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देवराज इंद्र का जीवन परिचय  | Biography of Devraj Indra in Hindi

देवराज इंद्र का जीवन परिचय
देवराज इंद्र का जीवन परिचय

देवराज इंद्र का जीवन परिचय (Biography of Devraj Indra in Hindi)- इंद्र को वैदिक काल का प्रथम देव कहा जाता है, जिन्हें देवताओं के राजा के स्वरूप में मान दिया जाता है। ऋग्वेद के लगभग एक चौथाई मंत्रों में इंद्र का बखान है। इससे इनके महत्व व व्यापक प्रभाव का भान होता है। इन्हें कहीं पर संज्ञावत का देवता कहा गया है, जो मेघों में गर्जन और विद्युत पैदा करता है। कहीं पर इन्हें सूर्य देवता भी कहा गया है, लेकिन इनकी प्रसिद्धि देवताओं को विजयी बनाने के कारण है। ये विजय प्राकृतिक शक्तियों को पक्षकारी बनाकर दिलाते थे। साथ ही उन चपटी नाक वाले व काले आदिवासियों को परास्त करके भी, जो आर्यों का विकास रोकते थे। इस प्रसंग में वृत्तासुर के किस्से का विशिष्ट महत्व

है, जिसका वध इंद्र ने दधीचि की हड्डियों के वज्र का उपयोग करके किया था। वृत्तासुर को उन मेघों का प्रतिबिंब कहा जाता है, जो नभ पर छाए रहकर भी वर्षा नहीं करते। इंद्र अपने वज्र के प्रहार से इसका वध करते हैं, जिससे पृथ्वी पर वर्षा होती है। कुछ विद्वान वृत्त की तुलना बर्फ से करते हैं, जो सूर्यरूपी इंद्र की उष्णता से पिघलकर नदियों के रूप में बहता है। यह वेद और पुराणों में प्राप्त इंद्र के आख्यान का उपस्थित भाष्य है।

इंद्र बेहद शक्तिशाली देवता थे। इनके पिता का नाम त्वष्टा या द्यौः प्राप्त होता है और माता का नाम शवसी। शची या इंद्राणी इनकी पत्नी है, जिनकी गणना सप्तमात्रिकाओं में होती है। इंद्र को कहीं पर कश्यप व अदिति की संतान कहा गया है तो कहीं पर प्रजापति की। जयंत इनका पुत्र था, जिसने सीता की पैरों पर चोंच मारी थी और जो समुद्र मंथन के समय अमृत घट लेकर भागा था। बलि व पांडव अर्जुन भी इसी के संसर्ग से उत्पन्न हुए थे। वेदों में अग्नि व सूर्य के साथ इसकी गिनती भी की जाती थी। इंद्र ऐरावत हाथी की सवारी करते हैं। उच्चैः श्रवा इनका अश्व है। वज्र इनका अस्त्र और अमरावती इसका आवास है। इनके नंदनवन में पारिजात पाए जाने की बात कही जाती है।

पौराणिक काल में इंद्र की प्रतिष्ठा कम हो गई। वहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन त्रिदेवों की प्रमुखता रही। इंद्र को गौतम पत्नी अहिल्या के साथ धोखे से संसर्ग करने और अपना सिंहासन छिन जाने के भय से अप्सराओं को भेजकर ऋषियों की तपस्या भंग करने वाला कहा गया है। ये सोम पीकर मदमस्त रहते और सभी की पूजा प्राप्त करते थे। कृष्ण ने इनकी पूजा बंद करा दी तो ये अतिवृष्टि करने लगे, किंतु कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण करके ब्रज को बचा लिया और इंद्र को परास्त होना पड़ा। अपने कृत्यों के कारण इनके शरीर में सहस्र भग उत्पन्न हो गए और कई बार इन्हें इंद्र पद त्यागना भी पड़ा और दूसरे देव इनके आसन पर बैठे। रावण के पुत्र मेघनाद ने इन्हें परास्त करके इंद्रजीत की उपाधि प्राप्त की थी। राम और रावण युद्ध में भी इंद्र का वर्णन आया है। राम को धरा पर युद्ध करते देखकर इन्होंने अपने सारथि मातलि के द्वारा अपना रथ राम की सेना में भेजा था। वैदिक काल के इस प्रतिष्ठित देवता का बखान परवर्ती काल में समृद्ध व विलासी राजा के रूप में अधिक किया गया।

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