महर्षि अत्रि का जीवन परिचय (Biography of Atri Rishi in Hindi)- एक प्रतिष्ठित वैदिक ऋषि, जिनका विवरण प्राचीन वाङ्मय में कई बार प्राप्त होता है। एक प्रकरण के अनुसार ऋग्वेद के समय इन्होंने प्रजा का पक्ष लेकर राजा से संघर्ष किया था और कारावास की यातना भोगी थी। सूर्य और चंद्रग्रहण का ज्ञान सर्वप्रथम उन्हीं को हुआ था। ये एक मंत्रदृष्टा ऋषि थे। इनका विवाह कर्दम प्रजापति की पुत्री अनुसूया के साथ संपन्न हुआ था। इन्होंने पुत्र की प्राप्ति के लिए पत्नी सहित घोर तपस्या की थी। जिसके परिणाम से विष्णु के आशीर्वाद से इन्हें दतात्रेय, शिव के आशीर्वाद से दुर्वासा और ब्रह्मा के आशीर्वाद से सोम नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
कुछ स्थान पर इन्हें ब्रह्मा के नेत्र या मस्तक से पैदा हुआ प्रदर्शित किया गया है। इनका आश्रम दंडक वन में था और वनवास के दौरान राम और सीता भी वहां गए थे। अनुसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म का ज्ञान प्रदान किया था। वर्तमान चित्रकूट के पास अत्रि और अनुसूया के आश्रम की बात कही जाती है। शरशय्या पर रहे भीष्म पितामह और परशुराम से भी इनकी भेंट हुई थी। त्रिपुर के विध्वंस के लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी। इनके नाम से ‘अत्रि संहिता’ और ‘अत्रि स्मृति’ नाम के दो ग्रंथ विख्यात हैं। वेद और पुराणों में बारंबार उल्लेख मिलने तथा राम और महाभारत के समय अत्रि की मौजूदगी से ये अनुमान लगाया जाता है कि या तो अत्रि नाम के कई व्यक्ति थे या फिर इस नाम की कोई वंश या गुरु-परंपरा प्रचलित रही थी।
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