाले भी एक कण्व थे। श्रीराम के लंका विजय के पश्चात् अयोध्या लौटने पर ये इन्हें आशीर्वाद देने के लिए गए थे।
वेद में प्रदर्शित एक कण्व ने ‘अखग’ नाम की असुर कन्या से पाणिग्रहण किया था। एक बार उनकी पत्नी कुपित होकर अपने माता-पिता के पास चली गई तो कण्व भी उसके पीछे ससुराल गए। असुरों ने उसे एक अंधेरे कक्ष में बंद करके कहा कि यदि तुम ब्राह्मण होंगे तो प्रातःकाल कब हुआ, बिना देखे बता सकोगे। यहां पर अश्विनी कुमारों ने गुप्त रूप से पहुंचकर उसे बताया कि प्रातः में हम वीणा बजाते हुए निकलेंगे, उससे तुम समझ जाना। इस तरह ये अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। एक धर्मशास्त्रकार कण्व भी विख्यात हैं। इनके रचित ग्रंथों में ‘कण्व नीति’, ‘कण्व संहिता’, ‘कण्वोपनिषद’ व ‘कण्वस्मृति’ का नाम लिया जाता है, जिनके प्रसंग अनेक ग्रंथों में पढ़े जा सकते हैं।
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