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अष्टावक्र का जीवन परिचय | Biography of Ashtavakra in Hindi

अष्टावक्र का जीवन परिचय
अष्टावक्र का जीवन परिचय

अष्टावक्र का जीवन परिचय (Biography of Ashtavakra in Hindi)- अष्टावक्र नामक ऋषि की कथा महाभारत और विष्णु पुराण में प्रदर्शित है। ये उद्दालक ऋषि के प्रिय शिष्य कहोड़ मुनि के पुत्र थे। उद्दालक ने अपनी कन्या सुजाता का पाणिग्रहण कहोड़ से कर दिया था। जब सुजाता गर्भवती थी और कहोड़ वेद-पाठ कर रहे थे तो गर्भ से बताया गया कि आपका उच्चारण अशुद्ध है। यह सुनते ही क्रुद्ध होकर कहोड़ ने गर्भस्थ शिशु को इसके आठ अंग टेढ़े हो जाने का श्राप दे दिया।

कहोड़ धन की तलाश में जनकपुर गए तो वहां के राजपंडित ने शास्त्रार्थ में परास्त कर उन्हें नदी में डुबा दिया। इधर आठ टेढ़े अंगों के साथ शिशु ने जन्म लिया तो इनका ‘अष्टावक्र’ नाम पड़ा। वह उद्दालक को ही अपना पिता मानता रहा। प्रतिभाशाली अष्टावक्र ने कम आयु में ही सभी ज्ञान प्राप्त कर लिया। 19 वर्ष की आयु में इसे सुजाता से पिता के बारे में जानकारी मिली तो मामा श्वेतकेतु के साथ वह राजा जनक के दरबार में गया और पिता को परास्त करने वाले पंडित को शास्त्रार्थ में बुरी तरह हरा दिया। अब उस पंडित के नदी में डूबने का अवसर था। इसने राजा को कहा कि इसने अब तक परास्त हुए पंडितों को जल में डुबाकर वरुण लोक भेज रखा है। इतने में कहोड़ सहित सभी पंडित वहां आ गए। हारे हुए राजपंडित ने जल समाधि ले ली।

अष्टावक्र का विवाह वदान्य ऋषि के बेटी सुकन्या से संपन्न हुआ, किंतु ऋषि ने पहले इसकी कठिन परीक्षा की। एक बार इसकी वक्रता को देखकर जब अप्सराएं कटाक्ष करने लगीं तो इसने श्राप दिया कि आभीर तुम्हारा हरण करेंगे। कृष्ण की पलियों के रूप में वही अप्सराएं थीं, जिनका हरण अर्जुन के साथ द्वारिका से इंद्रप्रस्थ जाते हुए आभीरों ने कर लिया था। मिथिला से लौटते समय कहोड़ के मार्गदर्शन पर समंगा नदी में स्नान करने से अष्टावक्र का शरीर सामान्य हो गया था। इसी नाम से ‘अष्टावक्र गीता’ और ‘अष्टावक्र संहिता’ नाम के दो ग्रंथ रहे हैं, जो इनकी विद्वता का प्रमाण भी है।

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