महाभारत के धनुर्धारी अर्जुन का जीवन परिचय (Biography of Arjun in Hindi)- पांडु की पत्नी व श्रीकृष्ण की बुआ कुंती ने अपने तीसरे पुत्र अर्जुन को दुर्वासा प्रदत्त मंत्र के प्रभाव से इंद्र को बुलाकर इसके पितृत्व से प्राप्त किया था। कौरव व पांडव सभी के गुरु आचार्य द्रोण अर्जुन को इनकी प्रतिभा के कारण सर्वप्रिय शिष्य मानते थे। गुरु द्वारा ली गई हर एक परीक्षा में ये प्रथम आए। अर्जुन की प्रसिद्धि सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर की बनाए रखने हेतु द्रोण ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से इनका अंगूठा ही ले लिया था। इसी धनुर्विधा के बल पर अर्जुन ने मछली का नेत्र वेधकर स्वयंवर में द्रौपदी से विवाह किया, जो फिर पांचों पांडवों की पत्नी भी बनीं। द्रौपदी पांचों पांडवों की संयुक्त पत्नी थीं। अर्जुन की उस समय तीन और पत्नियां भी थीं। नागकन्या उलूपी, मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा और कृष्ण की बहन सुभद्रा। इन तीनों से इन्हें क्रमशः इरावत, बभ्रुवाहन और अभिमन्यु नाम के पुत्ररत्न मिले थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के दौरान अर्जुन ने दूर-दूर तक के राजाओं को जीतकर इन्हें अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। वनवास काल में किरात वेशधारी शिव से युद्ध करने के पश्चात् पाशुपात्र अस्त्र की प्राप्ति की। इंद्रलोक जाकर अर्जुन ने नाना प्रकार की कलाएं सीखीं। वहीं उर्वशी की इच्छा पूर्ण न करने के कारण इसने इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक बनने का श्राप दे दिया था, जो अज्ञातवास में रहते विराट की पुत्री उत्तरा को वृहन्नला बनकर नृत्य-संगीत की शिक्षा देने में मददगार ही सिद्ध हुआ।
अर्जुन का जीवन परिचय
नाम | अर्जुन |
उपनाम | धनंजय, पार्थ, सव्यसाची, गांडीवधारी, गुणाकेश, किरीटी |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर के जंगल |
जन्म तारीख | लगभग 5000 वर्ष पूर्व |
वंश | चन्द्रवंश |
माता का नाम | कुन्ती |
पिता का नाम | इंद्रदेव |
पत्नी का नाम | उलूपी, सुभद्रा, चित्रांगदा और द्रौपदी |
उत्तराधिकारी | ईरावान व भ्रुवाहन और श्रुतकीर्ति |
भाई/बहन | भीमसेन, नकुल और सहदेव, कर्ण, युधिष्ठिर |
प्रसिद्धि | महाभारत विजय व हस्तिनापुर के राजा |
रचना | — |
पेशा | क्षत्रिय, राजा |
पुत्र और पुत्री का नाम | अभिमन्यु, ईरावान व भ्रुवाहन और श्रुतकीर्ति |
गुरु/शिक्षक | भगवान श्री कृष्ण |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | उत्तर प्रदेश, हरयाणा, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल |
धर्म | हिन्दू सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी, संस्कृत |
मृत्यु | — |
मृत्यु स्थान | स्वर्ग लोक |
जीवन काल | — |
महाभारत के युद्ध में अर्जुन की बहादुरी के कई प्रसंग हैं। वस्तुतः भीष्म, द्रोण, कृपि व कर्ण आदि जैसे वीरों को परास्त कर पाना अर्जुन के ही वश की बात थी। युद्ध की समाप्ति पर अर्जुन को यादवों के परस्पर कलह कर लड़ मरने और श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण की सूचना मिली तो ये द्वारिका गए। वहां अपने संबंधियों का अंतिम संस्कार करके बचे हुए स्त्री-पुरुषों और धन-संपत्ति के साथ इंद्रप्रस्थ की ओर लौट रहे थे तो मार्ग में डाकुओं ने इन्हें लूट लिया। वृद्ध अर्जुन अपनी रक्षा में असमर्थ रहे।
अंततः परीक्षित को राज्य सौंपकर पांडव जीवन त्यागने के उद्देश्य से हिमालय की ओर चल पड़े। वहां सर्वप्रथम अर्जुन ने ही प्राण त्यागे। पौराणिक काल के साहित्य में अर्जुन का परिचय कई नामों से मिलता है जैसे- धनंजय, कौंतेय, पार्थ, सत्यसांभी इत्यादि। इनका एक नाम ‘कृष्ण’ भी है। विराट के पुत्र उत्तर कुमार को अपना परिचय देते हुए इन्होंने स्वयं बताया कि पिता ने मेरा नाम ‘कृष्ण’ ही रखा था।
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